हरिद्वार। भगवान के मंदिर में जाकर हम श्रीकृष्ण के ‘अर्चा विग्रह’ के दर्शन करते है, जबकि श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण का ‘चर्चा विग्रह’ है। अर्चा विग्रह में जिस प्रकार हम श्रीभगवान के चतुर्भुज स्वरूप के साथ उनके दर्शन करते है, उसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के बारह स्कंध भगवान के विभिन्न अंगों का दर्शन कराते हैं।”
अध्यात्म चेतना संघ की ओर से मोतीमहल मंडपम् (ज्वालापुर) में आयोजित श्रीमद्भागवत भक्ति महायज्ञ के प्रथम दिवस कथा व्यास आचार्य करुणेशजी मिश्र ने श्रीमद्भागवत महापुराण के महात्म का वर्णन करते हुए उपरोक्त विचार व्यक्त किये। कथा मंडप में उपस्थित श्रोता समूह को कथा श्रवण कराते हुए आचार्य करुणेश मिश्र ने कहा कि- “श्रीमद्भागवत महापुराण के महात्म को समझे बिना इस महान ग्रंथ को पढ़ने अथवा सुनने का कोई लाभ नहीं है। श्रीमद्भागवत की भूरि-भूरि प्रशंसा और उसके महत्व का विस्तारित वर्णन पद्म पुराण के छ: अध्यायों में किया गया है।” उन्होंने कहा कि, “हम कथा में बैठें, इससे कहीं ज्यादा आवश्यक है, कि कथा हमारे भीतर बैठे और इसके लिये पात्रता स्वयं भगवान ही हमें प्रदान करते हैं।” कहा कि- ‘हमारी धर्मनगरी को हरिद्वार या हरद्वार के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसका नाम श्रीमद्भागवत महापुराण में ‘गंगाद्वार’ बताया गया है।’
इसके पूर्व दीप प्रज्वलित करके प्रथम दिवस की कथा का शुभारन्भ किया गया। भक्तजन ने कथा प्रसंगों के साथ साथ-साथ नृत्य-गान कर संकीर्तन का भरपूर आनन्द लिया। आरती के समय कथा के कुल 108 यजमानों में से अधिकांश अपने परिवार सहित उपस्थित थे।
