*पॉजिटिव थिंकिंग डे पर परमार्थ निकेतन द्वारा दिल्ली में राजनयिकों के लिए विशेष योग शिविर का आयोजन*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी का दिव्य उद्बोधन व आशीर्वाद*
*एक पौधा युमना नदी के नाम का आह्वान*
*योग हमारी भीतर की श्वास को बाहर धरती की श्वास से जोड़ने की कला*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
नई दिल्ली, ऋषिकेश, 13 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के द्वारा वसंत विहार, आर्य समाज मंदिर, एफ-ब्लॉक के बैंक्वेट हॉल, दिल्ली में आज एक विशेष योग शिविर का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी तथा साध्वी भगवती सरस्वती जी के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर विश्व के अनेक देशों के राजदूत एवं राजनयिक प्रतिनिधि भी बड़ी संख्या में सम्मलित हुये।
योगाचार्य सुश्री गंगा नन्दिनी जी के मार्गदर्शन में कार्यक्रम की शुरुआत सौम्य योगासन से हुई। प्रतिभागियों को मार्गदर्शित ध्यान कराया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी एवं साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपने दिव्य उद्बोधन में कहा कि योग केवल आसनों तक सीमित नहीं, बल्कि यह सामंजस्य, सजगता और सतत जीवन की आधारशिला है। उन्होंने कहा कि आज का समय केवल भौतिक विकास का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और पर्यावरणीय संतुलन का भी है।
सत्र में एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर का आयोजन भी किया गया, जहाँ राजनयिकों ने भारतीय योग परंपरा और ध्यान पद्धतियों के बारे में अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया।
यह विशेष सत्र न केवल राजनयिकों को भारत की आध्यात्मिक धरोहर का अनुभव कराने का माध्यम बना, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कूटनीति को भी गहराई प्रदान करता है। योग और ध्यान के माध्यम से विश्व में वैश्विक सामंजस्य और शांति का संदेश दिया।
इस विशेष आयोजन का उद्देश्य केवल योगाभ्यास तक सीमित नहीं था, बल्कि “ग्रीन योग” का संदेश देना था। स्वामी जी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा कि योग केवल शारीरिक अभ्यास या आसनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। योग हमें स्वयं से जोड़ता है, समाज से जोड़ता है और सबसे महत्वपूर्ण, प्रकृति से जोड़ता है। उन्होंने कहा, यदि शरीर को स्वस्थ रखना है तो धरती को भी स्वस्थ रखना होगा। योग हमारी भीतर की श्वास को बाहर धरती की श्वास से जोड़ने की कला सिखाता है। बाहर की श्वास स्वस्थ होगी तभी भीतर भी स्वस्थ श्वास प्रवेश करेगी इसलिये वर्तमान समय में ग्रीन योग नितांत आवश्यक है।
स्वामी जी ने सभी को आगामी यमुना मैराथन में सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया और आह्वान किया कि हम सब मिलकर केवल यमुना नदी ही नहीं, बल्कि सभी जीवनदायिनी नदियों की रक्षा के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि नदियाँ केवल जल की धारा नहीं, बल्कि जीवन की धारा हैं। इन्हें स्वच्छ और अविरल बनाए रखना हम सबका दायित्व है।
इस अवसर पर स्वामी जी ने एक अनूठी पहल “एक पौधा यमुना के नाम” का शुभारंभ किया। उन्होंने दिल्ली में रहने वाले सभी का आह्वान करते हुये कहा कि वे कम से कम एक पौधा यमुना नदी के नाम अवश्य लगाएँ। यह कदम न केवल पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में महत्वपूर्ण है बल्कि हमारे और प्रकृति के बीच आध्यात्मिक जुड़ाव का भी प्रतीक है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि आंतरिक परिवर्तन से ही बाहरी परिवर्तन संभव है। जब हम ध्यान, प्राणायाम और सकारात्मक सोच का अभ्यास करते हैं तो स्वाभाविक रूप से करुणा और उत्तरदायित्व की भावना जागृत होती है। उन्होंने उपस्थित राजनयिकों को प्रेरित किया कि वे अपने-अपने देशों में नीतियों और निर्णयों में योग के सिद्धांतों, संतुलन, सामंजस्य और स्थिरता को शामिल करें।
आज के समय में जहाँ प्रतिस्पर्धा, तनाव और अनिश्चितता हर व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन गई है, वहाँ “पॉजिटिव थिंकिंग डे” केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने का संदेश है। सकारात्मक सोच, अर्थात् मन की वह स्थिति जो हर परिस्थिति में आशा, समाधान और शक्ति को देखती है, यह प्राचीन भारतीय शास्त्रों की सर्वोच्च निधि है। “सकारात्मक सोच” केवल एक आदत नहीं, बल्कि जीवन का दिव्य मंत्र है। यह हमें बताता है कि सुखी और सफल जीवन का रहस्य बाहरी परिस्थिति में नहीं, बल्कि हमारे विचारों में छिपा है।
राजनयिकों ने कहा कि यह कार्यक्रम केवल योगाभ्यास तक सीमित नहीं है बल्कि भारत की सनातन संस्कृति और “वसुधैव कुटुम्बकम्” के संदेश का जीवंत अनुभव भी है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन योग और पर्यावरण को एक सूत्र में पिरोने का प्रेरक उदाहरण है।
अंत में, सभी प्रतिभागियों ने सामूहिक रूप से विश्व शान्ति हेतु शांति मंत्र का उच्चारण किया एवं धरती के स्वास्थ्य एवं वैश्विक सौहार्द के लिए प्रार्थना की।
इस दिव्य आयोजन में यूरोप, एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से आए राजनयिकों ने सक्रिय सहभागिता की। स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, नॉर्वे, इटली, स्लोवेनिया, ब्रिटेन, इक्वाडोर, पेरू, जापान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉंगो, ऑस्ट्रिया, वियतनाम, मैक्सिको, मालदीव, सुरिनाम, नेपाल, लिथुआनिया, लेसोथो, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, श्रीलंका और क्यूबा सहित अनेक देशों के प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया।