-रामजन्मभूमि आंदोलन के नायक श्री अशोक सिंघल जी की जयंती पर अर्पित की भावभीनी श्रद्धाजंलि
-विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दिया संदेश आध्यात्मिक स्थानों पर पर्यटन नहीं तीर्थाटन
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा जी के करकमलों से बापू नगर, जयपुर में प्राकृतिक चिकित्सालय और स्वामी दयानन्द सरस्वती भवन का लोकार्पण किया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा अर्थात् शरीर को प्रकृतिस्थ करना। प्राकृतिक चिकित्सा अर्थात् सम्पूर्ण चिकित्सा।
स्वास्थ रहने के लिये प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग करना, प्रकृति के संपर्क में रहना आवश्यक है क्योंकि जिन पंचमहाभूतों से शरीर का निर्माण हुआ है उन्हीं पंचमहाभूतों से ही प्राकृतिक पदार्थों का भी निर्माण हुआ है।
स्वामी जी ने कहा कि हम अस्वस्थ क्यों होते हैं? जब हमारा अर्थात् हमारे शरीर का प्राकृतिक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं बन पाता इसलिये हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा, शरीर व प्रकृति के सामंजस्य का ही नाम है। जितने भी प्राचीन ग्रंथ, भाव प्रकाश निघण्टु, राजनिघण्टु आदि अनेक ग्रंथों में बड़ा ही प्यारा उल्लेख है इस विधा का।
अब समय आ गया कि हम प्राकृतिक चिकित्सा को पुनः जागृत करें इससे हमारे औषधीय पौधों का संरक्षण होगा। वर्तमान युवा पीढ़ी को तुलसी, निम्बपत्र, निंबू, नागरमोथा हल्दी आदि की जानकारी प्राप्त होगी। वे जान पायेंगे कि हमारे आस पास कितनी उपयोगी चीजें है इसलिये घर-घर तुलसी, नीम व हल्दी का रोपण करें और सेवन करें। मैं तो रोज नीम के पत्ते व जैविक हल्दी का सेवन करता हूँ। प्रकृति के सम्पर्क में रहकर ही हमारे ऋषि-मुनि वर्षों तक स्वस्थ व निरोग जीवन जीते थे।
स्वामी जी ने कहा कि स्वस्थ रहने के लिये क्या चाहिये, स्वच्छ जल, शु़द्ध हवा, भरपूर नींद, शाकाहार और इसके लिये सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा; पौधों का रोपण करना होगा;ै नदियों का संरक्षण करना होगा और शाकाहार को ही अपना आहार बनाना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि भोजन को समय से खायें और जल्दी भी न खायें क्योंकि समय पर भोजन करने से न केवल पाचन तंत्र बेहतर रहता है, बल्कि यह हमारे शरीर की ऊर्जा को भी बनाए रखता है। जल्दी-जल्दी खाने से अक्सर पाचन संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं।
यजुर्वेद का शान्ति मंत्र “सहनाववतु सहनौ भुनक्तु” भोजन ग्रहण करने से पहले सभी साथ बैठकर शांत भाव से उच्चारण किया जाता है ताकि यह भोजन हमारा पालन-पोषण करें, इससे हमारी बुद्धि तेजस्वी हो और एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करने से आपसी राग-द्वेष को भी कम किया जा सकता है।
आज पर्यटन दिवस के अवसर पर स्वामी जी ने संदेश दिया कि आध्यात्मिक स्थानों पर जाये तो पर्यटन की दृष्टि से नहीं तीर्थाटन की दृष्टि से जाये। अपने गांवों की यात्रा करें, अपने मूल, मूल्य और जड़ों से जुड़ें रहे ताकि मेरा गांव, मेरा तीर्थ बने तथा मेरा गांव, मेरी शान बने’ इसके लिये सभी को अपनी जीवनशैली और सोच में बदलाव लाना होगा। अब हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर बढ़ना होगा और नये कल्चर की ओर बढ़ना होगा, ग्रीन विजन को अपनाना होगा तथा प्रकृति के साथ जीना होगा।
साध्वी ऋतम्भरा जी ने कहा कि पूज्य स्वामी जी स्वच्छ जल और हमारी नदियाँ स्वच्छ हो इसलिये अद्भुत कार्य कर रहे हैं।
राजस्थान सरकार की तकनीकी और उच्च शिक्षा विभाग की सचिव माननीय वर्तमान सांसद मंजू शर्मा जी, पूर्व सांसद श्री कुलभुषण बोहरा जी, माननीय मंत्री श्री कुलभुषण बैराठी जी, विधायक कालीचरण सर्राफ जी, श्रीमती शीला अग्रवाल जी, अध्यक्ष आई सी अग्रवाल जी, परमार्थ निकेतन से आचार्य दीपक शर्मा जी, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार और पूरा टीम ने पूज्य संतों और विशिष्ट अतिथियों का अभिनन्दन किया।