-सफलता, प्रसन्नता और प्रपन्नता यही जीवन की त्रिवेणी : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में डीएसबी इंटरनेशनल स्कूल और विदेशी छात्रों का दल आया। उन्होंने विश्वविख्यात गंगा आरती में सहभाग किया। छात्रों के दल ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट कर अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। छात्रों को जीवन के उद्देश्य, अनुशासन और आत्मसंयम के साथ जीने की प्रेरणा दी।
स्वामी जी ने कहा कि शिक्षा केवल जानकारी नहीं देती, वह जीवन को दिशा भी देती है। शिक्षा के साथ विद्या आवश्यक है, जो विनम्र, संवेदनशील और जागरूक बनाती है। शिक्षा सफल बनाती है, पर विद्या सार्थक बनाती है।
स्वामी जी ने कहा कि आज का समय डिजिटल युग है ऐसे में सोशल मीडिया का उपयोग सकारात्मक रूप में किया जाना चाहिए। उन्होंने छात्रों से कहा कि सोशल मीडिया पर जाना अच्छी बात है, परन्तु उस पर इतना समय व्यतीत न करें कि आपको उसके अलावा कुछ और दिखाई न दे। वह लत न बने। अपने समय का सदुपयोग करें, मोबाइल फास्टिंग और डिजिटल डिटॉक्स अपनाएँ।
स्वामी जी ने युवाओं को संदेश दिया कि कम खाएँ, गम खाएँ और नम जाएँ ये जीवन के तीन मूलमंत्र है। जीवन में संयम ही सच्ची सम्पन्नता है। “कम खाएँ” अर्थात् आहार में संतुलन, “गम खाएँ” अर्थात् कठिनाइयों में धैर्य से काम लें और “नम जाएँ” अर्थात् अहंकार को त्यागकर विनम्र बनें यही जीवन का सच्चा योग है।
स्वामी जी ने कहा कि जीवन के तीन आयाम हैं आहार, विहार और व्यवहार। शुद्ध आहार, शुद्ध विचार और सरल व्यवहार यही है जीवन का आधार। उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया कि वे अपने खानपान, जीवनशैली और व्यवहार में सादगी, संवेदना और सत्यता लाएँ।
स्वामी जी ने कहा कि सफलता, प्रसन्नता और प्रपन्नता जीवन की त्रिवेणी है। जीवन में सफलता आवश्यक है, पर केवल सफलता ही पर्याप्त नहीं। कई बार लोग सफल हो जाते हैं, पर प्रसन्न नहीं रह पाते। सफलता हमारा प्रभाव बढ़ाती है, पर प्रपन्नता (ईश्वर में समर्पण) हमें प्रभु भाव में जीना सिखाती है, यही शांति का द्वार है।
उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि जीवन में तीनों का समन्वय सफलता, प्रसन्नता और प्रपन्नता होना चाहिए। इन तीनों के संगम से ही जीवन में संतुलन, स्थिरता और आनंद संभव है।
स्वामी जी ने युवाओं से कहा कि वे भारतीय संस्कृति की गहराई को समझें और आधुनिकता के साथ अध्यात्म का संगम करें। भारत की युवा शक्ति विश्व की दिशा बदल सकती है, पर उसके लिए आत्मसंयम, सत्य और सेवा का पथ अपनाना आवश्यक है। सोशल मीडिया और तकनीक का उपयोग करें, पर उनके द्वारा नियंत्रित न हों। अपने विचारों को स्वच्छ, हृदय को सरल और कर्म को ईमानदार बनाएं।
उन्होंने कहा कि हर युवा को प्रतिदिन कुछ घन्टे और सप्ताह में कम से कम एक दिन “मोबाइल फास्टिंग” करनी चाहिए। उस समय को आत्मसंवाद में लगाये और स्क्रीन से नहीं, स्वयं से जुड़ें।
साध्वी भगवती सरस्वती जी से छात्रों ने अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि अपने भीतर के सत्य को पहचानना है। आज का युग चुनौतियों का युग है, पर भीतर की शांति, स्थिरता और करुणा से हम हर चुनौती का समाधान पा सकते हैं।
सभी विद्यार्थियों ने विश्वविख्यात गंगा आरती में सहभाग कर भारत की आध्यात्मिक परंपरा का अनुभव किया। गंगा तट पर दीपों की लौ, मंत्रों की ध्वनि और श्रद्धा की तरंगों ने वातावरण को पवित्र बना दिया। सभी विद्याथियों को अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई।

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