ऋषिकेश, चित्रकूट। चित्रकूट में आयोजित तीन दिवसीय श्री रामकिंकर जी महाराज जन्म शताब्दी समारोह में माननीय सरसंघचालक, आधुनिक वैज्ञानिक, ऋषि डॉ. मोहन भागवत जी, श्रद्धेय पूज्य मोरारी बापू, श्रद्धेय पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी, महर्षि उत्तम स्वामी जी और अन्य पूज्य संतों व विशिष्ट विभूतियों ने सहभाग किया। श्री रामकिंकर जी महाराज जन्म शताब्दी समारोह का दिव्य व भव्य आयोजन स्वामी मैथलीशरण जी महाराज के कुशल नेतृत्व, मार्गदर्शन व संरक्षण में आयोजित किया गया।
माननीय सरसंघचालक, आधुनिक वैज्ञानिक, ऋषि डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि मन व मनुष्य की स्वाभाविक गति नीचे की ओर है, इसलिये ऊपर जाने का प्रयत्न करना होगा। भारत ने हमेशा से ही सुख को बाहर नहीं, अंदर खोजा है। हमारी रंग, रूप, वेशभूषा अलग-अलग है परन्तु हम सभी एक हैं और यही हमारी विशेषता है।
सबकी धारणा करने वाला, सबको एक करने वाला, सबको देने के लिये, परोपकार करने वाला ही सनातन धर्म है। सृष्टि पर धर्म व अधर्म दोनों ही हैं। धर्म जानकारी से नहीं, आचरण से प्राप्त होता है।
रामायण व महाभारत दोनों ही सर्वव्यापी ग्रंथ हैं। महाभारत हमें दुनिया कैसी है यह दिखाता है और रामायण हमें दुनिया में कैसे रहना है यह दिखाता है। कलयुग के समय में जो अपने में सतयुग लाकर चलते हैं, वे श्री रामकिंकर जी जैसे महापुरुष होते हैं।
कथा से जीवन को उन्नत करने वाला सार प्राप्त होता है। कथाएँ श्रद्धालुओं को आचरण प्रदान करती हैं, जीवन में परिवर्तन करती हैं। सत्य कभी दबता या मरता नहीं बल्कि वह खड़ा होकर बोलता है। विश्व में कोई युद्ध न हो, इसलिये सभी के हृदयों को अयोध्या बनना होगा।
भारत में महापुरुषों व पूज्य संतों की अखंड परम्परा हमें प्राप्त हो रही है। इस दिव्य समारोह में मैं आकर पावन हो गया, यहां पर पूज्य संतों का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ।
सनातन धर्म दुनिया को प्रदान करना हिन्दू समाज व भारत का कर्तव्य है। हमें भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देना है। भारत की थाती को कथाकार वर्तमान पीढ़ी के हृदय में स्थापित कर रहे हैं। उन्होंने मोक्षधर्म व राजधर्म का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया।
श्रद्धेय पूज्य मोरारी बापू ने कहा कि चित्रकूट की भूमि में अनेक चरित्र समाहित हैं और प्रभु श्री राम व माता सीता तो यह भूमि छोड़कर गए ही नहीं।
उन्होंने श्रीरामकिंकर जी महाराज की पांच चेतनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि साधु किसी की प्रतिष्ठा को नहीं, निष्ठा को प्रणाम करते हैं। संतों के आने से पूरा वातावरण प्रकाशित हो जाता है।
नदियाँ प्रवाहमान परमात्मा हैं और पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने नदियों के रूप में प्रवाहमान परमात्मा का आरती का दिव्यक्रम शुरू किया मैं उनकी इस साधना की आरती करता हूँ।
जगत में कई लोग सबल होते हैं परन्तु सरल नहीं होते। भारतीयों की आँखें, चर्मचक्षु नहीं बल्कि सनातन की आँखें हैं। सनातन, शब्द की गरिमा अद्भुत है। सरल, सबल और संवेदनशील होना संत की निशानी है। जिस देश में वेद हो और संवेदना न हो, यह सम्भव नहीं है।
उन्होंने कहा कि धन्य घड़ी जब होई सत्संग। यह तीन दिवसीय उत्सव, समय, पल व घड़ी धन्य है जब श्रीरामकिंकर जी का जन्म शताब्दी महोत्सव मना रहे हैं। मनुष्य के शरीर में पंचमहाभूत होते हैं परन्तु श्री रामकिंकर जी महाराज की कथा में पांच तत्व होते थे – प्रथम तत्व विश्वास, दूसरा विचार पक्ष, तीसरा वे राजऋषि स्वरूप थे, चतुर्थ श्रीराम कथा का विलास स्वरूप और पंचम विरागपक्ष व विनोद स्वरूप था। अद्भुत वैरागी संत थे श्री रामकिंकर जी महाराज। जो संत मुस्कराहट न दे सके तो मोक्ष कैसे दे सकते हैं।
