भारतीय न्यूरोथेरेपी को मिला अंतरराष्ट्रीय मंच, बीस देशों के प्रतिनिधियों के बीच प्रस्तुत हुआ भारतीय मॉडल
हरिद्वार/लूटन (यूनाइटेड किंगडम)/जालंधर। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति न्यूरोथेरेपी अब वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ बेडफ़ोर्डशायर में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ़्रेंस ऑन ह्यूमन राइट्स, सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज में पहली बार भारतीय न्यूरोथेरेपी को सतत स्वास्थ्य देखभाल मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया गया।
इस प्रतिष्ठित सम्मेलन में बीस देशों से आए विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं ने भाग लिया। भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए लाजपत राय मेहरा न्यूरोथेरेपी शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान (एल एम एन टी आर टी आई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामगोपाल परिहार ने अपना शोध “सस्टेनेबल हेल्थकेयर थ्रू इंडिजिनस नॉलेज सिस्टम्स : अ केस फॉर योगा एंड न्यूरोथेरेपी” प्रस्तुत किया।
शोध में सामने आए अहम तथ्य
रामगोपाल परिहार ने अपने शोध में बताया कि योग और न्यूरोथेरेपी का संयोजन न केवल बीमारियों से राहत देता है बल्कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर डालता है।
मरीजों में उन्नहत्तर प्रतिशत तक दर्द की कमी दर्ज हुई, जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में यह आँकड़ा उनतालीस प्रतिशत ही रहा।
दवाओं पर निर्भरता सत्तासी प्रतिशत तक कम हुई, जिससे दुष्प्रभाव और चिकित्सा अपशिष्ट घटा।
उपचार का कार्बन प्रभाव बहत्तर प्रतिशत कम रहा और इलाज की लागत लगभग अड़सठ प्रतिशत सस्ती पाई गई।परिहार ने कहा, “न्यूरोथेरेपी केवल इलाज का साधन नहीं, बल्कि कौशल आधारित रोजगार का एक बड़ा माध्यम भी है। आने वाले समय में यह लाखों युवाओं को आत्मनिर्भर बना सकती है।”
संस्थान के पदाधिकारियों की प्रतिक्रिया
सुमित महाजन, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष (एल एम एन टी आर टी आई):
“आज युवा वर्ग रोजगार की तलाश में है। न्यूरोथेरेपी उन्हें न केवल रोजगार का अवसर देती है, बल्कि समाज की सेवा करने का भी मौका देती है। यह अंतरराष्ट्रीय मंच इस बात का प्रमाण है कि दुनिया अब भारतीय चिकित्सा पद्धति को स्वीकार करने के लिए तैयार है।”
पुष्पक श्रीवास्तव, राष्ट्रीय महासचिव (एल एम एन टी आर टी आई):
“भारत में करोड़ों लोग पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं। न्यूरोथेरेपी शिविर और प्रशिक्षण लगातार साबित कर रहे हैं कि यह सुरक्षित, सस्ती और असरदार है। अब वैश्विक मान्यता से इसका भरोसा और मजबूत हुआ है।”
अखिल भारतीय न्यूरोथेरेपी संगठन की प्रतिक्रिया
अजय गांधी, अध्यक्ष (अखिल भारतीय न्यूरोथेरेपी संगठन):
“यह पूरे न्यूरोथेरेपी परिवार के लिए गर्व का क्षण है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुति से यह स्पष्ट है कि भारतीय ज्ञान प्रणाली अब केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए उपयोगी है। आने वाले समय में न्यूरोथेरेपी स्वास्थ्य क्षेत्र में लाखों रोजगार के अवसर पैदा कर सकती है
अंतरराष्ट्रीय मान्यता और भविष्य
यूनिवर्सिटी ऑफ़ बेडफ़ोर्डशायर की ओर से जारी निमंत्रण पत्र के अनुसार, परिहार का शोध कैम्ब्रिज स्कॉलर्स पब्लिशर्स की पुस्तक में भी प्रकाशित होगा। यह न्यूरोथेरेपी की शैक्षणिक यात्रा में ऐतिहासिक कदम है।
रामगोपाल परिहार ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि न्यूरोथेरेपी को भारत सरकार के कौशल विकास मिशन और आयुष मंत्रालय से जोड़कर युवाओं को रोजगार और समाज को स्वास्थ्य समाधान दिया जाए।”
इंटरनेशनल कॉन्फ़्रेंस ऑन ह्यूमन राइट्स, सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज में न्यूरोथेरेपी की प्रस्तुति ने भारत की इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली को वैश्विक पहचान दिलाई है। यह न केवल स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान है, बल्कि “मेड इन इंडिया स्वास्थ्य देखभाल मॉडल” के रूप में भविष्य की दिशा भी दिखा रही है।