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विश्व चिल्ड्रन दिवस*
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देश का भविष्य बच्चों के वर्तमान को सुरक्षित, शिक्षित, संस्कारित और समर्थ बनाने में निहित*
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बच्चे वास्तव में ईश्वर का जीवंत स्वरूप*
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बच्चों को कार दे या न दे, परन्तु संस्कार अवश्य दें*
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स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
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परमार्थ निकेतन व परमार्थ विद्या मन्दिर, परमार्थ नारी शक्ति केन्द्र में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन*
ऋषिकेश। आज विश्व चिल्ड्रन दिवस के पावन अवसर पर संपूर्ण मानवता, विशेषकर हमारे प्यारे, मासूम और उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होते बच्चों को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह दिन आत्मचिंतन, सामूहिक संकल्प और भविष्य के निर्माण की दिशा में कदम बढाने का है। बच्चे केवल परिवार की खुशियाँ नहीं, बल्कि राष्ट्र की दिशा और विश्व का भविष्य हैं। उनकी आँखों में आशा का उजाला है, उनकी जिज्ञासा में ज्ञान की ज्योति है और उनकी सरलता में दिव्यता का स्पर्श है।
बच्चे वास्तव में ईश्वर का जीवंत स्वरूप हैं। जब कोई बच्चा मुस्कुराता है, तो वह केवल घर का वातावरण ही नहीं, सम्पूर्ण परिवेश को पवित्र कर देता है। जब बच्चा सीखता है, तो वह केवल ज्ञान ही प्राप्त नहीं करता बल्कि वह मानवता को विकसित करता है। उनकी मासूम मुस्कान हमें यह याद दिलाती है कि जीवन कितना सुंदर है और इसे प्रेम, करुणा और सरलता के साथ जीना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में बच्चों को हमेशा सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। हमारे पुराणों, वेदों और किंवदंतियों में बचपन को पवित्र, निर्मल और सृजनात्मक शक्तियों से भरा माना गया है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि बच्चों को कार दे या न दे, परन्तु संस्कार अवश्य दें। आधुनिक सुविधाएँ जीवन को आसान बना सकती हैं, परंतु चरित्र निर्माण केवल संस्कार ही कर सकते हैं।
हमारे इतिहास में इसके अनेक प्रेरणादायी उदाहरण मिलते हैं। महात्मा गांधी जी की माता पुतलीबाई प्रतिदिन सूर्याेदय के दर्शन किए बिना जल तक ग्रहण नहीं करती थीं। यही अनुशासन, यही आध्यात्मिकता और यही चरित्रधन ने मोहनदास को “महात्मा” बना दिया। स्वामी विवेकानन्द जी अपनी माताजी भुवनेश्वरी देवी से प्राप्त संस्कारों और उपदेशों को अपने जीवन का सबसे बड़ा धन मानते थे। वे कहते थे कि उनकी शिक्षा, ताकत और तेज का मूल उनकी माता की गोद में ही पड़ा था। एक महान संत, नेता या कर्मयोगी केवल विद्यालयों में नहीं, बल्कि माताओं के हृदय और घर के वातावरण में तैयार होते है।
आज विश्व बाल दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि देश का भविष्य बच्चों के वर्तमान को सुरक्षित, शिक्षित, संस्कारित और समर्थ बनाने में निहित है। तेजी से बदलती दुनिया, तकनीक की उन्नति और प्रतियोगी जीवनशैली के बीच बच्चों को केवल आधुनिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि मूल्य, करुणा, जिम्मेदारी और आत्मानुशासन की भी उतनी ही आवश्यकता है। यदि शिक्षा, विज्ञान और तकनीक के साथ भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों का समन्वय किया जाए तो बच्चे न सिर्फ बुद्धिमान बनेंगे, बल्कि विवेकशील, संवेदनशील और चरित्रवान नागरिक बनकर उभरेंगे।
स्वामी जी ने कहा कि आज का भारत विश्व का सबसे युवा देश है, और यह युवाशक्ति तभी अर्थपूर्ण बनेगी जब उसका आधार प्रेम, सुरक्षा और संस्कारों पर टिका हो। बच्चों का बचपन चिंता और भय से मुक्त होना चाहिए। उन्हें ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जहाँ वे खुलकर सपने देख सकें, सीख सकें और विकसित हो सकें। उनके मन में करुणा हो, सोच में स्वच्छता हो और जीवन में सेवा का भाव हो, यही एक संवेदनशील समाज की पहचान है।
स्वामी जी ने कहा कि बच्चे हमारे कल नहीं, बल्कि आज की जिम्मेदारी हैं। उनकी मुस्कान को सुरक्षित रखना, उनके सपनों को पंख देना और उनके जीवन में मूल्यों की नींव डालना हम सबका कर्तव्य है। जब बच्चे संस्कारित होते हैं, तो समाज स्वतः संस्कारित होता है। जब बच्चे सुरक्षित होते हैं, तो राष्ट्र सुरक्षित होता है। और जब बच्चे आत्मविश्वासी होते हैं, तो भविष्य शक्तिशाली होता है।
आज के दिन आइए हम यह संकल्प लें कि बच्चों के जीवन में प्रेम, सुरक्षा और आदर्शों की रोशनी को निरंतर प्रज्वलित रखें। उन्हें सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि संस्कार दें। उन्हें केवल शिक्षा नहीं, बल्कि दिशा दें। उन्हें केवल अवसर ही नहीं, बल्कि प्रेरणा भी दें। यदि हम आज बच्चों के जीवन में दिव्यता, संस्कृति और शिक्षा का समन्वय कर दें तो वे, संवेदनशील, सजग और संस्कारित नागरिकों के रूप में कल भारत के उजाले बनकर उभरेंगे।
इस विश्व बाल दिवस पर हम सभी बच्चों को हृदय से आशीर्वाद देते हैं कि उनका जीवन आनंद, ऊर्जा, करुणा और सफलता से भरपूर हो। वे जहाँ भी जाएँ, प्रकाश फैलाएँ और मानवता को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँ।
