हरिद्वार। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि हरिद्वार भी एक दिन नष्ट होगा। क्योंकि हरिद्वार से गंगाजी के जल का जो प्रवाह है, उसको गंगा के अंदर के पत्थर ही रोक कर रखे हुए हैं। यदि यह पत्थर को हटा दिया जाये, तो जितने ऊपर से जल आयेंगे, उसके वेग को हरिद्वार नहीं झेल पाएगा और गंगा पाताल गामी हो जाएगी। इसलिए अभी से ही सभी लोगों को मिलकर गंगा को बचाने का प्रयास करना होगा।
मातृ सदन आश्रम, जगजीतपुर कनखल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन के विषय में पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि 12 फरवरी से लेकर 14 फरवरी तक चलने वाले तीन दिवसीय सम्मेलन में जोशीमठ आपदा हिमालय और गंगा संरक्षण के विषय में वृहद मंथन किया जाएगा। स्वामी शिवानंद ने कहा कि जोशीमठ में आयी आपदा के संबंध में जिसका कि बहुत ही दूरगामी प्रभाव है – पूरा उत्तराखंड, पूरा भारतवर्ष प्रभावित हुआ है। भिन्न भिन्न वर्ग के व्यक्तियों को अपने-अपने विषयों में पारंगत लोगों को यहाँ पर आमंत्रित किया गया है कि वे आयें और अपना दोष देखें कि उनका दोष कहाँ है। उन्होंने कहा कि 1916 में जब भीमगोडा बॅरेज बना था और गंगा के जल को रोककर नहर में बहाया जा रहा था, उसपर भारत के कई राजा महाराजाओं ने विरोध किया था और ब्रिटिश सत्ता को झुकना पड़ा था और महामना मालवीय से समझौता हुआ था। स्वामी शिवानंद ने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य को झुकना पड़ा था परन्तु आज, उस समय यह स्पष्ट हो गया था कि कोई भी गंगा के ऊपर काम होगा तो हिंदूओंसे पूछकर यह किया जायेगा। लेकिन इसका उल्लंघन होना शुरू हो गया और उल्लंघन होते-होते यह स्थिति आ गई है कि पूरा उत्तराखंड खतरे में है। विकास के नाम पर कुछ काम हुआ तो जोशीमठ का विनाश हुआ। केदारनाथ आपदा से सब परीचित हैं, ऋषिगंगा आपदा से सब परीचित हैं। यह बात कोई नहीं समझता है, तो मैं सबको आमंत्रित किया हूँ कि आप आईये और अपनी-अपनी गलती देखिये कि आज यह समाज ऐसे जा रहा है, तो किस दिशा में जा रहा है? वैज्ञानिक अपने दोष को देखें क्यूंकि जो वैज्ञानिक हैं उन्हें किनारे कर दिया जाता है। जैसे सानंद जी जैसे महान वैज्ञानिक संत के अनशन का निरादार कर उन्हें मरवा दिया जाता है, निगमानंद जैसे तपस्वी को मार दिया जाता है, उसके ऊपर कोई सुनवाई नहीं होती । इतना ही नहीं, हम बार-बार कह रहे हैं इसमे माननीय न्यायाधीशों का भी कम दोष नहीं है, जिस तरह से न्यायालय में वाद लंबित रहता है जैसे जोशीमठ के मामले में पता चला है वहाँ 3, 4 प्रधान हैं, उन्होनें हाईकोर्ट में केस किया था और उसमें 25,000 फाइन लगाकर केस खारिज कर दिया गया। यह कोर्ट की बाते हैं। हाईकोर्ट ने गंगा यमुना को ‘living entity’ का दर्जा दिया, सुप्रीम कोर्ट ने उसे पेंडिंग में डाल दिया। उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद जितने भी चीफ मिनीस्टर हुए, वो कुछ सुनते ही नहीं हैं । इन्हें एक भी पत्र का जवाब देना ही नहीं है । इनके अधिकारी तो बात करते ही नहीं है । यहाँ हाईकोर्ट के कुछ लोगों पर मैं प्रश्नचिन्ह खडा करता हूँ कि खनन माफियाओं का उनके ऊपर पूरा प्रभाव है । इसी फोरम में हम साबित करने की कोशिश करेंगे कि इन बातों को लेकर लोग क्या सोचते हैं । हमनें सेमिनार के लिए न्यायाधीशों को भी निमंत्रण दिया है, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को हमनें लिख दिया है कि आप खुद आयें या अपना प्रतिनिधि भेजें | और यदि नहीं भेजेंगे, तो यह प्रमाणित होगा कि आप वहीं जायेंगे जहाँ हाय-फाय रहेगा, अलिशान होटल रहेगा, लेकिन जहाँ साधू रहते हैं, जहाँ दो-दो बलिदान हुआ है, जहाँ इतनी तपस्या हुई है, वहाँ आप नहीं आयेंगे। हम ओपन डिस्कशन चाहते हैं, आप यदि आएंगे तो आपका स्वागत करते हैं। ऐसे ही हमने वैज्ञानिकों को खत लिखा है, डायरेक्टरों को लिखा है। भारतभर के वैज्ञानिकों का दुर्भाग्य है कि जैसा आदेश होता है वैसा रिपोर्टिंग होती है । जैसे एक संस्था है FRI | हरिद्वार में एक भी पत्थर उपर से नहीं आता है, लेकिन यह संस्था गलत रिपोर्टिंग करती है कि हरिद्वार में ऊपर से पत्थर आता है | यह जो स्थिति हो गई है आज जोशीमठ के भीतर से जो खोखला हो रहा है, रिपोर्ट आई है कि जोशीमठ में सीवेज नहीं था, इसलिए ऐसा हो गया | रिपोर्ट बनाने वालों का विज्ञान आकाश में है ? इसलिए मैं सबको ओपन निमंत्रण भेज रहा हूं कि सब आयें और अपने आप को देखे कि आप कहाँ खड़े हैं | याद रखिए कोरोना ने सबको कैसे धोखा दिया था। तो प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने का आपको भी अधिकार नहीं है, आप अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। इसलिये सबको कहता हूं सब आओ और हल निकालो।