-पूज्य संतों का पावन आशीर्वाद, उद्बोधन व मंगलकामनायें
-संत श्री कबीरदास जी महाराज जी की जयंती के दिव्य अवसर पर सभी पूज्य संतों ने भावपूर्ण श्रद्धाजंलि अर्पित की
-सन्यास दीक्षा महोत्सव के अवसर पर परमार्थ निकेतन में दो दिवसीय निःशुल्क मल्टीस्पेशलिस्ट चिकित्सा शिविर का आयोजन मेदान्ता द मेडेसिटी, हॉस्पिटल, गुडगांव के सहयोग से किया गया, जिसमें सैकड़ों साधु-संतों, तीर्थयात्रियों और हिमालयी क्षेत्र के स्थानीय नागरिकों ने लाभ प्राप्त किया

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में बुधवार को डा. साध्वी भगवती सरस्वती जी का 25 वां सन्यास दीक्षा रजत जयंती समारोह पूज्य संतों के पावन सान्निध्य में मनाया। यह उनकी भक्ति, सकारात्मक परिवर्तन और अटूट आध्यात्मिक समर्पण की ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायक यात्रा का पावन उत्सव है। साध्वी जी का सन्यास दीक्षा रजत जयंती समारोह परमार्थ निकेतन के श्रीराम कथा मंच पर अत्यंत भव्यता और श्रद्धा से आयोजित हुआ।

साध्वी भगवती सरस्वतीजी, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित आध्यात्मिक मार्गदर्शिका, परमार्थ निकेतन की अंतर्राष्ट्रीय निदेशिका और डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष के रूप सम्पूर्ण मानवता की सेवा कर रही है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वतीजी ने कहा कि भारत में जन्म होना दुर्लभ है और पूज्य संतों का दर्शन और भी दुर्लभ है। हर भारतीय परमात्मा का जीता जागता हस्ताक्षर है। हम सब का सौभाग्य है कि हमें भारत भूमि में जन्म मिला है। साध्वी जी ने हॉलीवुड में जन्म लिया, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की, भारत घुमने आयी और भारत की ही होकर रह गयी। साध्वी जी को आज से 28 वर्ष पूर्व मानसरोवर की धरती पर 351 विभूतियों के पावन सान्निध्य में पूज्य स्वामी गुरूशरणानन्द जी महाराज ने भगवती नाम दिया और सन्यास दीक्षा प्रदान की। 1996 में साध्वी जी भारत की धरती पर पहली बार उतरी और पूज्य भाई श्री की कथा से अपने जीवन की यात्रा प्रारम्भ की। इस अवसर पर स्वामी जी ने वर्ष 2010 के महाकुम्भ और हिन्दु धर्म विश्व कोश जो सनातन धर्म की रक्षा का कवच है उसके सम्पादन में साध्वी जी की भूमिका की सभी स्मृतियों को ताजा किया। उस ग्रंथ के सम्पादन हेतु साध्वी जी ने 18 से 20 घन्टे सेवा कार्य किया यह उनकी सनातन साधना ही है।

महामण्डलेश्वर स्वामी राजेन्द्र दास जी ने कहा कि पूज्य स्वाजी जी गंगा जी सहित पूरे विश्व की नदियों के तटों पर आरती के पर्याय हैं। शक्ति के बिना व्यक्ति का व्यक्तित्व व्यर्थ है। स्वभाव से सन्यासी सदैव बालक होता है, साधन से सन्यासी युवा होता है और अनुभव से सन्यासी वृद्ध होते हंै। स्वरूप व संस्कार की प्रक्रिया में भेद हो सकता है पर भाव में कभी भेद नहीं होता और सन्यास की परिभाषा में किसी का भेद नहीं है। सच्चा साधु, सच्चा सन्यासी व सच्चा साधक वही है जो अपने लिये नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार के लिये उपयोगी होता है। साध्वी जी मन, वाणी व क्रिया से अपने को संत, राष्ट्र, समाज की सेवा के लिये समर्पित है इसमें सदैव विस्तार होता रहे।

योगऋषि स्वामी रामदेवजी ने कहा कि संसार से विरति और प्रभु में रति ही तो सन्यास है। सन्यास, अनंत की यात्रा है। सन्यास अर्थात प्रभु को अपनी अंगुली पकड़ा दि वो जहां चाहे ले जाये। साध्वी जी प्रभु की सभी दैवीय सम्पदा को जी रही है। सन्यास, अर्जित करना नहीं अर्पित करना है; जोड़ना नहीं बांटना है। हम अपने स्वरूप में कितने गहरे उतरे वही सन्यास हैं। भगवती जी वेद, उपनिषद् व गीता को गाती ही नहीं जीती भी है। साध्वी जी के जीवन व रोम-रोेम में अध्यात्म बसा हुआ है उनका जीवन साधुता से परिपूर्ण है। भगवत गीता के 12 अध्याय के श्लोकों को जीना ही सन्यास है। हम सभी प्रभु के यंत्र बन कर जिये। छोटी-छोटी चीजों को छोड़ना ही मुक्ति है तभी सन्यास हमारे भीतर घटता है। पूरे विश्व के 200 ये अधिक देश, उनके राष्ट्राध्यक्षों, प्रमुखों, सभी संस्थाओं से अगर किसी संत का कनेक्शन है तो वह है पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी है।

