ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन मां गंगा जी के पावन तट पर आयोजित 34 दिवसीय श्री राम कथा के आज अन्तिम दिन सभी राम भक्तों को पद्मविभूषण श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानन्दाचार्य जी स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, कोषाध्यक्ष श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या, स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि जी, डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष डा साध्वी भगवती सरस्वती जी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार जी एवं पूर्व सूचना आयुक्त, हरियाणा श्री भूपेन्द्र धरमानी जी का पावन सान्निध्य, उद्बोधन व आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि प्रभु के नाम और प्रभु के यश का बड़ा ही महत्व है। सनातन धर्म की व्याख्या करते हुये कहा कि सनातन परमात्मा भगवान श्री राम ने, सनातन वेदों में, सनातन जीवों की, सनातन दुःखों की निवृति के लिये सनातन ग्रंथों में व्याख्या की उसी का नाम सनातन है।

उन्होंने कहा कि जो निरंतर रहता है उसे ही सनातन कहते हैं। जिसका न कोइ आदि है, न अंत है जो आदि भी है और अंत भी है वही सनातन है। वेदों में भगवान ने मान व यश दोनों को महान कहा है। हमने प्रभु का नाम अपने मन से नहीं बनाया बल्कि वेद से प्रतिपादित हुआ है और वह है ‘‘सीताराम’’। यहां पर हम जो कुछ कह रहे हैं वह प्रत्येक वाक्य वेद से ही होेता है।

महागं्रथ रामचरित मानस ऐसा दिव्य ग्रंथ है जिसकी रचना प्रभु ने गोस्वामी तुलसीदास जी से करायी। प्रभु श्री राम मेरे ईष्टदेव है और प्रत्येक चौपाई मेरे लिये एक ग्रंथ है। रामचरित मानस में चिर पुरातन के साथ नित नूतनता भी है। उन्होंने सुन्दरकांड की चौपाई का बड़ी ही सहजता से उल्लेख करते हुये कहा कि जीवन में अहं नहीं आना चाहिये निमिŸा मात्र बनकर कार्य करते रहे। उन्होंने कहा कि मेरा प्रभु श्रीराम जी से पारम्परिक संबंध है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जनसमुदाय ने हजारों वर्षों से चली आ रही महापुरूषों की दिव्य धारा के दर्शन तो नहीं किये परन्तु वर्तमान समय में भारतीय संस्कृति, संस्कार और सनातन संस्कृति के रूप में समाज में उपलब्ध है।

स्वामी जी ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस आ रहा है, वर्तमान समय में हमें योग के साथ सनातन योग की भी आवश्यकता है क्योंकि सनातन है तो हमारी संस्कृति है, संस्कार है, स्थायित्व है, एकता है, एकात्मकता है, गौरव है और सनातन ही सत्य है इसी की स्थापना के लिये हमारे ऋषियों व महापुरूषों ने पूरा जीवन लगा दिया। महापुरूषों से ही हमारी चेतना जागृत होती है। पूज्य स्वामी श्री रामभद्राचार्य महाराज जी भारतीय संस्कृति के दिव्य रत्न हैं।

कोषाध्यक्ष श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या, स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरि जी ने कहा कि श्रीराम कथा के श्रवण से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। हमारी संस्कृति में पूज्य संतों के साथ भक्तों व कथा श्रवण करने वाले श्रोताओं की भक्ति गायी है। अद्भुत है यह परमार्थ निकेतन का गंगा तट जहां पर एक ओर गंगा जी का दिव्य प्रवाह है और दूसरी ओर श्रीराम नाम की ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही है। श्रीराम कथा संसार की अजर-अमर कथा है। उन्होंने कहा कि श्रीराम भारत की आत्मा है। श्रीराम के बिना राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारा राष्ट्र मन्दिर श्री राम मन्दिर के रूप में खड़ा हो गया है। यह 500 वर्षों की दिव्य तपस्या का ही प्रताप है और यह सद्भाग्य हमारी पीढ़ी को प्राप्त हुआ है। भगवान श्रीराम ने हमें निर्भय रहने का संदेश दिया। सावधान रहना ही धर्म का सार है। भारत माता की सेवा करने की ललक हम सभी में होना चाहिये।

साध्वी भगवती सरस्वती जी ने आज विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा निवारण दिवस के अवसर पर कहा कि दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी सूखे से प्रभावित है। हमारी मिट्टी भी तेजी से प्रदूषित हो रही है। मिट्टी और भूमि की रक्षा करना एक वैश्विक चुनौती है। हमें आज मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों को महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच मिल सके। हम केवल तभी मानव जाति को भोजन दे पाएंगे और जलवायु और जैव विविधता संकट से निपट पाएंगे जब हमारे पास स्वस्थ मिट्टी होगी। इस वर्ष के मरुस्थलीकरण और सूखा दिवस का विषय – ‘भूमि के लिए एकजुट- हमारी विरासत! हमारा भविष्य! इसिलिये टिकाऊ भूमि प्रबंधन के समर्थन में समाज के सभी हिस्सों को संगठित करने का प्रयास करना होगा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *