*हरिद्वार ।* ऋषिकुल कॉलेज मैदान में आयोजित मानव उत्थान सेवा समिति की शाखा श्री प्रेमनगर आश्रम के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय सदभावना सम्मेलन के अंतिम दिन अपार भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक गुरु व सुविख्यात समाजसेवी श्री सतपाल जी महाराज ने कहा कि समय के सद्गुरु से अध्यात्म ज्ञान प्राप्त कर और साधना करने से व्यक्ति का मन शांति का, सद्भावना का अनुभव करता है।ऐसे ही जब अध्यात्म ज्ञान का प्रचार होगा तो देश में ही नहीं बल्कि विश्व में भी सद्भावना होगी।

श्री महाराज जी ने आगे कहा किरामचरितमानस में तुलसीदास जी लिखते हैं कि मैं सदगुरु महाराज की वंदना करता हूं,वो नर रूप में हरि हैं और वे कृपा के समुद्र हैं, जिनके वचन रवि की करनी करते हैं। रवि की करनी क्या है, प्रकाश करना, अंधकार को दूर करना। सूरज उदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है, सब पक्षी चहचहाने लगते हैं, फूल खिलने लगते हैं और जागृति हो जाती है समाज के अंदर, पर इतना ही नहीं, अगर आप विज्ञान की दृष्टि से देखें तो पत्तों के अंदर हरा पदार्थ होता है उसको क्लोरोफिल कहते हैं और जब उस पदार्थ के ऊपर सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो प्रकाश संश्लेषण होता है और उसका परिणाम क्या होता है कि जो कार्बन डाइऑक्साइड है वह ऑक्सीजन में परिणित हो जाती है। जो गंदी हवा है वह साफ हो जाती है, प्रदूषण को साफ करने की प्रक्रिया फोटोसिंथेसिस प्रकाश संश्लेषण है। अर्थात आपको जो प्राण देने वाली हवा है, जो आपको जीवन देने वाली हवा है, यह सूर्य के प्रकाश से होता है फोटोसिंथेसिस से होता है, तो गुरु महाराज की मैं वंदना करता हूं जो कृपा के समुद्र है और जिनके वचन रवि की करनी करते हैं। रवि की करनी अंधकार को दूर करना और प्राण देना है यह दोनों रवि की करनी है, तो सज्जनों उस परम प्रकाश के अनुभव के लिए न दीपक की जरूरत है, न किसी बत्ती की जरूरत है, न सूरज, न चंद्रमा की जरूरत है। वह स्वयंमेव प्रकाश है। यह अनुभव सदगुरु महाराज कराते हैं।

परम पूज्य माता श्री अमृता जी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि गुरु का सच्चा शिष्य वही होता है जो नित्य अपने गुरु महाराज जी की आज्ञा में रहकर अपने जीवन का निर्वाह करता है गुरु महाराज जी की आज्ञा में अपने पूरे जीवन को लगा देता है। ऐसा शिष्य नहीं जो ज्ञान तो प्राप्त कर ले, लेकिन जीवन में थोड़े से कष्ट आए, थोड़ी सी मुसीबत आए या कोई समस्या आयी तो फ़ौरन अपना रास्ता बदल दिया। हमें सच्चे शिष्य की तरह सदैव गुरु महाराज जी की आज्ञा में रहकर सेवा करते हुए भजन साधना करनी है। इसी से ही हमारा कल्याण होगा।

श्री महाराज जी के पौत्र अयांश जी के जन्मोत्सव पर वैदिक रीति-रिवाज से पूजा का कार्यक्रम हुआ, पूजन में संत महात्माओं व असंख्य भक्त समाज ने भाग लिया।

सम्मेलन में अपने विचार रखते हुए श्री विभु जी महाराज जी ने कहा कि भक्ति मार्ग में बड़े सूक्ष्म तरीके से चलना चाहिए। लोग कहते भी हैं कि जैसे तलवार की नोक होती है, उसी तरह धर्म पर चलने का पथ है, थोड़ा सा भी हम भटके या थोड़ा सा भी अहंकार आया, तो हम उस धर्म के रास्ते पर चल नहीं सकते। महान पुरुष हमें अपने आपसे और बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं तो हमें थोड़ा प्रयास करना चाहिए और गुरु महाराज जी की आज्ञा में रहना चाहिए।

सम्मेलन में उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल ले.जनरल श्री गुरमीत सिंह जी ने प्रतिभाग किया। महामहिम राज्यपाल का श्री विभुजी महाराज, श्री सुयश जी महाराज ने पुष्प गुच्छ व अंगवस्त्र देकर तथा श्री महाराज जी ने महामहिम राज्यपाल को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री महाराज जी, माता श्री अमृता जी व अन्य विभूतियों का माल्यापर्ण कर स्वागत किया। सम्मेलन में अनेक विद्वान संत-महात्मागणों ने भी अपने सत्संग विचार रखें। मंच संचालन डॉ. संतोष यादव जी ने किया।

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