-पिट्सबर्ग, अमेरिका स्थित हिंदू-जैन मंदिर की 40वीं वर्षगांठ और पुनः उद्घाटन समारोह
-विश्वस्तर पर ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत का एकमात्र प्रतीक हिन्दू-जैन मन्दिर
-अमेरिका की धरती पर 45 वर्ष पूर्व स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रखी थी हिन्दू-जैन टेम्पल के रूप में साम्प्रदायिक एकता की नींव
मोनरोविले, पिट्सबर्ग, अमेरिका। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में हिंदू-जैन मंदिर, पिट्सबर्ग, अमेरिका की 40वीं वर्षगांठ और पुनः उद्घाटन का दिव्य व भव्य आयोजन किया गया।
यह समारोह धार्मिक एकता की एक उत्कृष्ट मिसाल है। हिन्दू-जैन मंदिर के माध्यम से अमेरिका में सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक एकता की उत्कृष्ट नींव की स्थापना स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने लगभग 45 वर्ष पूर्व की थी, जो वर्तमान समय में भी साम्प्रदायिक एकता की उत्कृष्ट भूमिका निभा रहा है।
1984 में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी द्वारा स्थापित, यह मंदिर न केवल अमेरिका के प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक है, बल्कि यह विश्व में पहला मंदिर भी है जहाँ हिंदू और जैन समुदाय के अनुयायी साथ-साथ अपनी-अपनी पूजन पद्धतियाँ करते हैं। यह जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर संप्रदायों को भी एक साथ लाता हैं और दोनों सम्प्रदायों के लिये अपनी आस्था व पूजा का दिव्य स्थल है। 10 एकड़ में फैले इस मन्दिर के तीनों ओर नदियों का निर्मल प्रवाह प्रवाहित हो रहा है। मोनरोविले की शान्त पहाड़ियों पर दक्षिण की शैली में निर्मित यह मन्दिर विश्व को साम्प्रदायिक एकता का संदेश दे रहा है। स्वामी जी इस मन्दिर को पश्चिम का प्रयाग कहते हैं, यहां पर कुम्भ का आयोजन तो नहीं होता परन्तु पूरे विश्व से श्रद्धालु यहां आकर एकता, समरसता, सद्भाव और अहिंसा के साक्षात दर्शन करते हैं। युद्धों के इस दौर में यह मन्दिर शान्ति व एकता के स्मारक के रूप में विश्व को विभाजन नहीं संगठन, हिंसा नहीं अहिंसा, नस्लवाद नहीं मानवता का संदेश दे रहा है।
हिन्दू-जैन मन्दिर की नींव 1980 में रखी गयी थी तथा इसका आधिकारिक उद्घाटन 1984 में हुआ था तब से लेकर आज तक यह मन्दिर साम्प्रदायिक एकता का उत्कृष्ट उदाहरण है और पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि एक ही पवित्र स्थल पर बैठकर भी अपनी-अपनी पूजा पद्धतियों पर परम्पराओं को बड़ी ही दिव्यता के साथ किया जा सकता है। अपनी पूजन पद्धतियों के साथ दूसरे समुदायों की भावनाओं का सम्मान कैसे किया जाता है, यह मन्दिर पूरे विश्व को संदेश दे रहा है।
हिंदू-जैन मंदिर की ऐतिहासिक वर्षगांठ के दो दिवसीय उत्सव की शुरुआत ‘शिखर पूजन’ से हुई, जिसमें स्वामी जी और साध्वी जी ने मंदिर के शिखरों का पवित्र जल से अभिषेक किया। तत्पश्चात सभी ने यज्ञ में आहुतियाँ समर्पित कर विश्व शांति, समृद्धि, आध्यात्मिक उत्थान और सद्भाव हेतु मिलकर प्रार्थना की। हिन्दू-जैन मंदिर की कार्यकारी समिति, न्यासी मंडल और श्रद्धालुओं ने भी शिखर पूजन में सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दू-जैन मंदिर न केवल पूजा का एक पवित्र स्थान है बल्कि यह एकता का एक ऐतिहासिक प्रकाशस्तंभ भी है। हमें एक साथ मिलकर, हाथ में हाथ डालकर, दिल से दिल मिलाकर अपनी सामुदायिक एकता की शक्ति को दुनिया तक पहुँचाना होगा।
