जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे
🌺जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सब समान और सबका सम्मान का दिया संदेेश
💥हम सभी ईश्वर की संतान हैं और हम सबमें एक ही दिव्यता विद्यमान
🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, परमार्थ निकेतन, 29 मार्च। आज जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना का साक्षात प्रतीक है। यह संस्कृति सभी को गले लगाने, अपनाने और सभी के कल्याण की कामना करने का संदेश देती है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, भारतीय संस्कृति सह-अस्तित्व, समभाव, सहिष्णुता और करुणा की संस्कृति है। यह संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ की भावना पर आधारित है। जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे केवल एक आयोजन मात्र नहीं है, बल्कि यह मानवता के उत्थान और समानता के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का अवसर है। इस दिवस का उद्देश्य है, जाति, धर्म, रंग, भाषा, लिंग और किसी भी प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर एक समावेशी समाज का निर्माण करना, जहाँ हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि आज जब दुनिया सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भेदभाव से जूझ रही है, ऐसे समय में आज का दिन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। स्वामी जी ने विदेश की धरती पर रहने वाले भारतीय परिवारों का आह्वान करते हुये कहा कि हमें अपनी जड़ों से जुड़कर हमारी प्राचीन और कालजयी विचार को अपनाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे हमें यह स्मरण कराता है कि हम सभी ईश्वर की संतान हैं और हम सबमें एक ही दिव्यता विद्यमान है। चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, रंग, लिंग या भाषा का हो, हमें सभी के प्रति प्रेम, सम्मान और अपनत्व का व्यवहार करना चाहिए। यही हमारे सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का मूल संदेश है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी संस्कृति केवल सह-अस्तित्व की बात नहीं करती, बल्कि यह हर व्यक्ति में परमात्मा के अंश को पहचानकर समानता और सम्मान का भाव जगाती है। नारी को देवी, प्रकृति को माता और सभी जीवों को परिवार का अंग मानने वाली भारतीय संस्कृति भेदभाव से परे है।
आज के समय में, जब समाज में विभिन्न प्रकार के विभाजन देखने को मिल रहे हैं, जीरो डिस्क्रिमिनेशन डे हमें आत्मविश्लेषण और समाज में समावेशिता बढ़ाने की प्रेरणा देता है। यह दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि केवल बाहरी भेदभाव ही नहीं, बल्कि मन और हृदय में बसे पूर्वाग्रहों को भी समाप्त करना जरूरी है। इसलिये आइए, आज के दिन यह संकल्प लें कि हम न केवल अपने परिवार और समाज में, बल्कि अपने हृदय में भी समता, समानता और प्रेम की भावना का विकास करेंगे। यही भारतीय संस्कृति का सार है और यही इस दिवस का उद्देश्य भी। भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का यह संदेश हमें अपने भीतर और बाहर से भेदभाव मिटाकर एक समरस और समावेशी समाज की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

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