-विजय, जज्बा और अमर चेतना का पर्व
-विजय दिवस, भारत की आत्मा की विजय
-सैनिक वेतन के लिये नहीं वतन के लिये लड़ते हैं : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में कारगिल विजय दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में ऋषिकुमारों ने तिरंगा हाथों में लेकर भारत की सेना के वीर बलिदानियों को अपनी भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। आज की परमार्थ गंगा आरती विशेष रूप से उन रणबाँकों को समर्पित की गई, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अद्वितीय शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए माँ भारती की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। सभी ने भारत की सीमाओं की रक्षा में शहीद हुए अमर बलिदानियों को कृतज्ञता और सम्मान के साथ नमन किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कारगिल विजय दिवस के अवसर पर कहा, हमारे सैनिक किसी वेतन के लिये नहीं, बल्कि वतन के लिये लड़ते हैं। उनका जीवन देश की सेवा और सुरक्षा के लिये समर्पित होता है। वे सीमाओं पर खड़े होकर न केवल गोलियों से लड़ते हैं, बल्कि हमारी नींद, हमारी आजादी, और हमारे तिरंगे की गरिमा की रक्षा के लिये अपना सब कुछ न्यौछावर करते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि जो वीर बर्फीली चोटियों पर देश के लिए अपना लहू बहाते हैं, वे किसी स्वार्थ या सम्मान के लिये नहीं, बल्कि माँ भारती के लिए मर-मिटने का जज्बा लेकर चलते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कारगिल विजय दिवस केवल एक युद्ध की स्मृति नहीं है, यह भारत की आत्मा की विजय का प्रतीक है। यह वह ज्वाला है जिसने हर भारतीय हृदय में राष्ट्रप्रेम की अग्नि को प्रज्वलित किया। यह कोई सामरिक जीत मात्र नहीं थी, बल्कि भारत की जुझारू चेतना की उद्घोषणा थी, वह आत्मा जो हिमालय से ऊँची है, गंगा से पवित्र और तिरंगे की तरह गौरवशाली है।
भारत के वीर सैनिकों का यह वाक्य या तो तिरंगा लहराकर आऊँगा, या उसमें लिपटकर आऊँगा। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि उन वीरों की विशाल राष्ट्रनिष्ठा और राष्ट्र प्रेम की अभिव्यक्ति है। मानव इतिहास में ऐसे समर्पण दुर्लभ हैं, यह आदर्श है शक्ति और भावना का केवल भारत में ही देखने को मिलती है।
आज हम भारतवासी उन सभी अमर बलिदानियों को शत-शत नमन करते हैं, जिनकी रगों में रक्त नहीं, मातृभूमि के लिए समर्पण बहता है। आज हम उन सभी का स्मरण करते हैं जिन्होंने न केवल अपनी जान दी, बल्कि देश की आत्मा को अक्षुण्ण रखा; मातृभूमि की रक्षा और सम्मान को अक्षुण्ण रखा।
1999 का कारगिल युद्ध भारतीय सेना के शौर्य की अद्भुत मिसाल है। पर्वतीय प्रदेशों में अत्यधिक दुर्गम सामरिक स्थितियों में जिस अद्भुत साहस, और रणनीति का परिचय दिया व अद्भुत था। कारगिल की वह लड़ाई आज भी हर भारतीय को राष्ट्र संगठित रखने का संदेश देती है।