-परमार्थ निकेतन में सेवा की परंपरा के अंतर्गत प्रतिदिन निराश्रितों, संतों एवं ज़रूरतमंदों के लिए तीनों समय भंडारे का आयोजन किया जा रहा है
-हमारा उत्तराखंड फिर खड़ा होगा
-हम सारी सीमाओं से ऊपर उठकर उत्तराखंडी बनें : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, धराली, पौड़ी जनपद के बुरांसी और बांकुड़ा गांवों में हुई भीषण अतिवृष्टि और भूस्खलन की त्रासदी ने पूरे प्रदेश ही नही पूरे देश को शोक में डुबो दिया है। इस विनाशकारी प्राकृतिक आपदा में कई अनमोल जानें चली गईं, सैकड़ों परिवार बेघर हो गए, और कई गांवों में जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया।
हर उजड़ा घर, हर टूटी हुई दीवार, और हर डबडबाई आंख यही कह रही है कि यह केवल एक भौगोलिक त्रासदी नहीं, यह हमारी सहनशीलता, हमारी सामूहिक चेतना और हमारी मानवीय संवेदनाओं की कसौटी है।
परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विदेश प्रवास से भेजे अपने संदेश में इस भीषण आपदा पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड की धरती केवल हिमालय की गोद नहीं, यह संकल्पों की जन्मभूमि है। यह वह देवभूमि है जहाँ पीड़ा को भी तपस्या की तरह सहा जाता है, जहाँ टूटना नहीं आता, केवल और अधिक मजबूती से खड़े होने का संकल्प आता है।
स्वामी जी ने कहा कि यह समय पीड़ितों को अकेला छोड़ देने का नहीं, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का है। यह समय पीड़ितों व प्रभावितों के आंसू पोंछने का है। पीड़ितों के लिए हमारे दिल, द्वार और दोनों हाथ खुले है। हम सब की एकता, सेवा, सहानुभूति और समर्पण ही इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
स्वामी जी ने कहा कि पहाड़ का दर्द भी पहाड़ की तरह ही होता है। इस समय प्रभावित क्षेत्रों में भोजन, आवश्यक दवाइयाँ, कंबल, तिरपाल, वस्त्र एवं प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं की अत्यंत आवश्यकता है। केन्द्र व राज्य सरकार तथा भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी व हमारी सेनायें दिन रात मेहनत कर रही है। अब हम सब का कर्तव्य है कि हम स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय करते हुए दूरदराज और जरूरतमंद क्षेत्रों में मदद पहुंचाने में सहयोग प्रदान करें। कई ऐसे गांव, जो अभी भी संचार से कटे हुए हैं, वहां तक पहुँचने के लिए हरसंभव प्रयास करें।
स्वामी जी ने देश-विदेश के सभी श्रद्धालुओं, सेवाभावी संगठनों, प्रवासी भारतीयों का आह्वान करते हुए कहा कि इस कठिन समय में उत्तराखंड को आपकी आवश्यकता है। आपकी एक सहायता, चाहे वह आर्थिक हो, चिकित्सा सामग्री हो, राहत पैकेट हो, या केवल एक सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना, वह अत्यंत मूल्यवान है। आइए, हम मिलकर उत्तराखंड को फिर खड़ा करें।
उन्होंने कहा कि इस त्रासदी की घड़ी में सहयोग देना केवल दान नहीं, यह हमारा मानवीय और राष्ट्रीय कर्तव्य है। राहत और पुनर्निर्माण का कार्य केवल सरकार और प्रशासन का दायित्व नहीं, हर संवेदनशील नागरिक का धर्म है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारा उत्तराखंड फिर खड़ा होगा, क्योंकि इसकी आत्मा अडिग है, इसकी संस्कृति अजेय है और इसकी जड़ें हिमालय जितनी गहरी हैं। उत्तराखंड बार-बार टूटने के बाद भी बार-बार उठा है क्योंकि यहां के लोगों के पास आत्मबल है। यह धरती पीड़ा को भी पुण्य में बदलने की शक्ति रखती है।
उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी एक होकर, धर्म, जाति, भाषा और सीमाओं से ऊपर उठकर एक उत्तराखंडी बनें। परमार्थ निकेतन में सेवा की परंपरा के अंतर्गत प्रतिदिन निराश्रितों, संतों एवं ज़रूरतमंदों के लिए तीनों समय भंडारे का आयोजन किया जा रहा है.

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