-दिव्य व भव्य कुम्भमेला प्रयागराज और आयुर्वेद चिकित्सा पद्वति के विस्तार पर हुई चर्चा*
-आयुर्वेद के ग्रंथों का उपहार पूरी मानवता के लिये आचार्य बालकृष्ण जी ने किया तैयार*
ऋषिकेेश। प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के पावन अवसर पर, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और पतंजलि योगपीठ, आचार्य बालकृष्ण जी की दिव्य भेंटवार्ता हुई। यह ऐतिहासिक भेंट वार्ता दिव्य और भव्य कुम्भमेला प्रयागराज तथा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विस्तार पर केंद्रित रही।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, यह जीवन जीने की कला है। यह हमारे शरीर, मन और आत्मा के समग्र स्वास्थ्य का ध्यान रखता है। आयुर्वेद की यह प्राचीन परंपरा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है और इसे संरक्षित करना और बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है। आचार्य बालकृष्ण जी इस दिव्य परम्परा को विस्तार प्रदान करने के लिये समर्पित है। वे आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों का संग्रह पूरी मानवता के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। ये ग्रंथ न केवल आयुर्वेदिक ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की संजीवनी भी हैं। इन ग्रंथों में निहित ज्ञान को आचार्य जी सरल भाषा में प्रस्तुत कर रहे है, ताकि यह हर व्यक्ति के लिए सुलभ और उपयोगी हो सके।
आचार्य बालकृष्ण जी के इस अद्वितीय योगदान की सराहना करते हुए कहा स्वामी जी ने कहा कि आचार्य जी का यह प्रयास वास्तव में सराहनीय है। आयुर्वेदिक ग्रंथों का यह संग्रह न केवल हमारी प्राचीन धरोहर को जीवित रखेगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य संपत्ति साबित होगा।
आचार्य बालकृष्ण जी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, ‘आयुर्वेद के ग्रंथ न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। इन ग्रंथों में निहित ज्ञान और विज्ञान मानवता के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। हमने आयुर्वेद के इन प्राचीन ग्रंथों को नए सिरे से संकलित और प्रकाशित किया है, ताकि यह ज्ञान जनसमुदाय तक पहुंच सके और उनका जीवन स्वस्थ और समृद्ध हो सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और आचार्य बालकृष्ण जी ने भव्य कुम्भमेला प्रयागराज की दिव्यता, भव्यता और आध्यात्मिकता को बनाये रखने हेतु विशद् चर्चा की। कुम्भमेला, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। स्वामी जी ने कहा, ‘कुम्भमेला न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है, बल्कि यह लाखों लोगों को एकत्रित कर अध्यात्मिकता और मानवता की ओर प्रेरित भी करता है। यह अवसर हमें एक साथ आने, अपने विचार साझा करने और एक नई दिशा में कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
आचार्य बालकृष्ण जी ने कुम्भमेला की महत्ता पर जोर देते हुए कहा, कुम्भमेला एक ऐसा मंच है, जहां हम हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों, विशेषकर आयुर्वेद, को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित कर सकते हैं। यह आयोजन न केवल हमारे आध्यात्मिक उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को भी सजीव करता है। आयुर्वेद केवल उपचार की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य को बनाए रखने की कला भी है। यह हमें एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
प्राकृतिक चिकित्सा दिवस के अवसर पर आयोजित इस दिव्य भेंट वार्ता ने हमें आयुर्वेद की प्राचीन परंपरा और उसकी आधुनिक प्रासंगिकता पर गहन विचार विमर्श किया।