राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
✨परमार्थ निकेतन में देवभक्ति के साथ देशभक्ति का आह्वान
💥महिला एवं बाल विकास, कला एवं संस्कृति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, अरुणाचल प्रदेश, श्रीमती, दासंगलु पुल जी व 16 अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ की परमार्थ गंगा आरती
🌺देवभक्ति के साथ देशभक्ति का आह्वान
💥ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर आरती शुरू करने पर की चर्चा

ऋषिकेश, राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के वातावरण में अद्भुत उत्साह और भक्ति का अद्भुत वातावरण था। जब संध्या के समय माँ गंगा की आरती की दिव्य ध्वनि गूंज में राष्ट्रप्रेम के संस्कार भी झिलमिला रहे थे। इस दिव्यता के बीच अरुणाचल प्रदेश की महिला एवं बाल विकास, कला एवं संस्कृति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्रीमती दासंगलु पुल जी 16 अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल के साथ इस पावन आरती में सम्मिलित हुईं। पहली बार परमार्थ के तट पर उनकी उपस्थिति ने पूर्वोत्तर भारत और उत्तर भारत के आध्यात्मिक संबंधों को नए आयाम प्रदान किए।
परमार्थ की गंगा आरती केवल ज्योति और मंत्रोच्चार का अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है जो भक्ति के साथ समाज व राष्ट्र के प्रति कर्तव्य बोध भी जगाती है। इसी कड़ी में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर भी ऐसी ही आरती की शुरुआत करने पर सार्थक चर्चा हुई, ताकि पूर्वोत्तर की इस दिव्य नदी पर भी वही संस्कारों की ज्योति प्रज्ज्वलित हो, जो गंगा तट पर वर्षों से जल रही है। यह प्रस्ताव भारतीय संस्कृति की एकात्मता को दृढ़ करता है नदियाँ भले भिन्न हों, भाव एक ही माँ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने लाल किले के निकट हुए धमाके में मारे गए लोगों के लिये विशेष प्रार्थना की और उनके प्रति भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिये विशेष यज्ञ कर प्रार्थना भी की गई। स्वामी जी ने कहा कि आज के समय में युवाओं के लिये राष्ट्रभक्ति की शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “राष्ट्र है तो हम हैं, यह भाव शिक्षा में होना चाहिए। शिक्षा के साथ संस्कार जुड़े रहें, तो ऐसे ब्लास्ट नहीं होंगे, दिल्ली जैसी घटनाएँ नहीं होंगी, फिर देश में दिल जीतने वाली घटनाएँ होंगी।
स्वामी जी ने कहा कि शिक्षा केवल करियर का साधन न बन जाए, बल्कि चरित्र और समर्पण की साधना बने यही इस विशेष दिन का संदेश है।
श्रीमती दासंगलु पुल जी ने परमार्थ गंगा आरती की दिव्यता, भाव और तन्मयता को अद्भुत बताया। उन्होंने कहा कि यह आरती केवल देवभक्ति नहीं, बल्कि देशभक्ति के संस्कार भी जगाती है। यहाँ आकर जो शांति और ऊर्जा मिलती है, वह केवल व्यक्तिगत नहीं राष्ट्रहित के संकल्पों को भी मजबूत बनाती है। पूर्वोत्तर भारत की संस्कृति भी राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत है गंगा और ब्रह्मपुत्र का यह सांस्कृतिक संगम भारत की अखंडता को और उज्ज्वल बनाएगा।
गंगा जी की आरती में उपस्थित सांसद श्री रमेश अवस्थी जी ने कहा कि परमार्थ निकेतन के इस दिव्य वातावरण में आना अपने आप में सौभाग्य की बात है। यहाँ से पूज्य स्वामी जी के श्रीमुख से जो संदेश दिया जाता है, वह मात्र शब्द नहीं, बल्कि दिशा है पूरी मानवता के लिये एक प्रकाशपुंज। गंगा आरती आज विश्वभर में भारत की आध्यात्मिक पहचान बन चुकी है और यह गौरव सभी भारतीयों का है।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हम सभी को याद दिलाता है कि शिक्षा केवल ज्ञान नहीं जिम्मेदारी है। संस्कारों से रहित शिक्षा समाज में अराजकता पैदा कर सकती है, लेकिन जब शिक्षा में राष्ट्रप्रेम का भाव समाहित हो जाता है तो देश निर्माण का मार्ग स्वयं प्रशस्त हो जाता है। आज आवश्यकता है कि विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों में ऐसे मूल्य सिखाए जाएँ जो सिर्फ बुद्धि नहीं, बल्कि हृदय को भी समृद्ध करें।
गंगा के तट पर यह विशेष संध्या मानो यह घोषणा कर रही थी कि भारत की भावी पीढ़ी सिर्फ विद्वान ही नहीं, बल्कि संस्कारी और राष्ट्रनिष्ठ भी बनेगी। जब शिक्षा में सेवा, सहयोग, समर्पण और संस्कार जुड़ते हैं, तब ही सच्चा शिक्षित समाज विकसित होता है।

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