ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन माँ गंगा के पावन तट पर कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी के श्रीमुख से अष्टोत्तरशत 108 – श्रीमद् भागवत कथा की ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही हैं। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और विख्यात कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी और यजमान परिवार ने दीप प्रज्वलित कर श्रीमद्भागवत कथा का शुभारम्भ किया। 

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को जन्मदिवस की अनेकानेक शुभकामनायें देते हुये कहा कि आप दिव्यायु हों! दीर्घायु हों। माननीय मुर्मू जी भारत की अद्भुत शक्ति, करूणा, संवेदना एवं शुचिता की त्रिवेणी हैं। भक्ति और संस्कारों की प्रतिमूर्ति एवं मातृ शक्ति का गौरव हैं। आपके नेतृत्व व मार्गदर्शन में भारत अपनी पूरी क्षमताओं के साथ आगे बढ़ता रहे ऐसी माँ गंगा से प्रार्थना है।

श्रीमद् भागवत कथा के दिव्य मंच से स्वामी जी ने हरित कथाओं व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सदैव हमने जपा हैं परन्तु अब समय आ गया है कि हम ऊँ क्रान्तिः क्रान्तिः क्रान्तिः के रूप में पर्यावरण व नदियों के संरक्षण के लिये कार्य करंे। यह समय जन जनसमुदाय को याद दिलाना, जगाना और जागाये रखने का है।

स्वामी जी ने कहा कि कथायें जीवन के सभी शाप, ताप और संताप को नष्ट करती हैं और जीवन में शीतलता, शुद्धता व शौर्यता प्रदान करती है। कथायें जागरण के लिये है। जीवन में जागृति बनाये रखना बहुत जरूरी है और सनातन संस्कृति वह जागृति का दीप है जिसे जलाये रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि सनातन था, सनातन है और सनातन रहेगा इसलिये सनातन का सूरज उगाना ही हमारी सेवा हो और सनातन का सूर्य सदैव चमकता रहे इसलिये हमें मिलकर कार्य करना होगा।

स्वामी जी ने ऋषिकेश की पवित्र भूमि का महत्व बताते हुये कहा कि यह वह धरती है जहां पर प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जी ने यहां पर आकर तपस्या की। भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण कर उसके शमन के लिये इसी धरती को चुना। यहां पर एक ओर शिव जी की जटाओं से गंगा जी प्रवाहित हो रही है और दूसरी ओर कथा रूपी ज्ञान गंगा प्रवाहित होती रहती हैं। ऐसी पवित्र भूमि में मानवता की सेवा का संकल्प लेना सौभाग्य की बात है।

कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने कहा कि भागवत कथा साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप है। पूज्य स्वामी जी प्रकृति के प्रति पूरे विश्व को जागृत करते हैं। वास्तव में पेड़-पौधे नहीं होंगे तो हमारे जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

स्वामी जी प्रकृति के लिये पूरे समाज को जागृत कर रहे हैं, पौधों का रोपण कर एक ओर तो जीवन बचा रहे हैं और दूसरी ओर ऋषिकुमारों को शिक्षित कर, ज्ञानवान बनाकर संस्कृति व संस्कारों का संरक्षण कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि एक आचार्य, संस्कृत व शास्त्रों का विद्वान जनसमुदाय को प्रभु से रूबरू कराता हैं। शास्त्रों पर मनन व चिंतन गुरू के सान्निध्य में बैठकर करेगे तो पूरी दुनिया को परमार्थ प्राप्त होगा। पूज्य संतों का ध्यान, मनन, चिंतन और समागम मानवता के कल्याण के लिये होता है और श्रीमद् भागवत कथा तो साक्षात कल्पवृक्ष के समान है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर उन्हें हरित कथाओं के लिये प्रेरित किया।

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