हरिद्वार। कुंभ स्नान करने से एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ, एक सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल मिलता है। मनुष्य को अपने जीवन काल में कम से कम एक बार कुंभ मेला के शाही स्नान पर स्नान अवश्य करना चाहिए। हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में प्रत्येक 12 वर्षों के उपरांत कुंभ का आयोजन होता है। इस वर्ष मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि पर्व तक त्रिवेणी संगम में स्नान का शुभ योग बना है। सभी श्रद्धालुओं को इस पुण्य अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
उक्त विचार श्री शिवोपासना संस्थान, डरबन, साउथ अफ्रीका व शिव उपासना धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट, हरिद्वार के संस्थापक अध्यक्ष स्वामी रामभजन वन जी महाराज ने रविवार को प्रेस को जारी बयान में व्यक्त किए।
बताते चलें कि तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में शामिल होने मारिशस से पधारे श्री तपोनिधि पंचायती अखाड़ा निरंजनी के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन जी महाराज ने कहा कि कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है. कुम्भ का पर्याय पवित्र कलश से होता है. इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है. कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रूद्र, आधार को ब्रम्हा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए कुंभ स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ स्नान से शारीरिक और आत्मिक शुद्धि होती है, जीवन में सुख-समृद्धि मिलती है, अमृत तत्व की प्राप्ति होती है, नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और सकारात्मकता आती है। उन्होंने कहा कुंभ स्नान से शारीरिक शुद्धि और संत दर्शन , कथा प्रवचन, सत्संग से मानसिक शुद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।