ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और उत्तराखंड सरकार के वित्त मंत्री श्री प्रेमचन्द्र अग्रवाल जी ने दीप प्रज्वलित कर पूज्य मोरारी बापू के श्रीमुख से ऋषिकेश में हो रही दिव्य श्रीराम कथा का उद्घाटन किया। श्रीराम कथा भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता का जीवंत उदाहरण है।
पूज्य मोरारी बापू ने श्रीराम कथा के माध्यम से धर्म, संस्कार और जीवन के मूल्यों को पुनः स्थापित करने का संदेश दिया।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्रीराम कथा सृष्टि का एक दिव्य उत्सव है, ये सृष्टा का भी उत्सव है। ये एक नई सृष्टि व दृष्टि का दिव्य महोत्सव है। आज जब पूरी दुनिया बदलाव और अशांति के दौर से गुजर रही है, ऐसे समय में इन दिव्य कथाओं की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
स्वामी जी ने कहा भगवान श्रीराम का जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और आदर्शों के मार्ग पर चलकर कैसे जीवन को बढ़िया बनाया जा सकता है। वर्तमान समय में सब बड़ा बनने की ओर दौड़ रहे हैं ऐसे में ये दिव्य कथायें बढ़िया बनने के लिये प्रेरित करती है। श्री राम की जीवन दृष्टि और मार्गदर्शन ही हमें मुक्ति की ओर ले जा सकता है। उन्होंने कहा कि श्री राम केवल एक व्यक्ति नहीं हैं, वे सनातन सत्य हैं और वे सदैव हमारे साथ हैं।
स्वामी जी ने कहा कि बिना श्रीराम के राष्ट्र की कल्पना भी असंभव है क्योंकि राम, सृष्टा भी हैं और सृष्टि भी है। वे दृष्टा भी हैं और दृष्टि भी है। राम जीवन भी हैं और मुक्ति भी है। राम खोज भी हैं और युक्ति भी है। राम सत्य भी हैं और सनातन भी है। श्री राम का मार्ग हमें सिखाता है कि कैसे हमें अपनी धार्मिक, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि श्रीराम कथा एक नए सृजन, एक नए उत्सव और एक नई दिशा की ओर कदम है। कथा हमें यह सिखाती है कि धर्म, योग, और संस्कारों के मार्ग पर चलकर हम एक महान और सशक्त भारत का निर्माण कर सकते हैं। श्रीराम के आदर्शों को अपनाकर ही हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ शांति, सुख और समृद्धि का वास हो।
यह श्रीराम कथा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जीवन को दिशा देने का एक अद्भुत अवसर है। पूज्य बापू के श्रीमुख से निकले एक-एक शब्द हमें सदैव प्रेरित करते रहेंगे और हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखेंगे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पूज्य बापू को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उत्तराखंड की धरती पर उनका अभिनंदन किया।