ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में श्री निशंक जी ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट की। दोनों विभूतियों ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती के शुभ अवसर पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही उनके एकात्म मानववाद के सिद्धांत की महत्ता और आज के समय में प्रासंगिकता के विषय में चर्चा की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक महान राष्ट्रवादी विचारक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उनके द्वारा प्रतिपादित “अंत्योदय” और “एकात्म मानववाद” के सिद्धांत आज भी समाज और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  

अंत्योदय का सिद्धांत समाज के सबसे पीछे खड़े व्यक्तियों के उत्थान पर केंद्रित है। यह विचार आज भी प्रासंगिक है क्योंकि यह समावेशी विकास और सामाजिक न्याय को समर्पित है। एकात्म मानववाद का सिद्धांत मानवता की एकता और समग्र विकास पर जोर देता है। यह विचार आज के समय में भी महत्वपूर्ण है, जब हम वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। वर्तमान समय में पूरे विश्व को एक संतुलित और समृद्ध समाज की आवश्यकता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एक श्रेष्ठ चिन्तक और संगठनकर्ता थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को वर्तमान समय के अनुसार सब के लिये उपयोगी और सर्वहित का आकार देकर प्रस्तुत की। वे एक ऐसी समावेशी विचारधारा के समर्थक थे जिससे भारत एक मजबूत और सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बन सके।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी प्रखर वक्ता, श्रेष्ठ चिंतक और राष्ट्रसमर्पित दार्शनिक थे जिनका चिंतन सदैव ही देश की उन्नति के लिये था। उन्होंने ‘मानव एकात्म दर्शन’ जैसा श्रेष्ठ चिंतन दिया। वर्तमान समय में भी उनका स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने मानव के संपूर्ण विकास के लिये भौतिक विकास के साथ आत्मिक विकास पर भी बल दिया। साथ ही, उन्होंने एक वर्गहीन, जातिहीन और संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी।

दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की जरूरत है जिसमें सब के पास स्वच्छ जल हो, मौलिक सुविधायें हो, हर हाथ को रोजगार प्राप्त हो ताकि सभी गरिमापूर्ण जीवन जी सके। भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत और लोकल के लिये वोकल होने का संदेश दिया जिससे निश्चित रूप से हर हाथ को रोजगार मिल सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि युवाओं को यह ध्यान देना होगा कि ‘मेरा गांव, मेरा तीर्थ बने तथा मेरा गांव, मेरी शान बने’ इसके लिये सभी को अपनी जीवनशैली और सोच में बदलाव लाना होगा। अब हमें ग्रीड कल्चर से ग्रीन कल्चर की ओर बढ़ना होगा ग्रीड कल्चर से नीड कल्चर की ओर बढ़ना होगा और नये कल्चर की ओर बढ़ना होगा, ग्रीन विजन को अपनाना होगा तथा प्रकृति के साथ जीना होगा क्योंकि यही मार्ग हमारे ऋषियों ने भी हमें बताया है।

श्री निशंक जी ने कहा कि आज के युवाओं को बेहतर शिक्षा और संघटन शक्ति के महत्व को जानना अत्यंत आवश्यक है। हमारे पूर्वजों ने जो बड़े-बड़े आन्दोलन किये वह शिक्षा व संघटन शक्ति के बल पर ही किये, आज भी समाज में इसकी जरूरत है। उन्होंने कहा कि पूज्य स्वामी जी भारत ही नहीं पूरे विश्व में अध्यात्म की शक्ति, भारतीय संस्कृति की शक्ति के माध्यम से एकता और संघटन के लिये अद्भुत कार्य कर रहे हैं। स्वामी जी अपने उद्बोधनों के माध्यम से न केवल बाहरी वातावरण बल्कि आतंरिक व्यवहार में भी परिवर्तन के लिये अद्भुत कार्य कर रहे हैं। आगे आने वाली पीढ़ियाँ उनके इस योगदान को सदैव याद करेगी। स्वामी जी ने माननीय निशंक जी को रूदाक्ष का पौधा भेंट किया।

 

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