हरिद्वार/ डरबन।‌अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन महाराज बताते हैं कि महागौरी देवी नवदुर्गा की आठवीं रूप में मानी जाती है। महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान हैं, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान, शांत हैं – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती है। यह वह रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।

नागरी प्रचारिणी सभा विष्णु मंदिर डरबन, साउथ अफ्रीका में चल रहे श्री मद् देवीभगवद् महापुराण कथा का वर्णन करते हुए कथा व्यास स्वामी रामभजन वन जी महाराज महागौरी के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि महागौरी का जन्म हिमालय पर्वत पर हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां हुआ था। इनके प्रारंभिक जीवन में महागौरी का रंग अत्यंत काला था, जिससे उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने जहरीले सांपों और जंगली जानवरों के साथ जीवन व्यतीत किया, कुछ समय बाद उनके तप और साधना के परिणामस्वरूप उनका रंग सफेद हो गया और वे अत्यंत सौंदर्यवान बन गईं।

महागौरी ने भगवान शिव की आराधना की और उनकी कृपा से उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। इस रूप में, उन्हें “शिव पत्नी” के रूप में पूजा जाता है। महागौरी की कृपा से भक्तों के सभी दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं और उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

महागौरी की साधना करने वालों के लिए:
1. पूजा विधि: भक्त उन्हें सफेद फूल, धूप, दीप, और मिठाइयाँ अर्पित करते हैं।

2. मंत्र “ॐ महागौर्यै नम:” का जाप किया जाता है

3. उपवास: नवरात्रि के दौरान विशेष उपवास रखकर उनकी आराधना की जाती है।

वीजमंत्र:
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’

के जप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।

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