महामण्डलेश्वर स्वामी रविन्द्र पुरीजी ने विदुषी साध्वी भगवती सरस्वती जी को सन्यास दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि शक्ति के बिना शिव अधूरे है, जब यह समझ में आता है वही सन्यास है। सन्यास अपने आप में एक जलती हुई ज्वाला है जो जीवन को तपा कर कुंदन बना देती है। साध्वी जी ने अमेरिका में जन्म लेकर भारत भूमि को अपनी कर्मभूमि बनाया है इस हेतु अनेकानेक साधुवाद।

महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानन्दजी ने कहा कि कई जन्मों का संस्कार, सनातन के प्रति निष्ठा ही साध्वी जी को समुद्र पार से भारत ले आयी। ये सन्यास दिवस उत्सव पूरी दुनिया के लिये एक प्रेरणा है कि भारत में कर्म का भी उत्सव मनाया जाता है। सन्यास जीवन भी पूज्य संतों व पावन गुरूओं की कृपा से ही पूर्ण होता है। पुराणों में सन्यास की सम्पूर्ण विधियां समाहित है। सन्यास केे माध्यम से राष्ट्रसेवा व समाज सेवा किस प्रकार की जाती है यह हमारे पूज्य संतों का जीवन हमें बताता है। साध्वी जी ने अनामी रहकर गुरू सेवा की और भारतीय संस्कृति को पश्चिम के देशों में प्रसारित कर रहे है उसके लिये अनेकानेक साधुवाद।

डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मैने अमेरिका में रहते हुये बचपन में कभी सोचा भी नहीं था कि इतना दिव्य, पवित्र संसार भी हो सकता है लेकिन माँ गंगा व गुरू कृपा से यह जीवन हमें मिला है। शरीर हड्डियों व रक्त से बनाता है परन्तु जीवन संतों की कृपा से बनता है। लोग मुझे कहते है कि मैं सब कुछ छोड़कर भारत आयी हूँ परन्तु मैने कुछ छोड़ा नहीं बल्कि सब कुछ प्राप्त किया है। जीवन साधनों व सुविधा से महान नहीं बनता बल्कि जीवन तो साधना से महान बनता है। मेरा जीवन धरती माता, गंगा माता, भारत माता को समर्पित है। मेरी प्रार्थना है प्रभु मुझे खाली करे। जितनी मैं खाली रहुंगी उतनी ही प्रभु कृपा से भरती जाउंगी। सफलता उपर पहंुचने में नहीं नीचे झुकने में संतों की चरणों में दूसरों को उठाने के लिये नीचे झुकने में हैं। सफलता व जीवन कलेक्शन से नहीं कनेक्शन से बनता है।

आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि भारतीयता व सनातन को पूरे विश्व में प्रसारित करने हेतु साध्वी जी का जीवन सतत गूंजायमय है। सनातन के गौरव को पूरे विश्व में ले जाने का अद्भुत कार्य साध्वी जी कर रही है। प्रभु आपको सदैव प्रेरित करते रहे ताकि आप देवकार्य हेतु सतत प्रयत्न करती रहे।

डॉ. चिन्मय पाण्ड्याजी ने भारत के आध्यात्मिक मंच को प्रणाम करते हुये कहा कि हजारों सौभाग्य जुड़कर आज का सौभाग्य व समिकरण बन पाया है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो भारत आया हो और परमार्थ निकेतन नहीं आया हो ऐसा परमार्थ निकेतन का अध्यात्मिक गौरव है। पूज्य संतों का जीवन ज्ञान और भारतीय संस्कृति का पर्याय है। भारत में जन्म लेने वाले अनेक है परन्तु भारत को जीने वाले बहुत ही कम है, साध्वी जी उनके में एक प्रमुख व्यक्तित्व है जो भारत में रहती ही नहीं बल्कि भारत को जीती हैं। साध्वी जी अनेक वैश्विक मंचों पर भारतीय संस्कृति को जिस सहजता से प्रसारित कर रही है वह अद्भुत है। मन बंधा है तो व्यक्ति संसार में है और मन खुल गया तो व्यक्ति सन्यास में है।

