ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व अभिभावक दिवस के अवसर पर दुनिया भर के सभी माता-पिता का आह्वान करते हुये कहा कि बच्चों के पालन-पोषण में माता-पिता का पूरा जीवन निकल जाता है क्योंकि बच्चों के पालन-पोषण और सुरक्षा की प्राथमिक ज़िम्मेदारी परिवार की है। 
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि बच्चों के व्यक्तित्व के पूर्ण और सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए पारिवारिक माहौल, संस्कार, खुशी, प्रेम और समझ युक्त माहौल में बड़ा होना अत्यंत आवश्यक है। भारतीय संस्कृति की संयुक्त परिवारों की उत्कृष्ट संरचना इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। परिवार में वृद्धजन वर्तमान व भावी पीढ़ी के मध्य संस्कारों की कनेक्टिविटी के प्रकाशस्तंभ व आधारस्तंभ है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में बाल स्वास्थ्य और विकास के प्रोफेसर जैक शोंकॉफ ने साझा किया कि जीवन के पहले 1,000 दिनों में, एक बच्चे का मस्तिष्क हर सेकंड 1,000 नए कनेक्शन बनाता है। इस उम्र में सिर्फ 15 मिनट की शिक्षा, संस्कार, शास्त्रोक्त कहानियां व खेल बच्चों के मस्तिष्क में हजारों कनेक्शन को जगा सकता है इसलिये बचपन में बच्चों को मोबाइल मत पकड़ा दो उन्हें थोड़ा अपना समय दें तथा उनके जीवन को संस्कारों से पोषित करे।
स्वामी जी ने कहा कि अभिभावकों द्वारा किये जा रहे आजीवन बलिदान, प्रेम, त्याग और सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक माहौल से ही संस्कार युक्त पीढ़ी का निर्माण होता है, जो न केवल परिवार या राष्ट्र बल्कि वैश्विक स्तर पर अद्भुत परिवर्तन कर सकते हैं। परिवारिक संस्कारों से ही समाज की नींव मजबूत होती है। परिस्थितियां कैसी भी हो परन्तु माता-पिता हमेशा अपने बच्चों के साथ खड़े रहते हैं और बच्चांे की जीवन यात्रा को सफल बनाने में निःस्वार्थ परिश्रम करते हैं। धरती पर माता-पिता प्रत्यक्ष देवता हैं। हमारी गौरवशाली संस्कृति मंे धरती माता तथा अभिभावकों को भगवान का दर्जा दिया गया हैं, वे अपने बच्चों को प्रसन्न और स्वस्थ रखने के लिए स्वयं संघर्ष करते हैं; बच्चों को सर्वश्रेष्ठ देने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं इसलिए उनके बलिदान को हमेशा याद रखंे।

स्वामी जी ने कहा कि अभिभावकों की जिम्मेदारी केवल जन्म देना ही नहीं बल्कि बच्चों को संस्कारों से पोषित करना भी है। बच्चों को ओवरप्रोटेक्टिव न बनाये इससे उनका सही विकास नहीं हो सकता। बच्चे को जीवन में आने वाली असफलता का साहसपूर्वक सामना करना सिखाये।
स्वामी जी ने अभिभावकों की बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रतिबद्धता और इस रिश्ते को पोषित करने के लिए उनके आजीवन बलिदान की सराहना करते हुये कहा कि वे बच्चों और किशोरों को पहचान, प्यार, देखभाल और सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता भी प्रदान करते हैं परन्तु इन सब के साथ उन्हें संस्कार देना अत्यंत आवश्यक है।

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