ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी अपनी विदेश यात्रा के पश्चात मंगलवार को परमार्थ निकेतन पहुंचे। परमार्थ निकेतन के आचार्यो, ऋषिकुमारों और परमार्थ परिवार ने उनका दिव्य व भव्य अभिनन्दन किया। स्वामी जी के आगमन से परमार्थ निकेतन परिवार के लिये मानों आज की गुरूपूर्णिमा और श्रावण का उत्सव हैं। 

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने महामंडलेेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी से भेंट कर उनका हालचाल लिया। हाल ही में उनका स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्हें एम्स, ऋषिकेश में भर्ती किया गया था। अभी उनके स्वास्थ्य में सुधार हैं और वे आश्रम लौंट आये हैं।

अपनी विदेश यात्रा से लौटते ही स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने परमार्थ निकेतन द्वारा कांवड मेंला में प्रदान की जा रही जल और स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लिया। स्वर्गाश्रम से लेकर बैराज तक 8 स्थानों पर जल मन्दिर लगाये गये हैं। स्वामी जी ने कहा कि इस गर्मी के मौसम में थोड़-थोड़ी दूरी पर जल की सुविधायें होना आवश्यक है। उन्होंने परमार्थ सेवा टीम को निर्देश दिया कि जितने जल मन्दिर लगाये हैं उससे तीन गुनी संख्या और बढ़ा दी जायें ताकि शिवभक्तों को किसी भी प्रकार की समस्याओं का सामना न करना पड़ें। स्वामी जी ने सेवा टीम व चिकित्सों की टीम को निर्देश दिये कि जल की कमी से डिहाइड्रेशन और कई बीमारियां होती हैं इसलिये कावंडियों को प्रदान की जा रही सेवाओं में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिये।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने महामंडलेश्वर जी और सभी को अपनी यात्रा के संस्मरणों को बताते हुये कहा कि पश्चिम की धरती पर लोगों के अन्दर भारतीय संस्कृति को जानने व जीने की एक प्यास हैं। आपस के बढ़ते तनाव व सेपरेशन के कारण लोग भारतीय संस्कृति को जीना चाहते हैं ताकि घर, परिवार और उनके जीवन में शान्ति बनी रहें।

पश्चिम की धरती पर काफी तेजी से भारतीय संस्कृति व संस्कारों का संवर्द्धन हो रहा हैं। स्वामी जी पश्चिम की धरती पर विशेष कर अमेरिका में रह रहे भारतीय परिवारों को कुम्भ मेला, प्रयागराज, गंगा तट ऋषिकेश व भारत आने हेतु आमंत्रित किया।

स्वामी जी ने बताया कि पूरे विश्व में गंगा जी और गंगा जी के तट परमार्थ निकेतन में होने वाली गंगा आरती के लोग दीवाने हैं। अमेरिका में रहने वाले अनेक परिवारों के सदस्यों ने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा जी की आरती में सहभाग करना उनके लिये दिव्यता से युक्त उत्सव से कम नहीं है।

स्वामी जी ने भारत के युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि अपनी जड़ों, मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति से जुड़कर जीवन का जो विकास होता है वह और कहीं भी नहीं हो सकता। उन्होंने अपने मूल्यों व जड़ों से जुडे़ रहने का संदेश दिया।

 

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