*कथा व्यास संत मुरलीधर जी ने आज 30 वें दिन की कथा में श्री हनुमान जी व सुरसा का प्रसंग सुनाया*
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आज भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया जी पधारी। उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सानिन्ध्य में 34 दिवसीय श्रीराम कथा में सहभाग कर श्रीराम कथा का आनंद लिया। प्रसिद्ध कथा व्यास संत श्री मुरलीधर जी ने श्रीराम कथा में श्री हनुमान जी व सुरसा के प्रसंग का अद्भुत वर्णन किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि राजस्थान की धरती शूरता, वीरता, शूर-वीर, महाराणा प्रताप व मीरा बाई की धरती है। मीरा बाई को हम सभी उनकी भाव-भक्ति, प्रभु के प्रति आस्था व विश्वास के लिये जानते हैं परन्तु मीरा बाई महिला सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने उस समय जब समाज में भेद-भाव, ऊँच-नीच चरम पर था उससे उपर उठकर समानता का संदेश दिया। मीरा बाई का जन्म राजघराने में हुआ था और उनका विवाह भी राजघराने में ही हुआ, उसके बाद भी वे प्रभु की भक्ति में लीन होकर संत-सन्यासियों के साथ मन्दिरों में बैठकर भजन गाती थी। भारत वर्ष में मीरा बाई समानता व महिला सशक्तिकरण का अद्भुत उदाहरण है। राजस्थान की धरती महाराणा प्रताप की भी धरती है जिन्होंने दिखा दिया की मातृभूमि ही सब कुछ है। उन्होंने अपनी मातृभूमि के सम्मान के लिये घास की रोटियां खायी और संदेश दिया कि मातृभूमि का सम्मान, गौरव व गरिमा में ही हमारा सम्मान निहित है। राजस्थान की धरती की माटी में कूट-कूट का शूरता-वीरता समाहित है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रभु श्री राम का चरित्र भारतीय संस्कृति का सार है और भारतीय संस्कृति ही प्रभु श्री राम का चरित्र है। संस्कार व संस्कृति की सेवा करना ही जीवन की धन्यता है।
स्वामी जी ने कहा कि गंगा जी के तटों को प्रदूषित करना भारतीय संस्कृति नहीं है। गंदगी व बंदगी साथ-साथ नहीं हो सकती। गंगा जी के तटों पर ज्ञान की गंगा, कथाओं की गंगा और संस्कृति की गंगा प्रवाहित होती रहे। स्वामी जी ने त्याग व समर्पण की महिमा बताते हुये कहा कि श्रीरामचरित मानस त्याग की ही संस्कृति है। भाई-भाई ने संपति का त्याग किया तो रामायण बन गयी और भाई-भाई में संपति की चाह हुई तो महाभारत बन गयी इसलिये हमें अपने दायित्वों को पूर्ण करते हुये आगे बढ़ना होगा।
श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया जी ने कहा कि मैं धन्य हूँ कि परमार्थ निकेतन में मुझे पुनः आने का अवसर प्राप्त हुआ। हमारे जीवन में आज जो कुछ भी है वह प्रभु की कृपा और पूज्य संतों के आशीर्वाद से ही है। इस 30 दिनों की कथा में अनेक लोगों को कथा के माध्यम से शान्ति प्राप्त हुई होगी। आप सभी कथा के संदेशों अपने साथ अपने घर लेकर जाये और उसके अनुसार जीवन जियें।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी व कथा व्यास संत मुरलीधर जी ने हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।