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा में हताहत हुये लोगों के प्रति अपनी संवेदनायें व्यक्त करते हुये वहां पर शीघ्र स्थिरता व शान्ति की प्रार्थना करते हुये कहा कि आइए हम इस अंधकार के दौर में प्रकाश व दिशा प्रदान करने वाली रोशनी बनें।”
स्वामी जी ने विदेश की धरती पर रहने वाले प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुये कहा कि अपनी जड़ों, मूल, मूल्यों, संस्कारों व परम्पराओं को याद रखें। यह समय अपनी मातृभूमि ‘भारत’ को कुछ वापस करने का हैं। आपकी कर्मभूमि, अमेरिका सहित कोई भी राष्ट्र हो सकता है परन्तु अपनी मातृभूमि-भारत को कभी न भूलें। आप अपने गाँव, अपने शहर, अपने स्कूल, अपने कॉलेज के ऋणी हैं। भारत ने ही आपको नींव प्रदान की है जिससे आप सफलता की इबारत लिख रहे हैं और सक्षम हैं। आप अपने समय को अपने गांवों में उत्थान के लिये नहीं लगा सकते परन्तु अपने संसाधनों का उपयोग कर अपने गाँव के उत्थान हेतु, स्कूलों, अस्पतालों और कॉलेजों का निर्माण कर सकते हैं। ऐसा करके आप उन संस्थानों का समर्थन करें जिन्होंने आपको आकार प्रदान किया है।
स्वामी जी ने कहा कि आज अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस भी हैं आप कुछ ऐसा करें कि भारत की वर्तमान युवा पीढ़ी को भी शिक्षा व रोजगार के समुचित अवसर प्राप्त हो सके। आप अपनी जन्मभूमि, गांव व समुदायों में चिकित्सा के केन्द्र, स्वच्छ जल की उपलब्धता, स्वच्छता, शिक्षा जैसी पहलों को शुरू करने के लिये गोद ले कर अपनी जन्मभूमि, अपने पैतृक गांव व घर को संरक्षित कर अपने राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण कर सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि हिन्दू-जैन मन्दिर आपकी आपसी एकता व करुणा की विरासत का केन्द्र है। इस गौरव व एकता की भावना को अपने परिवारों में बनायेेे रखना आप सभी की जिम्मेदारी है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में मंदिर के गौरवशाली अतीत का उल्लेख करते हुये कहा कि प्रवासी भारतीय समुदाय में आस्था, एकता, सांस्कृतिक विरासत और साम्प्रदायिक एकता के दिव्य प्रतीक के रूप में यह मन्दिर सभी को अपनी जड़ों, मूल्यों, संस्कारों व संस्कृति से जोड़ने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
इस अवसर पर साध्वी जी ने हिन्दू-जैन मंदिर की स्थापना और उसके पीछे के पूज्य स्वामी जी के संघर्ष के विषय में जानकारी सभी के साथ साझा करते हुये कहा कि आज से 45 वर्ष पूर्व मन्दिर निर्माण के लिये अनेक चुनौतियाँ थी इसके बावजूद स्वामी जी के अटूट समर्पण और दृढ़ता पूर्ण निर्णय से मोनरोविले में इस शांत पहाड़ी पर इस शानदार, पांच गुंबद वाली उत्कृष्ट कृति को हम सब एक भव्य व दिव्य केन्द्र के रूप में देख रहे हैं।
साध्वी जी ने कहा कि इस दिव्य मन्दिर के आप सभी उत्तराधिकारी हैं। आपको इस महान कृति का उपहार विरासत में मिला है परन्तु इस मंदिर को आप संग्रहालय मत बनने देना, यह तो ईश्वर से गहराई से जुड़ने व आप सभी की आपसी एकता का एक माध्यम है और आपको यही संदेश प्रसारित करना है।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया में, जहाँ अकेलेपन, अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य आदि चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, ऐसे में आस्था व एकता का यह दिव्य केन्द्र आपको अकेलेपन, अवसाद व मानसिक तनाव से शान्ति की ओर लेकर जाने का माध्यम बनेगा।
स्वामी जी, साध्वी जी, हिन्दू-जैन मंदिर की कार्यकारी समिति, न्यासी मंडल और श्रद्धालुओं ने बांग्लादेश में शान्ति व स्थिरता की प्रार्थना की।