-उत्तराखंड की संस्कृति, परम्परा, धरोहर को सहेजने व संजोने में पूज्य संतों, महंतो, वर्तमान संस्कारी सरकार और प्रदेशवासियों की भूमिका महत्वपूर्ण
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य श्री मोरारी बापू के श्रीमुख से हो रही श्रीराम कथा में किया सहभाग
-पूज्य मोरारी बापू को परमार्थ निकेतन गंगा आरती में पधारने हेतु किया आमंत्रित

ऋषिकेश। देवभूमि उत्तराखंड का आज जन्मदिवस है। उत्तराखंड ने अपने 24 वर्ष पूर्ण किये व आज अपनी रजत जयंती मना रहा है। इस राज्य का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। इस पवित्र भूमि को वेदों की ऋचाओं, उपनिषदों के सूत्रों, पुराणों और अनेकों धार्मिक ग्रंथों के मंत्रों में वर्णित किया गया है। यह आध्यात्मिक साधना, योग, ध्यान, तपस्या और संकल्प की भूमि है। उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत अत्यंत समृद्ध और विविधताओं से युक्त है।
उत्तराखंड, चार दिव्य धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री का पवित्र घर है। यह भगवान श्रीहरि विष्णु और भगवान शिव की धरती है। जीवनदायिनी माँ गंगा और संरक्षक के रूप में हिमालय की छत्रछाया उत्तराखंड को पुष्पित और पल्लवित कर रही है। गंगा जी का पवित्र जल लोगों को आध्यात्मिक शांति और शुद्धता प्रदान करता है, वहीं हिमालय अपनी प्राकृतिक सुंदरता, स्वच्छ वायु और औषधीय जड़ी-बूटियों से इस भूमि को विशेष आशीर्वाद प्रदान कर रहा है। उत्तराखंड की यह दिव्य धरोहर न केवल इस प्रदेश को संजीवनी शक्ति प्रदान करती है, बल्कि यहाँ के निवासियों को भी स्वस्थ, समृद्ध और सशक्त बनाती है। गंगा और हिमालय की यह संगम उत्तराखंड को एक विशिष्ट, पूजनीय और दिव्य बनाता है। यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अनुपम है।
वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के पास प्राकृतिक आपदाओं, भूस्खलन, बाढ़, और भूकंप जैसी आपदाओं की चुनौती और दर्द है वही हिमालय की छत्रछाया में रहने वाले ये प्रदेशवासी अपनी धीरता और साहस के लिए जाने जाते हैं। हिमालय न केवल उन्हें चुनौती देता है, बल्कि उनके लिए दवा भी है। हिमालय की औषधीय जड़ी-बूटियाँ और स्वच्छ वायु प्रदेशवासियों के स्वास्थ्य के लिए वरदान है। हिमालय केवल वायु ही नहीं आयु भी देता है। इस भूमि की शांति, पवित्रता और प्राकृतिक सौंदर्य ही इसकी अद्वितीय धरोहर है, ऐसे विलक्षण राज्य के निवासी होने का हम सभी को गर्व है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गोपाष्टमी की शुभकामनायें देते हुये कहा कि वैदिक युग से लेकर आज तक, गौ माता की पूजा और सेवा भारतीय संस्कृति का अभिन्न है। यह दिव्य परंपरा हमें आध्यात्मिक उन्नति के साथ प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारे कर्तव्यों का भी स्मरण कराती है।
स्वामी जी ने कहा कि गौ संस्कृति को पुनर्जीवित करना हमारी परंपराओं, संस्कृति और आने वाली पीढ़ियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके पुनर्जीवन से हमारे समाज की जड़ों को मजबूती मिलेगी है साथ ही हमारे पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। गौ माता भारतीय समाज का अभिन्न अंग है जो हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन से गहराई से जुड़ी हुई है। गौ माता के गोबर और गौमूत्र से बने जैविक खाद और कीटनाशक मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं, जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहता; भूमि की गुणवत्ता में सुधार होता है और जल स्रोतों की भी सुरक्षा होती है। गौ माता से प्राप्त उत्पाद जैसे दूध, दही, घी, और पंचगव्य स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभदायक है। ये उत्पाद न केवल हमारे शरीर को पोषण प्रदान करते हैं, बल्कि यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। वर्तमान समय गौ संस्कृति का पुनर्जागरण का है क्योंकि यह हमारी परंपराओं, संस्कृति और संतति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य मोरारी बापू को परमार्थ निकेतन प्रांगण और माँ गंगा आरती में सहभाग हेतु आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने सहृदय स्वीकार किया।

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