-कुरूक्षेत्र की दिव्य भूमि का किया पूजन, अर्चन व वंदन
-गीता जी ज्ञान, कर्म और भक्ति का महासागर, जीवन के विषाद को प्रसाद में बदलने का महाग्रंथ है गीता जी
-भारत नरेटिव व नारों के बल पर नहीं विचारों के बल खड़ा है, भारत ताकत व तलवारों के बल पर नहीं संस्कारों के बल पर खड़ा है
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कुरुक्षेत्र की धरती से देशवासियों को गीता जयंती की शुभकामनायें दी। गीता के प्रसिद्ध विद्वान स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने आह्वान किया कि सभी मिलकर आज 11 दिसम्बर को 11 बजे गीता के तीन महत्वपूर्ण श्लोक ’’पहला श्लोक, अध्याय 9 का मध्य श्लोक (श्लोक 22), और गीता का अंतिम श्लोक’’ सभी एक साथ, एक समय पर पाठ करें।
गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी के इस दिव्य अभियान में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, माननीय केंद्रीय मंत्री, ग्रामीण विकास और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, श्री शिवराज सिंह चैहान जी, माननीय मुख्यमंत्री, हरियाणा, श्री नायब सिंह सैनी जी, कृषि एवं पशुपालन मंत्री श्री श्याम सिंह राणा जी, तंजानिया के मिनिस्टर आदि अनेक विभूतियों ने मिलकर बांगलादेश में उत्पीड़ित हिंदू समुदाय के लिए समर्थन व्यक्त करते हुये गीता पाठ के साथ प्रार्थना की ताकि पूरे विश्व में शांति और धार्मिक सहिष्णुता बनी रहे।
पूज्य संतों ने सभी को एकजुट होने आह्वान किया ताकि अपने धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा के लिए मिलकर काम कर सकें। हिन्दू समुदाय विगत कुछ वर्षों से धार्मिक हमलों और अत्याचारों का सामना कर रहा हैं। बांगलादेश में हिंदू समुदाय लगातार हिंसा, हमलों और मंदिरों की तोड़फोड़ का शिकार हो रहे हंै। बांगलादेश में हिंदू समाज को सुरक्षा, सम्मान और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की आवश्यकता है। इस ओर अगर एकजुट प्रयास करें तो वहां के हिंदू समाज को समर्थन मिलेगा और इन अत्याचारों को रोकने में मदद मिलेगी। उन्होंने बांगलादेश की सरकार से भी कहा कि जिन हिन्दूओं को बंद कर रखा है उन्हें तुरंत रिहा किया जाये; अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित न किया जाये, नकारात्कता को बढ़ावा न दे। इस्कान एक ऐसी संस्था है जो हरि संकीर्तन के माध्यम से गीता के संदेश, शान्ति के संदेश को पूरे विश्व में प्रचारित करती हैं। ऐसी दिव्य संस्था पर किसी भी तरह का बैन नहीं लगना चाहिये। ऐसी संस्थाओं पर बैन लगने का मतलब एक नये आतंक को पैदा करना। अब समय आया है कि हम इन सब चीजों से उपर उठकर वैश्विक शान्ति के लिये सभी देश मिलकर कार्य करें। यही समय की मांग भी है।
इस अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कुरूक्षेत्र की पावन धरती भारतीय इतिहास और संस्कृति में उत्कृष्ट स्थान रखती है, यह गीता जी की धरती है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जो जीवन के प्रत्येक पहलू को समझने और सही मार्ग पर चलने का अद्वितीय मार्गदर्शन करती है। कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान पर, जब अर्जुन अपने कर्तव्यों और धर्म को लेकर असमंजस में थे, तब भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया, जो न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए शाश्वत संदेश है। गीता जी का संदेश कालातीत और सार्वभौमिक है।
स्वामी जी ने कहा कि गीता जी का उपदेश कर्म, भक्ति और ज्ञान का दिव्य संगम है। कुरुक्षेत्र की धरती पर दिए गए इस दिव्य उपदेश ने न केवल अर्जुन का जीवन बदला, बल्कि पूरी मानवता को एक नया दृष्टिकोण और दिशा दी। गीता हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कोई भी कठिनाई हो, हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, बिना किसी आसक्ति के, ईश्वर के मार्ग ही अपनाना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि गीता, बाहर का पाॅलिश नहीं बल्कि अन्दर का नरिशमेंट है। गीता केवल बाहरी आडंबर बल्कि यह आत्मा के भीतर की सच्चाई और शुद्धता को खोजने का दर्शन है। गीता हमें बताती है कि सच्ची सफलता और शांति बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि हमारे भीतर से आती है इसलिये हमारे कर्म, हमारे विचार और हमारी भक्ति केवल बाहरी दुनिया से जुड़ी नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह हमें आत्म-निर्माण और आत्म-निर्वाण की ओर प्रेरित करने वाली होनी चाहिये।
स्वामी जी ने कहा कि गीता जी भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ दिव्य संवाद ही नहीं है बल्कि जीवन के हर पहलू को समझने और उसे सशक्त बनाने का अद्वितीय मार्गदर्शन प्रदान करती है। गीता जी ज्ञान, कर्म और भक्ति का महासागर है, जो न केवल जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट करती है, बल्कि हमें उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सही दिशा भी दिखाती है।
गीता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण उपदेश है ज्ञान। ज्ञान वह दिव्य चक्षु है, जिसके माध्यम से हम अपने भीतर की सच्चाई को पहचानते हैं और जीवन के असली उद्देश्य को समझ पाते हैं। गीता हमें यह सिखाती है कि वास्तविक ज्ञान वह है, जो हमें आत्मा की अमरता और भगवान के साक्षात्कार से जोड़ता है।
गीता का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत कर्म है। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, तुम्हारा कर्म तुम्हारा धर्म है, उसे बिना किसी आसक्ति के करो। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि जीवन में कोई भी कार्य बिना उद्देश्य और जिम्मेदारी के नहीं किया जाना चाहिए।
गीता का तीसरा स्तंभ भक्ति है। भक्ति केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। गीता, जीवन के सबसे कठिन क्षणों को, विषाद को भी प्रसाद में बदल देती है। गीता के ज्ञान, कर्म और भक्ति के सिद्धांतों को अपनाकर न केवल अपने अंदर की उथल-पुथल को शांति में बदल सकते हंै, बल्कि जीवन के हर संघर्ष को एक अवसर के रूप में देख सकते हंै। अर्जुन को जब जीवन की चुनौतियों और युद्ध के मैदान में विषाद और असमंजस का सामना करना पड़ा, तब श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर उसे कर्म और भक्ति के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी।
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि जीवन जीने की कला का अद्वितीय ग्रंथ है। आइये गीता जी को जीएं, जुडें और जोड़ें। स्वामी जी ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संकल्प ’’एक पेड़ मां के नाम’’ को दोहराते हुये एक-एक पौधा लगाने का संकल्प कराया।