ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को हरियाली अमावस्या की शुभकामनायें देते हुये कहा कि हरियाली अमावस्या प्रकृति की सम्पन्नता व समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व प्रकृति व संस्कृति के सामंजस्य का पर्व है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्रकृति व संस्कृति के मानवीय सहचर्य व सोच के मध्य दूरी बढ़ती जा रही है। हमारे पर्व व त्यौहार प्रकृति व संस्कृति के ज्ञान का प्रतीक है। हम पारंपरिक ज्ञान व प्रकृति के साथ सामंजस्य को नजरअंदाज कर अपने ही अस्तित्व को समाप्त कर रहे हैं। वर्तमान समय में प्रकृति व प्राचीन संस्कृति के संयोजन से युक्त विकास की आवश्यकता है।

प्राचीन काल से ही मानव ने अपने पारंपरिक ज्ञान के माध्यम से प्रकृति के संरक्षण के साथ ही संस्कृति के विकास को भी समृद्ध किया है लेकिन वर्तमान में हम अपने पारंपरिक ज्ञान को पीछे छोड़ते हुए सभी प्राकृतिक परिवेश में कंक्रीट के जंगलों को खड़ा कर रहे हंै। आधुनिकीकरण के युग में प्रकृति व संस्कृति के मध्य बढ़ते असंतुलन को दूर करने तथा सामंजस्य की स्थापना करने हेतु पर्वों के प्राचीन अस्तित्व को बनाये रखने के लिये उनके जीवंत व जागृत स्वरूप को बनाये रखना होगा।

स्वामी जी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की समृद्धि के लिये स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बहुत जरूरी है। यदि वृक्ष नहीं रहेंगे तो धरती पर जीवन का अस्तित्व नहीं रहेगा। ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ता प्रदूषण न केवल मानवता को बल्कि सम्पूर्ण धरती को प्रभावित कर रहा है इसलिये भारत के हरित परिदृश्य की पुनर्बहाली के लिये प्रत्येक उत्सव, पर्व और प्रोग्राम को पौधारोपण से जोड़ना होगा और हरित सम्पत्ति को बढ़ाना होगा।

वृक्ष वास्तव में धरती के फेफड़े हैं क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड को स्वच्छ कर शुद्ध प्राणवायु ऑक्सीजन में बदलकर पूरे धरती को सांस लेने में मदद करते हैं। पेड़-पौधे वास्तव में एयर कंडीशनिंग सिस्टम की तरह काम करते हैं और धरती पर उचित तापमान को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।

प्रदूषित हुये पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिये कई दशक लग जाते हैं इसलिये यह ध्यान देने की जरूरत है कि हम प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें। वर्तमान समय में प्लास्टिक का उपयोग अत्यधिक किया जा रहा है। प्लास्टिक को विघटित होने में भी 100 से 1,000 वर्ष लग जाते हैं, एक प्लास्टिक की बोतल को विघटित होने में 500 साल तक का समय लगता है, पिछले 30 वर्षों में, दुनिया भर में प्लास्टिक उत्पादों के निर्माण और उपयोग में 70 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि हुई है। सिंगल यूज प्लास्टिक को भी लैंडफिल में विघटित होने में वर्षों लग जाते हैं।

समुद्र और महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंताजनक है इसलिये हमें ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर; ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर, नये व इनोवेटिव कल्चर की ओर बढ़ना होगा। अब तक हम अपने लिये सांस लेते थे अब धरती के लिये संास लेना होगा। अब तक अपने लिये योग करते थे अब धरती योग करना होगा। अब खाली पड़े स्थानों पर प्रतिमायें नहीं बल्कि पेड़ों को लगाना होगा तभी भविष्य सुरक्षित रह सकता है।

हरियाली अमावस्या के अवसर पर स्वामी जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि आईये अपने पर्वों व त्यौहारों को पर्यावरण संरक्षण से जोडें तथा ’पर्यावरण के पैरोकार और पृथ्वी के पहरेदार बने। जन शक्ति-जल शक्ति बने; जल जागरण-जन जागरण बने, अपने जन्मदिवस, पर्व और त्योहारों के अवसर पर पेडे नहीं पेड़ बाँटे; हर मेड पर लगें पेड़; मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी; शिव जी के गले के अभिषेक के साथ अपनी गली का भी अभिषेक; मेरा गांव-मेरा गौरव; मेरा शहर, मेरी शान के संकल्प के साथ प्रकृति के अनुरूप जीवन जिये।

 

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