सचिवालय में आयोजित उत्तराखंड भाषा संस्थान की बैठक में अधिकारियों को गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी भाषाओं की लोककथाएं, लोकगीत, कहावतें व साहित्य को डिजिटली संरक्षित करने के लिए डिजिटल संग्रहालय तैयार करने के निर्देश दिए।

उत्तराखण्ड की लोकभाषाएं हमारी सांस्कृतिक पहचान और अस्मिता की आधारशिला हैं। अधिकारियों को क्षेत्रीय बोलियों को बढ़ावा देने के लिए मोबाइल एप, पॉडकास्ट और ई-लर्निंग कोर्सेस शुरू करने हेतु निर्देशित किया। लोकगायक/गाथाकारों का डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन तैयार किया जाए साथ ही प्रदेश के विश्वविद्यालयों में स्थानीय बोली एवं संस्कृति अध्ययन केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाए। भावी पीढ़ी अपनी लोकभाषाओं से जुड़ सके इसके लिए गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी में चित्रकथाएं, वीडियो बुक्स विकसित किए जाए।

हमारा लक्ष्य हमारी मूल पहचान को सहेजते हुए डिजिटल युग में उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *