*जीवन मूल्यों और चरित्र निर्माण के लिये सद्साहित्य व शास्त्रों की भूमिका महत्वपूर्ण*

*बच्चों के खेल के अवसरों को सीमित करना उनके विकास में बाधक*

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आज अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों को शारीरिक स्वास्थ्य के लिये खेल और मानसिक स्वास्थ्य के लिये श्रेष्ठ साहित्य के अध्ययन हेतु प्रेरित किया और वेद, वेदांग, मनुस्मृति, रामायण, महाभारत, गीता, योगसूत्र, श्रीमद्भागवत आदि सद्ग्रंथ भेंट किये। 

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विद्यार्थियों व युवाओं के सार्वभौमिक विकास के लिये शारीरिक व मानसिक दोनों का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है। खेल व स्वाध्याय दोनों ही जुनून के साथ किया जाये तो जीवन में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि खेल बच्चों के शरीर के लचीलेपन, रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देता है। साथ ही इससे सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित किया जा सकता है, वैसे ही श्रेष्ठ साहित्य व शास्त्रों का अध्ययन, मनन, चिंतन और निदिध्यासन से स्वभाव में सरलता, सहिष्णुता, करूणा, सहजता और दूसरों के प्रति आदर की भावना विकसित होती है।

स्वामी जी ने अभिभावकों का आह्वान करते हुये कहा कि बच्चों के लिये खेल के अवसरों को सीमित करने से उनके विकास में बाधा पड़ती है इसलिये उन्हें खेलने के लिये प्रेरित किया जाये साथ ही स्वाध्याय की आदत भी विकसित करना जरूरी है क्योंकि स्वाध्याय आत्मा का भोजन है।

स्वामी जी ने कहा कि जीवन मूल्यों और चरित्र निर्माण के लिये सद्साहित्य व शास्त्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समाज के नवनिर्माण में साहित्य व खेलों की केंद्रीय भूमिकायें रही हैं। दोनों समाज के दिशा-बोध हैं। श्रेष्ठ साहित्य समाज को संस्कारित करने के साथ-साथ जीवन मूल्यों की भी शिक्षा देता है और खेल, सामाजिक भावना विकसित करने के साथ स्वस्थ शरीर प्रदान करता है। साहित्य समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला रखता है तो खेल, शरीर की उन्नति व विकास के लिये अत्यंत आवश्यक है।

स्वामी जी ने कहा कि बच्चे, खेल के माध्यम से सबसे बेहतर सीखते हैं। खेल विकास के सभी क्षेत्रों बौद्धिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये अत्यंत आवश्यक है। खेल के माध्यम से, बच्चे दूसरों के साथ संबंध बनाना और नेतृत्व कौशल को बढ़ा सकते हैं। जब बच्चे खेलते हैं, तो वे सुरक्षित महसूस करते हैं। रिश्तों और सामाजिक चुनौतियों से निपटने के साथ ही वे अपने डर पर भी विजय प्राप्त करना सीखते हैं। खेल के माध्यम से बच्चे अपने आस-पास की दुनिया को समझने लगते हैं।

यूनाइटेड नेशंस के आंकडें कहते हैं कि 71 प्रतिशत बच्चों का कहना है कि खेलने से उन्हें खुशी मिलती है, और 58 प्रतिशत का कहना है कि इससे उन्हें दोस्त बनाने और दूसरों के साथ अच्छा समय बिताने में मदद मिलती है। वही दूसरी ओर दुनिया भर में 160 मिलियन बच्चे खेलने या सीखने के बजाय छोटी सी उम्र में काम कर रहे हैं। 4 में से केवल 1 बच्चा नियमित रूप से अपनी गली में खेलता है। 41 प्रतिशत बच्चों को उनके माता-पिता या पड़ोसियों जैसे अन्य वयस्कों द्वारा बाहर खेलना बंद करने के लिए कहा जाता है ये सब आंकडें भयावह है। हमें अपने बच्चों के भविष्य को संवारना है तो उनके सार्वभौमिक विकास पर ध्यान देना होगा।

 

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