*माघ पूर्णिमा, कल्पवास की पूर्णता का पर्व*
*संकल्प की संपूर्ति, आनंद और उत्साह का पर्व*
*डा साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सानिन्ध्य में विश्व के 30 से 35 देशों से आये श्रद्धालुओं ने भजन, कीर्तन और मंत्रोपचार के साथ किया संगम में स्नान*
प्रयागराज। महाकुंभ की दिव्य धरती, माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सम्पूर्ण विश्व को इस दिव्य पवित्र स्नान की शुभकामनाएँ दीं। इस अवसर पर परमार्थ निकेतन, शिविर प्रयागराज में विश्व के लगभग 30 से 35 देशों से आये श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान, ध्यान और यज्ञ किया। डा. साध्वी भगवती सरस्वती जी के मार्गदर्शन में परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों व श्रद्धालुओं ने भजन, कीर्तन और मंत्रोपचार के साथ संगम में स्नान किया।
माघ पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन देवता, पितर और ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ पृथ्वी पर विचरण करती हैं, और यही कारण है कि इस दिन प्रभु आराधना, स्नान, ध्यान, दान और पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में माघ पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से गंगा स्नान का महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु गंगा में निवास करते हैं, और गंगा जल के स्पर्श से आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने नदियों की सफाई और संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि नदियाँ न केवल हमारे जीवन का आधार हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और सभ्यता की भी प्रतीक हैं। जल का संरक्षण जीवन का संरक्षण है। उन्होंने कहा कि जल चेतना जन चेतना बने और जल क्रांति जन क्रांति बने, ताकि हम आने वाले जल संकटों का समाधान कर सकें और जल के महत्व को समझ सकें।
माघ पूर्णिमा स्नान केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस समय में ठंड खत्म होने की ओर रहती है और शिशिर ऋतु की शुरुआत होती है। ऋतु परिवर्तन के साथ शरीर में उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए नदियों में स्नान करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। स्नान करने से शरीर में ताजगी और ऊर्जा का संचार होता है, जो जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है। हमारी नदियाँ केवल जलवाहिकाएँ नहीं हैं, बल्कि ये प्रकृति और धरती की जीवनदायिनी शक्ति हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन नदियों को प्रदूषण और प्लास्टिक मुक्त रखें। नदियों का संरक्षण करना हम सभी का कर्तव्य है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका उपयोग कर सकें और इनसे प्राप्त शुद्ध जल से जीवन के वास्तविक सुख का अनुभव कर सकें।
आजकल जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुकी है। जल विशेषज्ञों के अनुसार, आनेवाले समय में जल को लेकर वैश्विक संघर्ष हो सकते हैं, और इससे जल शरणार्थियों की संख्या भी बढ़ सकती है इसलिए जल का संरक्षण और संवर्धन अत्यंत आवश्यक है। स्वामी जी ने यह भी कहा कि जल है तो जीवन है, जल है तो कल है, जल है पूजा है और प्रार्थना है और जल है तो कुम्भ है और हम सब यहां पर है।
स्वामी जी ने कहा, माघ पूर्णिमा का स्नान केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और जीवन के उद्देश्य की पहचान करने का एक दिव्य अवसर है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने माघ पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को संकल्प लेने का आह्वान किया कि वे अपने जीवन में जल के महत्व को समझें, नदियों को प्रदूषणमुक्त रखें और आत्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर हों।