ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में 34 दिवसीय श्रीराम कथा का बुधवार से शुभारम्भ हुआ। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, मानस कथाव्यास श्री मुरलीधर जी, प्रसिद्ध कथाव्यास आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी, भागवत कथाकार, गुजरात की धरती से, 9 इस्काॅन टेम्पल के संचालक स्वामी श्री मूर्तिमंत प्रभु जी, कण्व आश्रम से स्वामी जयंत सरस्वती जी, प्रोफसर गुरूकुल कांगड़ी विश्व विद्यालय श्री धमेन्द्र बाल्याण जी, योगाचार्य विमल बधावन जी और अन्य विशिष्ठ अतिथियों के पावन सान्निध्य में दीप प्रज्वलित कर मानस ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने मानस कथा के उद्घाटन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के अवसर पर कहा कि वर्तमान समय में हम चारों ओर देख रहे हैं कि अब लोग रिश्तों को भी किश्तों में जीने लगे हैं। मतलब हो तो रिश्ते, मतलब नहीं तो रिश्ता भी नहीं इसलिये कम से कम एक दिन ऐसा हो जहां पर हम परिवार के बारे में विचार करें। यूनाइटेड नेशन ने आज अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस की थीम ’परिवार और जलवायु परिवर्तन’ घोषित की हैं और श्री राम कथा से बड़ा पर्यावरण व परिवार संरक्षण का पूरी दुनिया में दूसरा उदाहरण नहीं है।

स्वामी जी ने कहा कि अगर व्यापार खड़ा करना है तो पीआर चाहिये और परिवार को खड़ा करना हो तो उसके लिये आपस में प्यार चाहिये; संस्कार चाहिये। हमारे परम आराध्य प्रभु श्री राम जी का अपने परिवार के प्रति समर्पण, त्याग और बलिदान अद्भुत है। श्री राम अपने पूरे जीवन भर परिवार, समाज और पर्यावरण जुड़े रहंे। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में भी किसे अच्छा भाई, अच्छा पिता, अच्छा पति, अच्छा बेटा नहीं चाहिये सभी अपने जीवन में श्रेष्ठ रिश्ते चाहते हैं क्योंकि परिवार में ये रिश्ते ही अद्भुत भूमिका निभाते हैं इसलिये परिवार को संस्कारों से युक्त करना हो तो प्रतिदिन रामायण का पाठ करें। नियमित रूप से परिवार के साथ बैठकर रामायण की चैपाइयों पर चिंतन करें; रामायण के चरित्रों पर चिंतन करें, प्रभु के चित्र पर ध्यान करे और चरित्र का चिंतन-मनन करे तो श्रीरामकथा जीवन में उतरने लगेगी और हर घर में हमें राम व कृष्ण होगे।

स्वामी जी ने कहा कि परिवारों के बीच के ये अद्भुत रिश्ते अब पर्यावरण के साथ भी जुड़े ताकि परिवार व पर्यावरण साथ-साथ मिलकर आगे बढ़ते रहे। मानस कथाकार संत श्री मुरलीधर जी ने कहा कि भारत भूमि की इस पावन धरा पर, माँ गंगा जी के पावन तट पर पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में परमार्थ निकेतन प्रांगण में आयोजित 34 दिनों तक चलने वाली वाणी रूपी गंगा में मानस परिवार को स्नान करने का अवसर प्राप्त हुआ है। वर्ष 2015 में हमने मानस कथा गायी थी तब से यह क्रम निरंतर चल रहा है। वर्ष 2017 से परमार्थ निकेतन में प्रतिवर्ष मासिक श्री रामकथा का आयोजन गोलोकवासी पदमाराम जी कुलरिया व श्री तेजाराम जी के संकल्प व समर्पण से यह मानस यात्रा शुरू हुई और यह उनके पुत्रों के समर्पण से निरंतर जारी है।

परमार्थ निकेतन में आयोजित एक माह की कथा से हमारी बैटरी चार्ज हो जाती है और फिर पूरे वर्ष यह ऊर्जा हमें कथा गाने हेतु अपार ऊर्जा प्रदान करती है। गंगा के तट पर मानस का गान करेगें तो मानस सदैव हमारे साथ रहेगी। मंत्र मौन जप होता है और मानस पाठ वाचाल होता है ताकि माँ गंगा भी मानस को श्रवण कर सके। उन्होंने कहा कि हमारे लिये तो संसार में सबसे सुन्दर स्थान यही परमार्थ निकेतन गंगा जी का तट है। मुझे इस से सुन्दर स्थान कहीं भी नहीं दिखा। मानस कथा सब का कल्याण करने वाली है। उन्होंने कहा कि जो आनंद आप नेत्रों से करे वह वास्तविक आनंद नहीं है ओर जो आनंद हृदय को मिले वही वास्तविक आनंद है। जहां पर जगत के कल्याण के कार्य होते हैं वह वंदन करने योग्य है वह स्थान माँ गंगा के तट से उत्तम और कोई नहीं है।

आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी ने कहा कि परमार्थ गंगा तट से मानस कथा की नदी निरंतर प्रवाहित हो रहती है। कथा से बड़ा दुसरा कोई परमार्थ नहीं है। हम अगर किसी व्यक्ति को पानी पिलाते है ंतो वह उसके शरीर में एक दिन या कुछ घन्टों तक रहता है, किसी को भोजन कराते हैं तो वह उसके शरीर में तीन दिनों तक रहता है परन्तु व्यासपीठ से मिला संदेश जीवन में अन्तिम श्वास तक रहता है। परमार्थ निकेतन का यह तट इतना सुन्दर है कि यहां पर पूरे 12 मास कथा होती रहे तो भी कम है। उन्होंने कहा कि जो राम के हैं वही काम का हैं। उन्होंने कहा कि कथा श्रवण करने से हमारे जीवन में भी श्रीराम कथा परिक्रमा करती है और यही तो जीवन है। संसार की व्यवस्थाओं में श्री राम नहीं होते तो वासनाओं की निवृति ही नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि गंगा जी के जल में तैरने में आनंद आता है और श्रीराम जी की ज्ञान गंगा में डूबने में आनंद आता है। गंगा जी में तैरते रहे तो जीवन चलता है और कथा में डूबते रहे तो जीवन चलता है इसलिये मानस कथा में डूब कर रसपान करते रहे। उन्होंने पर्यावरण का संदेश देते हुये कहा कि जीवन के अंतिम समय में हमें जितनी लकड़ियों की जरूरत होती है कम से कम उतने पेड़-पौधों को तो हमें लगाना ही चाहिये। स्वामी जी ने सभी पूज्य कथाकारों को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट स्वरूप प्रदान किया।

 

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