अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की जयंती पर परमार्थ निकेतन मां गंगा जी के तट से विनम्र श्रद्धांजलि
शिवरात्रि आत्मचेतना और ब्रह्मांडीय संतुलन से जुड़ने की रात्रि
आज जरूरत है आजाद की तरह जीने और शिव की तरह जागने की : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। 23 जुलाई, भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम दिन है जब मातृभूमि की गोद में एक ऐसी ज्वाला ने जन्म लिया, जिसने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। वह ज्वाला थे, चन्द्रशेखर आजाद।
भारत के युवा क्रान्तिकारी आन्दोलन के पुरोधा, चन्द्रशेखर आजाद मात्र 24 वर्ष की आयु में शहीद हो गए, पर उनकी शौर्यगाथा आज भी भारतवर्ष की धमनियों में उर्जा बनकर प्रवाहित हो रही है। उनका जीवन साहस, स्वाभिमान और बलिदान की प्रतिमूर्ति है। वे कहते थे “मैं आजाद था, आजाद हूँ और आजाद ही रहूँगा।”
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब हम उनकी जयंती मना रहे हैं, यह केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान के लिए एक आह्वान है, क्या हम आजाद के सपनों का भारत बना पाए? क्या आज के युवा उतने ही समर्पित, साहसी और राष्ट्रनिष्ठ हैं जितने आजाद थे?
चन्द्रशेखर आजाद ने राष्ट्र को परम धर्म माना और उसी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया, अंतिम गोली स्वयं पर चलाई, पर गुलामी को गले नहीं लगाया। आज जब युवा वर्ग पर पश्चिमी प्रभाव, नशे, अपसंस्कृति और आत्मकेंद्रित जीवन का प्रभाव दिखायी देता है, तब चन्द्रशेखर आजाद की जयंती जागृति का बिगुल है। आज का दिन हमें यह पुकारकर कह रहा है कि इतिहास को जीना सीखो।
आज का दिन भारतभूमि के लिए विशेष है हम भारत माता के वीर सपूत, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी योद्धा चन्द्रशेखर आजाद की जयंती मना रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्र के लिए जिया और वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे बल्कि वे भारतीय आत्मा की अस्मिता, स्वाभिमान और संघर्ष का प्रतीक हैं। उनकी घोषणायें केवल शब्द नहीं थी, वह तप और त्याग से युक्त एक अग्नि-ज्योति थी, जिसने पूरे देश को स्वतंत्रता की ज्वाला में झोंक दिया। मात्र 24 वर्ष की आयु में बलिदान देकर वे अमर हो गए, लेकिन उनके विचार और उनका साहस आज भी प्रत्येक राष्ट्रभक्त के हृदय में धधकता है।
आज के युवाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि स्वतन्त्रता केवल राजनीतिक या भौगोलिक नहीं होती, बल्कि यह मानसिक, सांस्कृतिक और आत्मिक चेतना का विषय भी है। जब तक हम मानसिक रूप से पराधीन रहेंगे तब तक हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हो सकते। यह समय राष्ट्र के पुनर्निर्माण का है और एक नये क्रांति की पुकार का है।
स्वामी जी ने कहा कि आज जरूरत है आजाद की तरह जीने और शिव की तरह जागने की।
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश से हम समस्त देशवासियों और विश्व परिवार को शुभकामनाएं दी। यह दिव्य रात्रि आत्मचेतना और ब्रह्मांडीय संतुलन से जुड़ने का पर्व है।
भगवान शिव केवल संहारक नहीं, वे संतुलन, नवसृजन और करुणा के प्रतीक हैं। उनका डमरु सृष्टि के नाद को प्रकट करता है, और जटाओं से बहती मां गंगा उनकी कृपा की अजस्र धारा है। तीसरा नेत्र केवल विनाश नहीं, बल्कि अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली जागरूकता का प्रतीक है।
जब हम शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं, यह मात्र एक अनुष्ठान नहीं होता, बल्कि हमारे भीतर के अहंकार, नकारात्मकता और स्वार्थ को शुद्ध करने की प्रक्रिया बन जाता है।
आज, जब पृथ्वी जलवायु संकट से जूझ रही है, पर्यावरण असंतुलन चरम पर है, तब हमें शिव से प्रेरणा लेकर ‘नीलकंठ’ बनना होगा अपने स्वार्थों के विष को पीकर, समाज और प्रकृति की रक्षा के लिए आगे आना होगा। आइए, इस महाशिवरात्रि पर हम संकल्प लें, हर जीवन साधना बने, हर कर्म सेवा बने, प्रकृति की रक्षा हमारा धर्म बने, और हमारा जीवन शिवमय बने।

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