-विश्व नेत्रदान दिवस पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने किया आह्वान नेत्रदान महादान
-हम अपने अंतिम क्षणों को किसी और के आरंभ में बदल दें, तो वही जीवन की सबसे सुंदर संध्या होगी
-जीते जी रक्तदान, जाते जाते नेत्रदान, यही है जीवनदान का श्रेष्ठ विधान
ऋषिकेश। विश्व नेत्रदान दिवस के अवसर पर मासिक मानस कथा के पावन मंच से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जनमानस से आह्वान किया कि जीते जी रक्तदान करें, और जाते-जाते नेत्रदान कर किसी की अंधेरी दुनिया को रोशन करें। यही जीवन का सर्वोत्तम उपहार है।
परमार्थ निकेतन में संत श्री मुरलीधर जी के श्री मुख से हो रही श्रीराम कथा में पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में पूर्व र्व वित्त और संसदीय कार्य कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड सरकार श्री प्रेमचन्द्र अग्रवाल जी ने सहभाग किया। स्वामी जी ने कहा कि मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है। एक व्यक्ति द्वारा नेत्रदान दो लोगों को दृष्टि प्रदान कर सकता है, यह कितना अद्भुत, पावन और पुण्य कार्य है! नेत्रदान न केवल किसी को आंखें देता है, बल्कि उसकी आशा, आत्मनिर्भरता और पूरी जीवनदृष्टि को नया रूप देता है। नेत्रदान, शरीर त्याग के बाद भी जीवनदान देने का एक दिव्य माध्यम है।
नेत्रदान अर्थात किसी और को रोशनी देना। हमारे देश में लाखों लोग ऐसे हैं जो नेत्रज्योति के अभाव में न अपने प्रियजनों को देख सकते हैं, न प्रकृति की सुंदरता को। दुखद यह है कि इनकी दृष्टिहीनता में से अधिकतर मामले ऐसे हैं जो चिकित्सा द्वारा ठीक हो सकते हैं।
यदि हम नेत्रदान का संकल्प लें और इसके प्रति समाज में जागरूकता फैलाएं, तो हम इन अंधकारमय जीवनों में प्रकाश भर सकते हैं। यह एक ऐसा कार्य है जो चिकित्सकों द्वारा सरल, प्रभावी और सम्मानपूर्वक किया जा सकता है जिससे नेत्रदाता के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर वर्ष लगभग 1.2 करोड़ लोग दृष्टिबाधित हैं, जिनमें से करीब 20 लाख लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं और नेत्र प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में हैं। जबकि हर वर्ष केवल लगभग 65,000-70,000 नेत्रदान ही भारत में दर्ज किए जाते हैं, जिनमें से भी सभी नेत्र उपयोग योग्य नहीं होते अर्थात आवश्यकता और उपलब्धता के बीच भारी अंतर है। यदि भारत की पूरी आबादी में से मात्र 1 प्रतिशल लोग भी नेत्रदान का संकल्प लें, तो इस समस्या का समाधान हो सकता है।
समाज में अभी भी नेत्रदान को लेकर कई मिथक हैं जैसे कि इससे अगले जन्म में अंधापन होगा या धार्मिक विधियाँ बाधित होंगी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा नेत्रदान कोई शरीर का त्याग नहीं, यह आत्मा के प्रकाश का प्रसार है। जो अंधकार मिटाए, वही सच्चा धर्म है।
नेत्रदान एक पूरी तरह वैज्ञानिक, सम्मानजनक और पारदर्शी प्रक्रिया है। यह न तो मृत व्यक्ति के चेहरे को बिगाड़ता है, न ही धार्मिक रीति-रिवाजों में बाधा डालता है। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में अंगदान को परम पुण्य कार्य माना गया है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है परोपकाराय सतां विभूतयः अर्थात् सज्जनों की सम्पत्ति और शरीर भी परोपकार में लगते हैं। जैसे महर्षि दधिचि ने अपनी हड्डियों का दान वज्र बनाने के लिये कर दिया था। ऐसी ही भावना आज नेत्रदान के लिये विकसित करनी होगी।
नेत्रदान के लिए इच्छुक व्यक्ति को किसी अधिकृत आई बैंक या स्वास्थ्य संस्था में पंजीकरण कराना होता है। साथ ही अपने परिवार को इस संकल्प की जानकारी अवश्य दें, ताकि मृत्यु के बाद यह दान संभव हो सके। मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रों का सुरक्षित और सम्मानपूर्वक संग्रह किया जा सकता है, जिससे दो दृष्टिहीन लोगों को रोशनी मिल सकती है।
स्वामी जी ने कहा कि अगर आपकी आंखें किसी के काम आ सकती हैं, तो इससे बड़ी कोई ‘सदगति’ नहीं हो सकती। जब आप जाते-जाते किसी को देखने की दृष्टि दे जाएं, तो आप केवल शरीर नहीं छोड़ते, आप अपने पीछे ‘प्रकाश’ छोड़ते हैं और यही सच्चा मोक्ष है। यदि हम अपने अंतिम क्षणों को किसी और के आरंभ में बदल दें, तो वही जीवन की सबसे सुंदर संध्या होगी।
पूर्व कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड सरकार श्री प्रेमचन्द्र अग्रवाल जी ने कहा कि हम सभी धर्म, संस्कृति व सनातन को मानने वाले लोग हैं इसलिये हमारे आमंत्रण पत्र पर जो देवी-देवताओं के चित्र होते हैं उसे इधर-उधर फेंकना नहीं चाहिये इससे हमारे देवी देवताओं का अनादर होता है। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कार्यकाल के 11 वर्ष पूर्ण होने पर माँ गंगा के पावन तट से शुभकामनायें अर्पित की। उन्होंने ऋषिकेश ट्रेफिक समस्या पर व्यक्त करते हुये समाधान पर भी चिंतन किया।
कथाव्यास संत श्री मुरलीधर जी ने आज की मानस कथा में माँ शबरी की नवधा भक्ति का अद्भुत वर्णन किया।
स्वामी जी ने मानस कथा के श्रद्धालुजनों और देशवासियों से आह्वान किया दृष्टि का दान केवल नेत्र नहीं, यह भविष्य और आशा का दान है। आइए, इस विश्व नेत्रदान दिवस पर संकल्प लें हम जाएंगे, पर किसी और को ‘दृष्टि’ देकर जाएंगे; किसी और के जीवन मे उजाला भर कर जायेंगे। इस अवसर पर परमार्थ निकेतन में हो रही गंगा आरती जागरूकता कार्यशाला और वेदांत योग प्रशिक्षण के प्रतिभागियों ने भी श्रीराम कथा का आनंद लिया।