श्रद्धेय पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि संसार में एक ही द्वार ऐसा है जहां पर पुरस्कार नहीं मिलते बल्कि जीवन का परिष्कार होता है। गुरु के श्री चरणों से परिष्कार की धारा प्रवाहित होती है, उस धारा में जो स्नान कर लेता है वह धन्य हो जाता है।
शक्ति है तो सृष्टि है। महाकवि तुलसी दास जी, पूज्य श्री रामकिंकर जी और पूज्य मोरारी बापू जी शक्ति की त्रिवेणी हैं। सनातन समाज को बहुत कुछ सोचना है। सनातन की यात्रा अहं की नहीं वयं की यात्रा है। उन्होंने कहा कि हर भारतीय, परमात्मा का जीता-जागता हस्ताक्षर है, सनातन का हस्ताक्षर है। सनातन मूल व मूल्य बचे रहने के लिये हमें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा क्योंकि सनातन है तो मानवता है। हमारे हिन्दू भाई-बहन विदेश की धरती पर गए परन्तु उन्होंने वह छोटा सा गुटका नहीं छोड़ा। श्रीरामचरित मानस का गुटका और हनुमान जी की ध्वजा आज भी उनके घरों पर लहरा रही है।
श्रीरामकिंकर जी महाराज केवल एक कथाकार नहीं बल्कि वे एक चलती-फिरती लाइब्रेरी थे; वे एक ग्रंथ नहीं बल्कि ग्रंथालय थे; वे इनसाइक्लोपीडिया थे।
इस अवसर पर उन्होंने एकरूपता नहीं, एकात्मकता का संदेश दिया। इस समय भारत को भारत के दृष्टि से देखने की जरूरत है। भारत के महापुरुषों ने नारों में नहीं, इशारों में पूरे विश्व को बहुत कुछ कह दिया है। भारत, नारों के बल पर नहीं, विचारों के बल पर जीता है। भारत, ताकत व तलवारों के बल पर नहीं बल्कि संस्कारों व संस्कृति के बल पर जीता है। भारत के पास सरकारी नहीं, संस्कारी संस्कार हैं।
उन्होंने कहा कि राम का ध्यान करें लेकिन राष्ट्र को जीवन दें। देवभक्ति अपने-अपने में घरों करे लेकिन देशभक्ति सब मिलकर करें। इस देश ने कभी बदला नहीं लिया बल्कि बदलाव किया। जाति (कास्ट) का सम्मान करें लेकिन अब कास्ट से ऊपर उठकर राष्ट्र की बात करें। भारत की धरती मिलने व मिलाने की धरती है। भारत ने कभी किसी को मिटाया नहीं है, भारत तो शांति की धरती है।
ये चित्रकूट की धरती, चरित्रकूट की धरती है; यहाँ पर चरित्र कूट-कूट कर भरा है, उनमें से एक दिव्य चरित्र श्री रामकिंकर जी महाराज का है। चित्रकूट की धरती प्रसिद्ध होने की नहीं, सिद्ध होने की है, चित्रकूट की धरती कुछ बनने की नहीं, होने की धरती है। ये पद की नहीं, पादुका की धरती है, ये हस्तमिलाप की नहीं, भरतमिलाप की धरती है।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह समय वक्फ बोर्ड से वाकिफ होने का है, अब वक्फ का भी वक्त आ गया है।
श्रद्धेय महर्षि उत्तम स्वामी जी ने कहा कि श्री रामकिंकर जी महाराज ने जो सनातन के लिये कार्य किया वह अद्भुत है। संतों इस संसार में सेवा, सत्य, अध्यात्म, सनातन व सच्चाई के बीज सदैव फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन्होंने पूज्य श्री रामकिंकर जी को देखा है, अर्थात उन्होंने भगवान श्री राम को देखा है।
श्रद्धेय पूज्य स्वामी मैथलीशरण जी ने सभी पूज्य संतों को प्रणाम करते हुए कहा कि मैं भागवत जी के रूप में भारत को प्रणाम करता हूँ, पूज्य बापू जी के रूप में समुद्र को प्रणाम करता हूँ, पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी के रूप में माँ गंगा को प्रणाम करता हूँ। जो देता है उसे आकाश कहते हैं, आप सभी पूज्य संत आकाश के समान हैं। यहाँ पर ज्ञान, भक्ति और कर्म के रूप में पूज्य संतों का दिव्य संगम हुआ है। उन्होंने कहा कि आज जो कुछ भी है वह पूज्य गुरूदेव का दिव्य आशीर्वाद ही हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आदरणीय श्री मोहन भागवत जी और सभी पूज्य संतों को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट किया।