-सनातन मन्दिर, चैटानूगा (टेनेसी) में हिन्दू धर्म के महाग्रंथ ‘हिन्दू धर्म विश्व कोश’ के ग्यारह खंडों की स्थापना
-भारत, शरीर से नहीं, संस्कारों से जिया जाता है : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज का अमेरिका के टेनेसी स्थित सनातन मन्दिर, चैटानूगा में दिव्य आगमन हुआ। स्वामी जी ने अप्रवासी भारतीय समुदाय, विशेषकर युवाओं और परिवारों से आत्मीय संवाद करते हुए उन्हें अपने गाँव, मूल, भाषा, मूल्यों और संस्कृति से जुड़े रहने हेतु प्रेरित किया।
स्वामी जी ने कहा, जहाँ भी जाओ, जड़ों को मत भूलो। अमेरिका में रहो, लेकिन भारत को जियो क्योंकि सनातन संस्कृति जीने की पवित्र पद्धति है।
स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति की गहराई, संस्कारी जीवनशैली, और ध्यान, सेवा, एवं संयम के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया कि वे केवल आधुनिकता की दौड़ में न भागें, बल्कि अपने धर्म, परंपराओं, भाषा और भारतीयता को गर्व से धारण करें। अमेरिका में रहते हुए भी अपने रिश्तों, रीति-नीति और धर्म से जुड़े रहें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी सनातन मूल्यों को समझें और अपनाएँ।
स्वामी जी ने विशेष रूप से युवाओं और बच्चों से संवाद किया। उन्होंने अमेरिका में पले-बढ़े बच्चों को भारतीय भाषाओं, श्लोकों, भजनों और मूल्यों से जोड़ने के लिए अभिभावकों का आह्वान करते हुये कहा कि अगर अगली पीढ़ी संस्कृति से कट जाएगी, तो अपनी पहचान खो देगी।
स्वामी जी ने कहा कि मोबाइल की कनेक्टिविटी से पहले संस्कृति की कनेक्टिविटी जरूरी है। अपने घर में हिंदी बोलें, बच्चों को अपने त्योहारों, पर्वों व संस्कृति के बारे में बताएं।
उन्होंने यह भी बताया कि भारत केवल एक भौगोलिक भूमि नहीं, बल्कि एक संस्कारभूमि है, जिसे अपने जीवन में जीवित रखना हम सभी का उत्तरदायित्व है।
स्वामी जी ने सनातन मंदिर प्रबंधन और सेवाभावी परिवारों की सराहना करते हुए कहा कि आप सभी ने चैटानूगा, टेनेसी, यूएसए में सनातन मन्दिर के माध्यम से भारतीय संस्कृति की ज्योति जला रखी हैं, जो आगे आने वाली पीढ़ियों को उजाला देगी।
स्वामी जी ने स्पष्ट किया कि आधुनिकता को अपनाना गलत नहीं है, लेकिन जीवन में आधुनिकता और आध्यात्मिकता का संतुलन होना चाहिए। उन्होंने प्रवासी भारतीयों से आग्रह किया कि वे अमेरिका की भौतिक उन्नति के साथ-साथ भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उन्नति को भी अपने परिवारों में जीवित रखें। भारत की मिट्टी को केवल स्मृति न बनाएं, उसे जीवन की ऊर्जा बनाएं।”
स्वामी जी का यह संपूर्ण प्रवास एक संस्कृति-जागरण का संदेश लेकर आया। उन्होंने सभी परिवारों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को मंदिरों से, ग्रंथों से, श्लोकों से और संस्कारों से जोड़ें। उन्होंने कहा कि भले ही आप भारत से हजारों मील दूर हैं परन्तु आपने हृदय में भारत धड़कते रहना चाहिये। भारत शरीर से नहीं, संस्कारों से जिया जाता है। आप जहाँ भी हों, भारत को जिएं।
इस पावन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में सनातन मन्दिर, चैटानूगा (टेनेसी) में हिन्दू धर्म के महाग्रंथ ‘हिन्दू धर्म विश्व कोश’ के ग्यारह खंडों की स्थापना की गई। यह विश्व कोश हिन्दू धर्म की गहराई, व्यापकता और विविधता का अद्भुत संग्रह है, जिसमें वेद, उपनिषद, पुराण, दर्शन, आचार-विचार, परंपराएँ और जीवन मूल्यों का समावेश है। इस स्थापना के माध्यम से मंदिर में आने वाली पीढ़ियाँ सनातन धर्म के मूल स्रोतों से जुड़ सकेंगी और संस्कृति की जड़ों को सहेज सकेंगी। यह एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षण था।
चैटानूगा (टेनेसी) में रहने वाले भारतीय परिवार लगभग 20 वर्षों के पश्चात स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य पाकर गद्गद हुये।