-परमार्थ गंगा आरती स्वामी विवेकानंद जी को की समर्पित
-भक्ति संगीत के प्रसिद्ध साधक श्री हंसराज रघुवंशी जी की स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से दिव्य भेंटवार्ता
-श्री हंसराज रघुवंशी और श्रीमती कोमल सकलानी ने प्रातःकाल मां गंगा का पूजन अर्चन कर पूज्य स्वामी जी का दर्शन व आशीर्वाद लिया
ऋषिकेश। शुक्रवार को स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में विश्व शान्ति यज्ञ के माध्यम से उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।
भक्ति संगीत के सुप्रसिद्ध गायक श्री हंसराज रघुवंशी जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कोमल सकलानी जी का आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत पावन आगमन और रात्रि विश्राम इस दिव्य वातावरण में हुआ। दोनों ने परम श्रद्धेय स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का सान्निध्य प्राप्त कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
परमार्थ निकेतन की पवित्र धरा में उनका यह आगमन परमार्थ गुरूकुल के छोटे-छोटे ऋषिकुमारों के लिये एक प्रेरणाप्रद क्षण रहा, जहाँ संगीत, साधना और सेवा का संगम व त्रिवेणी देखने को मिली। हंसराज रघुवंशी जी ने अपने भक्ति संगीत के माध्यम से देश-विदेश में शिव भक्ति और भारतीय सनातन संस्कृति को नई ऊँचाई प्रदान की है। उनके भजन न केवल लोकप्रिय हैं, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए अध्यात्म से जुड़ने का माध्यम बन रहे हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्री हंसराज रघुवंशी जी का संगीत केवल गायन नहीं, एक आध्यात्मिक साधना है। उनकी स्वर-सेवा के माध्यम से आज के युवा धर्म, भक्ति और संस्कृति के मूल स्वरूप से जुड़ रहे हैं। उनका यह एक बहुत बड़ा योगदान है।
स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने उनकी साधना को वंदन करते हुये कहा कि स्वामी विवेकानंद जी ने जीवनभर युवाओं को जागरूक, स्वाभिमानी और सेवा-प्रधान बनने की प्रेरणा दी। उनका संदेश है “सेवा ही धर्म है, और आत्मबोध ही राष्ट्रबोध है।”
स्वामी विवेकानंद जी का जीवन भारत की आध्यात्मिक विरासत का आधुनिक प्रस्तुतीकरण था। उन्होंने “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को पूरे विश्व में स्थापित किया और बताया कि भारत की शक्ति उसकी संस्कृति, उसके संत, और उसके मूल्यों में निहित है। उन्होंने युवाओं को आत्मबल, सेवा, और साधना का संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ओजस्वी उद्बोधनों, चिंतन और आत्मबल से संपूर्ण विश्व को भारत की आत्मा से परिचित कराया। उन्होंने 1893 में शिकागो धर्म संसद में भारत की सनातन संस्कृति, सहिष्णुता, करुणा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के मूल मंत्र को विश्वमंच पर स्थापित किया। उन्होंने दिखाया कि भारत केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक चेतना है। उनकी वाणी ने पश्चिम को भारत की आत्मिक गहराई और योग-ध्यान की शक्ति का अनुभव कराया। स्वामी जी आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो आत्मविकास और विश्वकल्याण के मार्ग को एक साथ जोड़ते हैं।
आज की युवा पीढ़ी को यह समझने की आवश्यकता है कि भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं है। जब विचारों में विवेकानंद जी की गूंज और हृदय में भक्ति-संगीत की गहराई होती है, तभी जीवन में सच्चा परिवर्तन आता है।
इस अवसर पर श्री हसंराज रघुवंशी जी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, परमार्थ निकेतन आना मेरे लिए किसी तीर्थ से कम नहीं। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से आशीर्वाद पाकर यह अनुभव और भी दिव्य बन गया। मेरा प्रयास सदैव यही रहेगा कि संगीत के माध्यम से सनातन संस्कृति और शिव भक्ति को नई पीढ़ी तक पहुँचाऊँ।
स्वामी जी ने श्री हसंराज रघुवंशी जी और श्रीमती कोमल रघुवंशी जी को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट किया।

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