ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन, गंगा जी के पावन तट पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा की आज पूर्णाहुति के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे शास्त्र अनमोल रत्न हैं, जो हमें मार्गदर्शन, प्रेरणा और सद्मार्ग प्रदान करते हैं। सद्ग्रंथों के माध्यम से हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं और परिस्थितियों को जानने, समझने और सुलझाने का मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
श्रीमद्भागवत कथा हमें जीवन के हर पहलु का मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। प्रभु के प्रति प्रेम और समर्पण से कैसे अनंत शान्ति व मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही कैसे परिवारों में नैतिक मूल्यों व संस्कारों का रोपण हो इस की बड़ी ही सुन्दर व्याख्या की गयी है।
वर्तमान समय में जीवन में समृद्धि तो हैं परन्तु शांति नहीं हैं। कथायें हमें शान्ति व समृद्धि के सामंजस्य का मार्ग दिखाती हैं। सत्यता व शुद्धता से युक्त उदारतापूर्ण जीवन जीने का मंत्र प्रदान करती हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माँ गंगा के पावन तट पर कथा श्रवण करना अत्यंत सौभाग्य की बात है। आप सभी ने कथा का शुभारम्भ मंगल कलशयात्रा के साथ किया। हमें एक बात याद रखनी होगी कि हमारी ये नदियां हैं तभी तक कथायें हैं, तीर्थ हैं, कलशयात्रा है इसलिये हमें नदियों को जीवंत, निर्मल व सदानीरा बनाये रखने के लिये सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा। कथाओं के मंच से झोला आन्दोलन चलाना होगा। हम कथाओं की पूर्णाहुति भंडारों से करते हैं ’अब पेडे नहीं पेड़ बांटें’।
स्वामी जी ने कहा कि हमारी कथाओं को प्लास्टिक मुक्त अभियान, झोला आन्दोलन, प्लास्टिक मुक्त भंडारा, हरित कथा आदि को समर्पित करना होगा तभी हम इन नदियों के माध्यम से अपनी संस्कृति व संतति को बचा सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि प्लास्टिक एक महामारी की तरह है। हम जिस वेग से प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं उसी वेग से हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिये महामारी को दावत दे रहे हैं। वैश्विक स्तर पर हर साल लगभग एक करोड़ 10 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा-कचरा समुद्रों में बहा दिया जाता है आंकडों के अनुसार वर्ष 2040 तक इसके तिगुना हो जाने का अनुमान है. प्लास्टिक प्रदूषण अनेक प्रकार की हार्माेनल व न्यूरोलॉजिकल समस्याओं को जन्म दे रहा है। आज हम जिस प्रकार प्रकृति को तहस-नहस कर रहे हैं इसके परिणाम भावी पीढ़ी को भुगतने पडेंगे। हम सभी जानते हैं कि हमें क्या करना है, हमारी सुरक्षा, समृद्धि, स्वास्थ्य और संतति की जिन्दगी व निर्भरता दोनों ही पृथ्वी का निर्भर है इसलिये आईये प्रकृति व मानवता की रक्षा का बीजारोपण आज इस कथा की पूर्णाहुति के माध्यम से करें।
कथा व्यास श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने कहा कि हमारा परम सौभाग्य है कि हमें माँ गंगा के पावन तट परमार्थ निकेतन में प्रथम बार कथा आयोजित करने का अवसर प्राप्त हुआ। पूज्य स्वामी जी का सान्निध्य, उनके अद्भुत उद्बोधन और अद्वितीय चिंतन को थोड़ा बहुत जानने का अवसर हमें प्राप्त हुआ। यह कथा केवल एक कथा नहीं बल्कि जागरण का केन्द्र बन गयी, जहां से हमें पौधा रोपण, पर्यावरण संरक्षण, प्लास्टिक मुक्त कथा व प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के दिव्य सूत्र प्राप्त हुये।
परमार्थ गंगा आरती की महिम अद्वितीय है। माँ गंगा, भारत के पांच राज्यों से होते हुये बहती हैं। इन पांच राज्यों की यात्रा में गंगा जी के अनेक तट हैं जहां पर आरती होती हैं परन्तु परमार्थ गंगा तट पर आकर गंगा जी अपने को धन्य मानती होगी कि जिस कार्य के लिये स्वर्ग से आयी थी, कि सब का उद्धार कंरू वह वास्तव में यहां पर चरितार्थ हो रहा है।
यजमान परिवार ने कहा कि क्या अद्भुत वातावरण है परमार्थ निकेतन का वास्तव में यह स्वर्ग है, क्या अद्भुत आनंद आया। जो यहां पर आया वह वापस जाना ही नहीं चाहता। इस पवित्र गंगा तट पर आकर जीवन धन्य हो गया; जीवन पवित्र हो गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा की पूर्णाहुति के पावन अवसर पर श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा भेंट कर हरित कथाओं के लिये प्रेरित किया।

 

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