*परम पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में वेदमंत्रों से किया माँ गंगा का पूजन एवं विश्व शान्ति हेतु प्रार्थना*

*हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का दिव्य पौधा किया भेंट, महाकुम्भ 2025 में सहभाग हेतु आमंत्रण

*दिव्य आध्यात्मिक चर्चा- संगीत है भक्ति की शक्ति*

*सिर्फ ह्यूमन राइट्स नहीं बल्कि रिवर राइट्स (नदी के अधिकार) और नेचर राइट्स (प्रकृति के अधिकार) भी जरूरी*

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में स्वर साम्राज्ञी, प्रसिद्ध भक्ति संगीत गायिका अनुराधा पौडवाल जी का आगमन हुआ। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट कर महाकुम्भ प्रयागराज में सहभाग की ईच्छा व्यक्त की। दिव्य आध्यात्मिक वार्ता हुई, जिसमें संगीत और भक्ति के माध्यम से आत्मशान्ति की ओर बढ़ना, संगीत है भक्ति की शक्ति, संगम से संगम का संदेश आदि अनेक विषयों पर चर्चा हुई।

अनुराधा पौडवाल जी ने परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण और यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा के बारे में अपनी भावनाएं व्यक्त की और कहा कि संगीत ने उनके जीवन में कैसे शांति और भक्ति का संचार किया है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ उनकी यह मुलाकात बहुत प्रेरणादायक रही।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अनुराधा पौडवाल को आगामी महाकुम्भ मेला प्रयागराज 2025 में सहभाग हेतु आमंत्रित किया। अनुराधा पौडवाल जी ने इस विशेष निमंत्रण के लिए स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का धन्यवाद करते हुये बताया कि महाकुम्भ में आदिगुरू शंकराचार्य जी की प्रसिद्ध रचना ‘भज गोविंदम’ को नये स्वरूप में रिलीज किया जायेगा।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आदिगुरु शंकराचार्य जी की प्रसिद्ध रचना ‘भज गोविंदम’ का एक नया रूप प्रस्तुत अनुराधा पौड़वाल जी के मधुर स्वर में भक्तों को भक्ति में डुबने का अवसर प्रदान करेगा। यह रचना जीवन के उद्देश्य और परमात्मा की भक्ति पर गहरी दृष्टि प्रदान करती है, जो श्रद्धालुओं के दिलों में नई ऊर्जा का संचार करेगी।

स्वामी जी ने कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी सी आयु में भारत का भ्रमण कर हिन्दू समाज को एक सूत्र मंे पिरोने; भारत का संगम बनाये रखने हेतु जीवनपर्यंत प्रयास किया। तभी तो केदारनाथ में पूजा हेतु ‘केसर’ कश्मीर से तो ‘नारियल’ केरल से मंगाया जाता है। जल, गंगोत्री का और पूजा रामेश्वर धाम में की जाती है, क्या अद्भुत दृष्टि है।

जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण कर एकात्मकता का संदेश दिया। उनके संदेश का सार यह है कि एकरूपता भले ही हमारे भोजन में और हमारी पोशाक में न हो परन्तु हमारे बीच एकता और एकात्मकता जरूर हो, एकरूपता हमारे भावों में हो, विचारों में हो ताकि हम सभी मिलकर रहें और एक रहेेेेेेेेेेेें। उन्होंने पूरे समाज को एक किया हम कम से कम स्वयं के भीतर एकता का दीप जलायें, ताकि परिवार, समाज और राष्ट्र में एकता बनी रहे; संगम बना रहे।

स्वामी जी ने कहा कि हम किसी को छोटा, किसी को बड़ा, किसी को ऊँच और किसी को नीच न समझें। हमारे बीच मतभेद भले हो परन्तु मनभेद न हो। मतभेदों की सारी दीवारों को तोड़ने के लिये तथा छोटी बड़ी दरारों को भरने के लिये केरल से केदारनाथ तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक आदिगुरू शंकराचार्य जी ने पैदल यात्रायें की वह भी ऐसे समय जब कम्युनिकेशन और ट्रंासपोर्टेशन के कोई साधन नहीं थे। ऐसे परम तपस्वी, वीतराग, परिव्राजक, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सनातन धर्म के मूर्धन्य जगद्गुरू शंकराचार्य जी की दिव्य रचना भज गोविंदम् का नये स्वरूप में रिलिज़ भी अपने आप में महान कार्य है। इससे भारत की सांस्कृतिक एकता और अखंडता को और मजबूत किया जा सकता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बताया कि आदिगुरु शंकराचार्य ने जिन चार मठों की स्थापना की, वे भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण अंग है और इस संगम ने भारत को एकजुट किया है।

आज ह्यूमन राइट्स डे के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि हमें मानवाधिकारों के साथ-साथ पर्यावरणीय अधिकारों की भी आवश्यकता है। हमारे जो दिव्य मंत्र हैं, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘लोकाः समस्ता सुखिनो भवन्तु’, ’अनय निजा परा वेती गणना’ ‘विश्व बन्धुत्व’ और ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ यही सबसे बड़ा मानवाधिकार (ह्यूमन राइट्स) है। यह मंत्र न केवल इंसानों के लिए, बल्कि सभी जीवों, प्राणियों और पृथ्वी के लिए भी एक समान प्रेम और कल्याण की कामना करते हैं। ये विचार पूरी दुनिया को एकता के सूत्र में जोड़ते हैं और सभी के कल्याण की प्रार्थना करते हैं, यही वास्तव में मानवाधिकार हैं।

स्वामी जी ने आगे कहा, ‘हम सिर्फ ह्यूमन राइट्स की बात न करें, बल्कि रिवर राइट्स (नदी के अधिकार) और नेचर राइट्स (प्रकृति के अधिकार) पर भी विचार करें क्योंकि जब तक हम प्रकृति और नदियों को अधिकार नहीं देंगे, तब तक मानवता भी खतरे में रहेगी। पृथ्वी, जल, हवा और अन्य प्राकृतिक संसाधन, जो जीवन के अस्तित्व के लिये जरूरी हैं, यदि इनका संरक्षण नहीं किया जाएगा, तो मानवाधिकार सम्भव नहीं है इसलिये हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी समझें और पूरे ग्रह के कल्याण की दिशा में मिलकर कार्य करें।

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