रुड़की। संघर्ष के प्रतीक कामरेड रमेश चंद पांडे का कनखल स्थित श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उनके बड़े पुत्र शिवेशवर दत्त पांडे ने चिता को मुखाग्नि दी। कामरेड रमेश चंद पांडे को गमगीन जनसमूह ने अंतिम विदाई दी। पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे रमेश पांडे ने आरोग्य अस्पताल में अंतिम सांस ली थी, जिनका धार्मिक विधि विधान के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया।
स्वर्गीय रमेश चंद पांडे जी की चिता को जैसे ही उनके ज्येष्ठ पुत्र शिवेशवर दत्त पांडे ने मुखाग्नि दी, तो उपस्थित जन समूह के आंसू छलक आये और उन्होंने भारी गमगीन माहौल में अपने प्रिय जुझारू कामरेड रमेश चंद पांडे को अंतिम विदाई दी।
संघर्ष के प्रतीक रमेश चंद्र पांडे नार्दन रेलवे मेंस यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे तथा दो बार लक्सर रेलवे जंक्शन के स्टेशन अधीक्षक का दायित्व निभाया। साथ ही आसपास के रेलवे स्टेशनों पर भी उनकी तैनाती रही।
लक्सर नॉर्दर्न रेलवे मेंस यूनियन के ब्रांच सेक्रेटरी रहते हुए श्री पांडे ने मजदूरों की लड़ाई के साथ-साथ लक्सर क्षेत्र में किसान संघर्ष में भी किसानों का साथ दिया। स्वर्गीय श्री पांडे ने न सिर्फ रेल विभाग अपितु विभाग से बाहर भी अन्य मजदूर संगठनों को साथ मिलाकर संयुक्त संघर्ष समिति का निर्माण भी किया था। उन्होंने कर्मचारी यूनियनों से संबंधित मजदूरों के अतिरिक्त भी खेतीहर मजदूरो के साथ-साथ दुकान और अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले मजदूरों के हितों की लड़ाई भी लड़ी।
सन 1974 में रेलवे हड़ताल के बाद जब उन्हें सेवाओं से बाहर कर दिया गया था, उस समय भी श्री पांडे ने हार नहीं मानी और उन्होंने ठेले पर सब्जी बेचकर अपने परिवार का पालन किया। लेकिन मजदूरों के हितों के खिलाफ समझौता नहीं किया। स्वर्गीय श्री रमेश चंद पांडे का जन्म ग्राम अहिरौली गोरखपुर में हुआ था, लेकिन सक्रियता एवं संघर्ष के कारण उन्होंने पूरे लक्सर क्षेत्र में अपनी अच्छी खासी पहचान कायम कर ली थी।
जुझारू मजदूर नेता के अतिरिक्त भी श्री पांडे क्षेत्रवासियों के हृदय में एक अच्छी खासी आध्यात्मिक छवि भी बनाए रखने में सफल रहे। उन्होंने डोशनी रेलवे स्टेशन मास्टर रहते हुए वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। संघर्ष और अध्यात्म का बेजोड़ तालमेल रखने वाले रमेश चंद्र पांडे जी कहा करते थे कि उनकी डिक्शनरी में हार शब्द नहीं है। लेकिन नियति को कौन जान पाया है और हार शब्द से नफरत करने वाले कामरेड रमेश चंद पांडे ने हार शब्द को अपने शब्दकोश जगह दे दी और वे अपनी बीमारी से संघर्ष करते हुए अपने जीवन की लड़ाई हार ही गए यही सर्वथा सत्य है ।