*💥यज्ञ, एक आध्यात्मिक साधना*
*✨जीवन भी एक यज्ञ*
*🌸प्रत्येक श्वास ईश्वर का प्रसाद है*
*🙏🏾स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश। ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों और गीता तक, संपूर्ण सनातन परंपरा में यज्ञ, जीवन का सार है। यज्ञ केवल अग्नि में आहुति देना ही नहीं बल्कि जीवन का सर्वोच्च दर्शन भी है। यज्ञ का अर्थ है, त्याग, समर्पण और लोकमंगल की भावना। जैसे अग्नि में आहुति देने से सुगंधित धुआँ वातावरण को शुद्ध करता है, वैसे ही जब हमारा जीवन सेवा, करुणा, दान और प्रेम की आहुति बनता है, तो समाज और राष्ट्र शुद्ध तथा प्रकाशित होते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारा जीवन स्वयं एक यज्ञ है। जन्म से लेकर मृत्यु तक हर क्षण हमें अवसर देता है कि हम अपने कर्म, विचार और संकल्पों को आहुति बनाएं। सांसों को भी एक आहुति मानें, प्रत्येक श्वास ईश्वर का प्रसाद है और प्रत्येक निःश्वास लोकमंगल का संकल्प। जब हम धन से दान करते हैं, समय से सेवा करते हैं, ज्ञान से मार्गदर्शन देते हैं और प्रेम से सबको अपनाते हैं, तभी जीवन यज्ञमय बनता है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति तो एक महायज्ञ और हमारी संपूर्ण सृष्टि भी यज्ञ का अनुपम उदाहरण है। सूर्य प्रतिदिन बिना थके अपनी किरणें देता है, नदियाँ निःस्वार्थ बहती हैं, वृक्ष फल-फूल देकर भी कुछ नहीं मांगते, वायु और जल जीवन को पोषित करते हैं। यह सब महायज्ञ का हिस्सा है। प्रकृति का प्रत्येक तत्त्व त्याग और सेवा का प्रतीक है। यदि हम सच में यज्ञ का अर्थ समझना चाहते हैं तो हमें प्रकृति से सीखना होगा कि कैसे निस्वार्थ भाव से देना ही आनंद का मार्ग है।
स्वामी जी ने कहा कि आज की भागदौड़ और उपभोक्तावादी सोच में “लेना” स्वभाव बनता जा रहा है, जबकि यज्ञ हमें “देने” का संदेेेश देता है। जीवन को यज्ञमय बनाने के लिए हमें अपने छोटे-छोटे कर्मों को भी आहुति में बदलना होगा।
प्रकृति हमें सिखाती है कि जीवन का उद्देश्य केवल उपभोग नहीं, बल्कि संतुलन और संरक्षण है। जल हमें संयम सिखाता है, वायु हमें विस्तार की शिक्षा देती है, अग्नि हमें ऊर्जा और परिवर्तन का संदेश देती है, पृथ्वी हमें सहनशीलता और धैर्य सिखाती है। जब हम इन पंचतत्वों के संदेशों को अपने आचरण में उतारेंगे तो जीवन स्वतः ही एक महायज्ञ बन जाएगा।

आज विश्व में संघर्ष, प्रदूषण और तनाव बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे समय में यज्ञ का यह संदेश “देना, देना और केवल देना” मानवता को नई दिशा दे सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि हमें यज्ञ को केवल वेदियों और मंत्रों तक सीमित न रखकर जीवनशैली में उतारना होगा। जब हम अपने कर्मों को, विचारों को और भावनाओं को लोकमंगल की आहुति बनाएंगे, तभी जीवन सफल और सार्थक होगा।
आइए, हम संकल्प लें कि जीवन को यज्ञमय बनाएंगे, प्रकृति से सीखकर त्याग, सेवा और समर्पण का मार्ग अपनाएं और मानवता के कल्याण के लिए हर श्वास को आहुति बनाए। यही हमारी संस्कृति है, यही हमारी सनातन परंपरा और यही जीवन का सर्वोच्च सत्य है।

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