-परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, केन्द्रीय जल शक्तिमंत्री, भारत सरकार श्री सी.आर. पाटील जी और पूर्व केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री व वर्तमान में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी की दिल्ली में भेंटवार्ता
-विशेष रूप से यमुना जी को प्रदूषण मुक्त करने व तटों पर दोनों ओर जड़दार पौधों के रोपण पर हुई विशद् चर्चा
-जल संरक्षण और नदियों को प्लास्टिक मुक्त करने पर हुई विस्तृत चर्चा
-न्याय केवल मानव के लिए ही नहीं, प्रकृति और नदियों के लिए भी हो : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश/नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि न्याय केवल मानव समाज की बात नहीं करता, यह उस धरती और प्रकृति की भी बात करता है, जिसकी गोद में हम पले-बढ़े हैं। जब तक हम नदियों, वनों और वायुमंडल के साथ न्याय नहीं करेंगे, तब तक मानवता के लिए न्याय अधूरा ही रहेगा।
इस अवसर पर दिल्ली में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी.आर. पाटील जी, पूर्व केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री व वर्तमान में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी ने भेंट की। इस भेंटवार्ता में गंगा, यमुना सहित देश की समस्त नदियों एवं जलस्रोतों को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करने, जलवायु संतुलन के लिए जल आन्दोलन केा जन आंदोलन बनाने और पर्यावरणीय न्याय को जन-नीति का अंग बनाने पर विस्तृत चर्चा हुई।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा, नदियाँ केवल जलधाराएँ नहीं, अपितु हमारी संस्कृति, आस्था और अस्तित्व की जीवनरेखा हैं। गंगा हो या यमुना, ये मात्र नदियाँ नहीं, माँ हैं, जिन्होंने सदियों से हमें जीवन दिया है परंतु आज वही नदियाँ कचरे, प्लास्टिक और रासायनिक अपशिष्टों से कराह रही हैं। यह केवल प्रदूषण नहीं, बल्कि नदियों के साथ अन्याय भी है।
उन्होंने आगे कहा, “जब हम नदियों को स्वच्छ रखने की बात करते हैं, तो यह केवल पर्यावरण का नहीं, अपितु न्याय का विषय है। गंदा पानी पीने को मजबूर समाज के हासिये पर रहले वाले लोग, सबसे पहले इस अन्याय के शिकार होते हैं इसलिए नदी स्वच्छता एक आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक उत्तरदायित्व है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं, वह हमारी चेतना और व्यवहार में होना चाहिए। नदियों को स्वच्छ रखना, वनों की रक्षा करना और प्रकृति से संतुलन बनाना, यह सब न्याय के आधुनिक आयाम हैं।
उन्होंने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में ‘ऋत’ अर्थात प्राकृतिक संतुलन को ही न्याय का आधार माना गया है। गीता से लेकर उपनिषदों तक में न्याय को करुणा और संतुलन से जोड़ा गया है। सच्चा न्याय वह है जिसमें हम न केवल मानवता की सेवा करें, बल्कि प्रकृति को भी माँ समझकर उसकी रक्षा करें।
केन्द्रीय मंत्री श्री पाटील जी और श्री जगदीश चन्द्रा जी ने स्वामी जी के पर्यावरण संरक्षण अभियान की सराहना करते हुए कहा कि वे जनप्रतिनिधि और जनसंचार माध्यमों के रूप में इस दिशा में सार्थक कदम उठाएँगे।
श्री सी आर पाटील जी ने कहा कि नदियाँ केवल जल की धारा ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, सभ्यता और भावी पीढ़ियों के जीवन की आधारशिला हैं। इनकी रक्षा करना हमारा दायित्व ही नहीं, कर्तव्य है। नदियों को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त करना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है, और यह केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का भी विषय है। हमें मिलकर जनभागीदारी के माध्यम से इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
श्री जगदीश चन्द्रा जी ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी सामाजिक चेतना और पर्यावरणीय जागरूकता के अप्रतिम प्रेरणास्रोत हैं।
स्वामी जी ने केन्द्रीय जल शक्तिमंत्री, भारत सरकार श्री सी.आर. पाटील जी और पूर्व केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री व वर्तमान में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी और सभी विशिष्ट अतिथियों को परमार्थ निकेतन गंगा आरती हेतु किया आमंत्रित।