*🌺विद्वत कुम्भ- भारतीय ज्ञान परम्परा की बैठकी*
*💥श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज का पावन सान्निध्य और आशीर्वाद*
*✨संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के सहयोग से, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेेश, सोनचिरैया और प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित*
*💥भारत के श्रेष्ठ मनीषियों के सान्निध्य में सनातन संस्कृति का अमृत स्नान*
*✨पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी का पावन सान्निध्य*
*🌺भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान परम्परा को युवाओं तक पहंुचाने का दिव्य अवसर*
*💐सांस्कृतिक पुनर्निर्माण, अतीत से जुड़ने और भविष्य को उज्जवल बनाने की दिशा में मील का पत्थर*
*💥सनातन संस्कृति का अमृत स्नान भारतीय संस्कृति का अद्वितीय महोत्सव*
ऋषिकेश। भारत की प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, ज्ञान परंपरा और अध्यात्मिक विरासत को पुनः जीवित करने का अनूठा अवसर, महाकुम्भ 2025 में परमार्थ निकेतन, शिविर में तीन दिवसीय विद्वत कुम्भ का आयोजन किया गया।
यह आयोजन विशेष रूप से भारतीय संस्कृति, योग, वेद, उपनिषद, और धार्मिक परंपराओं पर केंद्रित है ताकि नए पीढ़ी तक इस दिव्य ज्ञान को पहुँचाया जा सके।
विद्वत कुम्भ का आयोजन भारतीय ज्ञान परंपरा को समर्पित है, जिसमें भारत के श्रेष्ठ विद्वान, पूज्य संत और मनीषी एकत्रित हुये हैं। इस आयोजन का उद्देश्य भारतीय संस्कृति, धर्म, वेद, संस्कृत, योग, और दर्शन पर गहन विचार-विमर्श और संवाद करना है। इस बहुमूल्य अवसर पर भारतीय समाज और संस्कृति के अद्वितीय पहलुओं पर विचार विमर्श किया जा रहा है।
भारतीय समाज को अपनी गौरवमयी धरोहर से पुनः जोड़ने के साथ यह उत्सव सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा, जो महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं को भारत की महानता और समृद्धि का दर्शन करायेगा।
आज के समय में जब युवा वर्ग पश्चिमी संस्कृति और आधुनिकता के प्रभाव में आकर अपनी जड़ों से कटता जा रहा है, उन्हें इस आयोजन के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।
इस अवसर पर पूज्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति सहने और देने की संस्कृति है। भारतीय संस्कृति कठिनाईयों में आनंद की संस्कृति है, कल्पवास उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने तीर्थ की महिमा बताये हुये कहा कि तीर्थ हमें सब के कल्याण का संदेश देते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान परम्परा अनंत काल से विश्व में प्रेरणा का स्रोत रही है। यह हमारी पहचान, हमारी ताकत और हमारे इतिहास का अद्वितीय अंग है। इस संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाना आवश्यक है ताकि वे अपने मूल्यों, परंपराओं और आस्थाओं से जुड़ सकें।
वर्तमान समय में, जहां पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव तेजी से बढ़ता दिखायी दे रहा है, ऐसे समय में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से युवाओं को जोड़ना अत्यंत आवश्यक हो गया है। विभिन्न संस्कृतियों से सजी युवा पीढ़ी को भारतीय जीवन शैली, तात्त्विक विचारधारा, योग, ध्यान, संस्कृत, और वेदों के अद्वितीय ज्ञान से अवगत कराना आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि पूज्य जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज के अथक प्रयास के कारण ही हम श्रीराम मन्दिर के दर्शन कर पा रहे हैं।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि हमें महाकुम्भ के असली ताकत को विश्व तक ले जाना है। महाकुम्भ भारतीयों की आस्था, तप व त्याग का परिणाम है। महाकुम्भ, सनातन संस्कृति का आकर्षण है और ब्रह्मण्ड के आमंत्रण का पर्व है इसलिये इसका आनंद लें।
पद्म श्री मालिनी अवस्थी जी ने कहा कि नदियाँ ने पूरे देश को जोड कर रखा है। भूगोल ने हमें भले ही अलग किया हो परन्तु हमारी संस्कृति व नदियों ने हमें जोड़ कर रखा है। महाकुम्भ की असली ताकत तीर्थ यात्रियों का संयम, धैर्य व सहनशक्ति ही है।
इस दिन दिवसीय विद्वत महाकुम्भ में पद्म विभूषण डाॅ सोनल मानसिंह, प्रसिद्ध अभिनेता श्री पंकज त्रिपाठी जी, श्री संजीव सान्याल जी, जे नंदकुमार जी, पद्मश्री डाॅ विद्या बिन्दु सिंह, पद्मश्री शेखर सेन, मिथिलेश नंदिनी जी, पद्म श्री मालिनी अवस्थी जी, श्री यतीन्द्र मिश्र जी, श्री प्रफुल्ल केलकर जी, ऋचा अनिरूद्व जी, पद्मश्री प्रतिभा प्रह्लाद जी, श्री आशुतोष शुक्ला जी, रमा बैद्यनाथन जी, प्रो संगीता श्रीवास्तव जी, प्रो आलोक कुमार राय जी, प्रो नीरजा गुप्ता जी, अद्वैता काला जी, प्रो माॅली कौशल जी, डा अन्नया अवस्थी जी, राहुकल नील जी, सुनीता अवनी अमीन जी और अनेक विशिष्ट विभूतियों की गरिमामयी उपस्थिति रहेगी।