बसंत पंचमी नए कार्यों का शुभारंभ करने का बहुत ही शुभ अवसर के रूप में माना जाता है बसंत पंचमी का दिन सबसे पवित्र दिनों में माना जाता है उत्तराखंड के स्थानीय भाषा में श्री पंचमी भी कहते है बसंत पंचमी के दिन सभी शुभ कार्य किये जा सकते हैं इसे बहुत पवित्र दिन माना जाता है आज के दिन जनेऊ संस्कार एवं लगन विवाह भी किए जाते हैं

आज के दिन लोग घर में साफ सफाई करने के बाद लिपाई पुताई आदि के उपरांत घर की देहली में सरसों के फूलों व जौं की पत्तियों से पूजा अर्पित की जाती है एवं जौं के पत्तियों को कान में रखते हैं जो की पत्तियों को सुख एवं समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है ।

परंपरागता अनुसार इस दिन घर में खीर पकाई जाती है और अधिकतर बच्चों को पीले वस्त्र धारण कराये जाते हैं जो बहुत शुभ माना जाता है उसे दिन बच्चों के नाक और कानों में छेद किए जाते हैं एवं उनके कानों में जो की पत्तियों का रस डालकर बच्चों को गुड़ खिलाया जाता है।

आज ही के दिन आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना की थीआज के ही दिन गढ़वाल में नरेंद्र नगर की राजमहल से बैकुंठ धाम के कपाट खुलने की तिथि भी तय की जाती है आज के दिन विद्या की देवी सरस्वती का भी पूजन किया जाता है क्योंकि यह शुभ दिन सरस्वती का भी दिन माना जाता है।

परंतु समय के बदलते हुए चरणों में इन केस त्योहार को लोग तवज्जो नहीं दे रहे हैं जिससे हमारी परंपराओं को बहुत नुकसान हो रहा है क्योंकि हमारी जेड इन्हीं परंपराओं पूजनौं आदि से ही बढ़कर फली भूत हुई है परंतु नई पीडिया आज इसे ढकोसला बाजी दिखावा या पुरानी बातें कहके इन पर्वों से विमुख होते जा रही है जिससे हमारे पारंपरिक संस्कृतियों का हास होता जा रहा है। हमारे नवयुवकों को भी चाहिए की इन परंपराओं को जीवित रखा जाए जिससे हमारी पहचान नीरत बनी रहे।

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