ऋषिकेश। विश्व अंगदान दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अंगदान के लिये प्रेरित करते हुये कहा कि अंगदान महादान है। एक व्यक्ति द्वारा अंगदान अनेकों को जीवनदान दें सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत में वर्तमान में अंग दाताओं विशेषकर मृत दाताओं की संख्या अत्यंत कम है जिसके कारण स्थिति गंभीर है। एक ओर तो हज़ारों रोगी अंग प्रत्यारोपण के इंतज़ार में हैं। भारत में ही प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोग अंग प्रत्यारोपण हेतु प्रतीक्षारत हैं। प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच बहुत बड़ा अंतर है। अंग दाताओं की संख्या अंगदान की बढ़ती मांग के अनुरूप नहीं है। इस कमी के कारण अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में प्रतिदिन लगभग 20 व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती हैं।
स्वामी जी ने कहा कि भारत महर्षि दधीचि जैसे दानवीरों का देश हैं जिन्होंने असुरों से जन सामान्य की रक्षा के लिये भगवान इन्द्र को अपना देहदान कर दिया था। एक मृत व्यक्ति के अंगों का दान करके आठ अन्य व्यक्तियों की जिंदगी में नई उम्मीदों का सवेरा लाया जा सकता हैं। एक व्यक्ति के अंगदान करने से न केवल आठ लोगों के जीवन को बचाया जा सकता है बल्कि आठ परिवारों को खूशियाँ व प्रसन्नता बांटी जा सकती हैं।
स्वामी जी ने कहा कि भारत की संस्कृति उदारता की संस्कृति है। जिससे न केवल हमें बल्कि दूसरे को भी प्रसन्नता प्राप्त होती है। अंग दान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंग दाता अंग ग्राही को अंगदान करता है। दाता जीवित या मृत हो सकता है। दान किये जा सकने वाले अंग गुर्दे, फेफड़े, आंख, यकृत, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और शिराएँ हैं।
अंगदान, जीवन के लिये अमूल्य उपहार है। अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।
जीवित व्यक्ति के लिये अंगदान के समय न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना अनिवार्य है। जीवित अंगदाता द्वारा एक किडनी, अग्न्याशय, और यकृत के कुछ हिस्से दान किये जा सकते हैं।
अंगदान और इसके प्रभाव के बारे में जनसमुदाय के बीच जागरूकता की कमी है। दूसरी ओर अंगदान के बारे में निर्णय लेते समय परिवार को भावनात्मक और नैतिक दुविधाओं का सामना भी करना पड़ता है।
स्वामी जी ने कहा कि अंगदान के बारे में जो मिथक और गलत धारणायें हैं उन्हें दूर करने हेतु उसके सकारात्मक पक्ष पर ज़ोर देना होगा। करुणा और सहानुभूति के साथ निस्वार्थ सेवा के रूप में अंगदान को बढ़ावा देने हेतु सभी को आगे आना होगा।

 

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