-शिव, प्रकृति के संरक्षक, स्व से समष्टि की यात्रा का आह्वान : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। सावन मास के तीसरे सोमवार के शुभ अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी शिवभक्तों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि आज का दिन प्रकृति और परमात्मा के पवित्र मिलन का है। यह संयोग मात्र नहीं, संकेत है कि हम प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, साक्षात् शिव स्वरूप माने।
भगवान शिव, संपूर्ण सृष्टि के आधार हैं। वे ही पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के स्वामी हैं। उनके गले में सर्प, जटाओं में गंगा, शरीर पर भस्म, और वाहन नंदी, यह सब प्रतीक हैं कि शिव स्वयं प्रकृति में रमण करते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शिव का स्वरूप स्वयं में पर्यावरणीय स्थिरता का प्रतीक है। उनकी जटाओं में गंगा, जल संरक्षण और प्रवाह का संतुलन, गले का सर्प, जैव विविधता के साथ समरसता, शरीर पर भस्म, उपभोग से संयम का प्रतीक, नंदी, पशुधन और प्रकृति के साथ सामंजस्य और त्रिशूल, चेतना, ऊर्जा और न्याय का त्रय संतुलन है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब हम विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मना रहे हैं तो आइए समझें कि प्रकृति के संरक्षण की शुरुआत बाहर से नहीं, भीतर से होती है। स्व से समष्टि का यही अर्थ है जब हम अपने जीवन को संयमित, सतोगुणी और सेवा-परक बनाते हैं, तो उसका सीधा प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है।
प्रकृति हमारे अस्तित्व की आधारशिला है। जल, वायु, वृक्ष, नदियाँ, पर्वत और जीव, ये सभी प्रकृति के वो अंग हैं जो जीवन को सम्भव और संतुलित बनाते हैं। यदि प्रकृति है, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित है, और तभी हमारी सनातन संस्कृति जीवंत रह सकती है।
हमारी संस्कृति सदैव “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना पर आधारित रही है, जहाँ जीव-जंतुओं, पेड़ों और नदियों को भी ईश्वर का रूप मानकर पूजा जाता है। जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं, तो हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को भी जीवित रखते हैं।
आज प्रदूषण, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ सिर्फ पर्यावरण की नहीं, बल्कि मानवता की भी हैं। यदि हमने अभी प्रकृति का संरक्षण नहीं किया, तो आने वाली पीढ़ियों को सिर्फ संकट और सूखा विरासत में मिलेगा इसलिए समय की पुकार है प्रकृति को पूजें नहीं, उसकी रक्षा भी करें।
आईए आज श्रावण के तीसरे सोमवार संकल्प लें एक पेड़ माँ के नाम और एक पेड़ धरती माँ के नाम रोपित कर प्रकृति संरक्षण का संकल्प लें।

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