महामंडलेश्वर स्वामी ईश्वर दासजी ने कहा कि सनातन धर्म को मानने वाली मातृ शक्तियों के लिये साध्वी जी एक अद्भुत आदर्श है। साध्वी जी प्रेरणा का स्रोत है, लोग भोग भूमि अमेरिका जाने के लिये प्रयत्न करते है साध्वी जी वह सब त्याग कर भारत आ गयी वह एक आदर्श व प्रेरणा का स्रोत है।

संत श्री मुरलीधरजी ने कहा कि भक्ति, ज्ञान व संस्कृृति के संस्कारों का दर्शन साध्वी जी का जीवन है। साध्वी जी के पूर्व जन्म के संस्कारों में पूज्य स्वामी जी ने भक्ति व वैराग्य के अद्भुत संस्कारों का रोपण किया। साध्वी जी ने जीवन में इतना परिवर्तन किया कि भारत में आकर उन्होंने नूतन जन्म प्राप्त कर लिया। जीव का जन्म तभी होता है जब वह प्रभु से जुड़ जाता है।

इन महान संतों का आशीर्वाद, संदेश और सान्निध्य इस अवसर की आध्यात्मिक गहराई और राष्ट्रव्यापी महत्व को दर्शाता है। एक अमेरिका में जन्मी, लॉस एंजेलेस में पली-बढ़ी, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर भारत आकर सनातन धर्म को अपनाया, सन्यास लिया और पिछले लगभग 30 वर्षों से पूर्ण समर्पण के साथ भारत में रहकर सेवा, साधना और धर्म प्रचार में स्वयं को अर्पित कर दिया।

पिछले ढाई दशकों में, साध्वीजी भारतीय आध्यात्मिकता की वैश्विक प्रतिनिधि बनकर उभरी हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, और छह महाद्वीपों में अनेक अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की सनातन परंपरा का गौरव बढ़ाया है। उनके प्रमुख उत्तरदायित्वों में शामिल हैं-अंतर्राष्ट्रीय निदेशिका, परमार्थ निकेतन, महासचिव, ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस (जीवा), अध्यक्ष, डिवाइन शक्ति फाउंडेशन, सह-अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र की मल्टीफेथ एडवाइजरी काउंसिल, सह-अध्यक्ष, रिलीजन फॉर पीस, सदस्य, वल्र्ड काउंसिल ऑफ रिलिजियस लीडर्स, स्टीयरिंग कमिटी सदस्य, पर्ड (पीएआरडी), निदेशिका, इंटरनेशनल योग फेस्टिवल, परमार्थ निकेतन आदि अनेक पदों को सुशोभित कर रही हैं।

उनकी शिक्षाएं, वैदिक ज्ञान में गहराई से निहित होने के साथ ही आधुनिक युग के लिए सहज और व्यावहारिक हैं। उनके बेस्टसेलिंग पुस्तकों हाॅलीवुड टू द हिमालयाज़, कम टू योरसेल्फ वैश्विक सत्संग, प्रवचनों और डिजिटल माध्यमों के जरिये लाखों लोगों तक पहुँच रहे हैं।
साध्वीजी का जीवन पूर्व और पश्चिम के बीच, विज्ञान और अध्यात्म के बीच, त्याग और सेवा के बीच एक सेतु है। उनका अटूट संकल्प और जीवन सनातन धर्म की उस शक्ति को दर्शाता है जो न केवल जीवन को रूपांतरित करता है, बल्कि पूरे विश्व से साधकों को भारत की ओर खींच लाता है और उन्हें यहीं स्थिर कर देता है।

आज का महोत्सव केवल एक व्यक्तिगत उत्सव नहीं, बल्कि एक प्रेरक राष्ट्रीय और वैश्विक संदेश है कि साध्वी जी ने भारत को चुना और फिर कभी नहीं छोड़ा। वे भारत में रहती ही नहीं भारत को जीती है, वे कहती है मैं भारत में नहीं भारत मुझ में रहता है।

डा साध्वी भगवती सरस्वती जी के सन्यास दिवस की रजत जयंती के पावन महामंडलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी, स्वामी चिदानन्द सरस्वतीजी, योगऋषि स्वामी रामदेवजी, साध्वी भगवती सरस्वती जी, महामण्डलेश्वर स्वामी राजेन्द्र दासजी, महामण्डलेश्वर स्वामी रविन्द्र पुरीजी, महामण्डलेश्वर स्वामी हरिचेतनानन्दजी, महामंडलेश्वर स्वामी ईश्वर दासजी, महामंडलेश्वर स्वामी दयाराम दास जी, संत श्री मुरलीधरजी, मीना माता जी, आचार्य बालकृष्णजी, डॉ. चिन्मय पाण्ड्याजी, स्वामी ज्योतिर्मयानन्द जी, श्री अजयभाईजी, स्वामी सुखदेव जी महाराज, डा हरिओम पवार जी, श्री जगदीश मित्तल जी, परमार्थी जी, प्रसिद्ध समाजसेवी श्री विनोद बागरोड़िया जी, पूज्य संतों, विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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