*💥अंतर्राष्ट्रीय नशा उन्मूलन एवं अवैध तस्करी निरोध दिवस*

*✨नशे की लत से बाहर निकलने के लिये सिर्फ कानून नहीं, करुणा चाहिए*

*🌸परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों को नशा मुक्त जीवन जीने का कराया संकल्प*

*💐स्वास्थ्य ही संकल्प, नशा नहीं विकल्प*

*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश, 26 जून। आज अंतर्राष्ट्रीय नशा उन्मूलन एवं अवैध तस्करी निरोध दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विशेषकर युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि नशे को कहे ना और जीवन को कहे हाँ।

नशा, एक मूक हत्यारा है जो हर वर्ष लाखों जिंदगियाँ निगल लेता है। नशा न केवल शरीर को, बल्कि मन, समाज और आत्मा को भी भीतर से खोखला करता है। नशा, एक मीठा जहर है और नाश का कारण भी है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि नशा केवल आत्मा का नहीं, समाज की चेतना का भी अपहरण करता है इसलिये अपराध नहीं अध्यात्म चुनो, नशा केवल व्यक्तिगत लत नहीं, बल्कि वैश्विक अपराधों की जड़ है। संगठित अपराध, मानव तस्करी, आतंकवाद, घरेलू हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मूल में नशीले पदार्थों का अवैध व्यापार और दुरुपयोग गहराई से जुड़ा है। यह न केवल युवाओं के भविष्य को अंधकार में धकेलता है, बल्कि राष्ट्र की ऊर्जा और शक्ति को भी छीन लेता है।

स्वामी जी ने कहा कि युवाओं के हाथों में केवल नशा या सिगरेट नहीं, पूरे राष्ट्र का भविष्य है इसलिये अपने जीवन को नशे की गिरफ्त से निकालकर सेवा, संस्कार और संकल्प के मार्ग पर लगाओ। उन्होंने कहा कि युवाओं को उड़ान भरने के लिए नशा नहीं, आत्मबल चाहिए।

स्वामी जी ने आह्वान किया कि नशे की लत से बाहर निकलने के लिये सिर्फ कानून नहीं, करुणा चाहिए। सिर्फ पुलिस नहीं, पालक चाहिए। केवल नियंत्रण नहीं, चेतना का निर्माण चाहिए इसलिये नशे को कहे ना और जीवन को कहे हां।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि अब समय आ गया कि अपराध की जड़ को पहचानें, और उसे काटें। जब तक हम संगठित अपराध की जड़ों को नहीं पहचानेंगे तब तक नशा और तस्करी जैसी समस्याएँ समाप्त नहीं होंगी।

उन्होंने कहा कि नशा एक व्यक्ति का निजी चयन नहीं है, यह सामूहिक विफलता का परिणाम है। यदि समाज, सरकार और सस्थायें एक साथ आएँ, तो हम इस विफलता को विजय में बदल सकते हैं और युवाओं को नशे की गिरफ्त से बचा सकते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि यदि हमें सच में समाज को संगठित अपराध और नशे से मुक्त करना है, तो केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि निवारक और पुनर्वासक उपायों में निवेश करना होगा। आजीविका के साधनों का सृजन कर युवाओं को रोजगार और आत्मविश्वास देना होगा, जिससे वे नशे की दलदल में न फँसें।

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