-कांवड़ यात्रा, पर्यावरण की संरक्षक यात्रा
-एक कांवड़, एक पेड का संकल्प ले : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कांवड यात्रा व श्रावण माह के शुभारम्भ के पहले एक कांवड, एक पेड का आह्वान करते हुये कहा कि कांवड यात्रा को पर्यावरण संरक्षण की यात्रा के उत्सव के रूप में मनाये।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कांवड़ यात्रा एक अध्यात्मिक साधना है, जिसमें प्रकृति का सान्निध्य मिलता है। यदि इस यात्रा को ग्रीन कांवड़ यात्रा बना दें, प्लास्टिक मुक्त, जल संरक्षण से युक्त, पौधारोपण को समर्पित यात्रा हो तो यह एक सच्चा शिव अभिषेक होगा।
ऋतुओं की इस गति में जब धरती हरियाली की चादर ओढ़ती है, आकाश से अमृत-जल बरसती है और नदियाँ कलकल करती हैं, तब आता है श्रावण मास। भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक माह है श्रावण मास। इस मास में भगवान शिव की आराधना, संयम, साधना और सेवा का भाव सर्वोपरि रहता है। श्रद्धालु भक्तगण गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और यही भाव एक विराट सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
श्रावण, भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना है। इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक, पौराणिक अथवा प्राकृतिक चेतना से जुड़ी है। भगवान शिव को जल अर्पण करने का प्रतीकात्मक भाव, आत्मशुद्धि, तप और समर्पण से जुड़ा है।
कांवड़ यात्रा इसी भक्ति का जीता-जागता उत्सव है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पैदल चलकर पवित्र नदियों, विशेषकर मां गंगा से जल लेकर अपने गांव, नगर अथवा तीर्थस्थलों पर स्थापित शिवालयों में अभिषेक हेतु जाते हैं तथा उत्तराखंड की पवित्र भूमि, राजाजी नेशनल पार्क में स्थित नीलकंठ मन्दिर में जलाभिषेक करने हेतु आते हैं। यह न केवल आस्था की शक्ति का प्रमाण है, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंतता, सामूहिकता और समर्पण का भी प्रतीक है।
वर्तमान समय में जब जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, नदियों का प्रदूषण और प्लास्टिक संकट जैसी समस्याएँ गहराती जा रही हैं, तब कांवड़ यात्रा केवल आस्था का उत्सव न बनकर, प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा का माध्यम भी बन सकती है।
प्लास्टिक मुक्त कांवड़ यात्रा का आह्वान करते हुये स्वामी जी ने कहा कि कावंड़ यात्रा के दौरान कावंडयात्री, यात्रा में प्लास्टिक की बोतलों, थैलियों, और डिस्पोजेबल सामग्री का प्रयोग न करें। इसके स्थान पर मिट्टी के कुल्हड़, कपड़े के थैले और पुनः उपयोग योग्य बोतलों को अपनाएँ ताकि प्रकृति का सम्मान बना रहे।
स्वामी जी ने कहा कि गंगाजल लाकर शिवालयों में अभिषेक करना जल संरक्षण व जल के सम्मान का प्रतीक है। साथ ही यह भी स्मरण रखें कि जल अमूल्य है और इसे अपव्यय से बचाना ही सच्चा पूजन है। भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित किया जाता है, बेलपत्र, औषधीय पौधा है इसलिये कांवड़ यात्रा की याद में एक पौधा लगाने का संकल्प ले। कांवड यात्रा मार्गों की सफाई, सहयात्रियों की सेवा, और सामूहिक सहयोग शिवभक्ति का सर्वोच्च रूप है।
कांवड़ यात्रा, भक्ति की अभिव्यक्ति के साथ भारतीय सांस्कृतिक एकता का दर्पण भी है। इसमें हर वर्ग, हर जाति, हर क्षेत्र के लोग एक समान भाव से जुड़ते हैं। यह भारतीय लोक-आस्था, जनशक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। श्रावण मास और कांवड़ यात्रा के माध्यम से शिवत्व को धारण करे।
श्रावण मास, जल चढ़ाने के साथ जल धारा व जीवन की धारा को शुद्ध करने का उत्सव भी है। कांवड़ यात्रा केवल आस्था की नहीं, उत्तरदायित्व की यात्रा है। यदि प्रत्येक कांवड़िया यह संकल्प ले कि वह इस यात्रा को प्लास्टिक मुक्त, स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल बनाएगा, तो यह शिव भक्ति के साथ-साथ प्रकृति भक्ति का भी प्रतीक बन जाएगी।
यात्रा के दौरान पौधारोपण का संकल्प ले “एक कांवड़, एक पेड़” जैसे अभियान को जन आंदोलन बनाया जाए।
