*स्वामी चिदानन्द सरस्वती की प्रेरणा, मार्गदर्शन व संरक्षण में मानस कथाकार संत श्री मुरलीधर जी महाराज के मुखारविंद से श्रीराम कथा की ज्ञान गंगा परमार्थ गंगा तट पर हो रही प्रवाहित*
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने वैशाख पूर्णिमा के पावन अवसर पर भगवान बुद्ध के अवतरण दिवस की शुभकामनाएं देेते हुये कहा कि अब दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध चाहिये; भगवान बुद्ध का बुद्धत्व चाहिये। भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और महापरिनिर्वाण का दिवस है। उनकी करूणा, ज्ञान, शांति और अहिंसा के संदेशों को आत्मसात करने का अवसर है जिसकी आज पूरे विश्व को जरूरत है। श्रीराम कथा व्यास संत मुरलीधर जी ने मानस कथा, व्यासपीठ से प्रभु श्रीराम जी की मंत्रमुग्ध करने वाली लीलाओं का बड़ा ही दिव्यता से गुणानुवाद किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर संदेष दिया कि भगवान बुद्ध ने ‘आत्म दीपो भवः’ ‘अपने दीपक स्वयं बनो’ का एक ऐसा दिव्य संदेष दिया जिसे आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़े तो अक्सर युवाओं के जीवन में जितने भी बहकाव हैं वह ठहराव में बदल जायेंगे। सभी के भीतर अपार सृजनात्मक संभावनाएँ हैं इसलिये भटकाओं और बहकाओं से ऊपर उठकर अपना मार्ग स्वयं बनाये।
स्वामी जी ने कहा कि दुनिया में महापुरुष तो बहुत हुये परन्तु भगवान बुद्ध जैसी महान विभूतियाँ बहुत कम हुई जिन्होंने अपने जीवन से दुनिया को एक नई राह दिखाई है। उन्होंने जीवन में ‘मध्यम मार्ग’ अपनाने का सूत्र दिया क्योंकि अति सर्वत्र वर्जयेत। जीवन में अति किसी भी चीज की हो वह घातक है। जिस प्रकार अगर हम वीणा के तार को अधिक खींच दें तो वह टूट जायेगा और अगर ढीला छोड़ा दें तो उससे स्वर ध्वनि ही नहीं निकलेगी वैसे ही जीवन भी है जब तक सम बना रहेगा तब तक सब ठीक से चलेगा।
भगवान बुद्ध का दूसरा सूत्र है जीवन में ’संवेदनषीलता’ अर्थात् दूसरों के दुखों को अनुभव कर दूर करने के लिये प्रयत्न करना, जब यह भाव जागृत हो जायेगा तो दुनिया में न तो आपसी विवाद होंगे और न प्रकृति की उपेक्षा का भाव आयेगा। भगवान बुद्ध राजकुमार थे परन्तु जब उन्होंने दूसरों के दुःखों को देखा तो उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ और सब कुछ छोड़कर निकल गये जानने कि क्यों सर्वम दुखम’ है ’सर्वत्रं दुखम’ है। उनके द्वारा दिये गये जीवन के सूत्र तप के माध्यम से निखरे हुये सूत्र हैं जो एक सतत, सुरक्षित, षान्त व समृद्ध विष्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान बुद्ध एक विचार है जो हर युग के लिये प्रासांगिक है। उनका पूरा जीवन ही उनका संदेश है जो शांति, सहिष्णुता, समझदारी और सहनशीलता का संदेश देता है। उन्होंने पूरा जीवन सम्पूर्ण मानवता के साथ प्रेम किया, बदले में किसी ने क्या दिया इसकी कभी परवाह भी नहीं की। वास्तव में वे करूणा के अवतार हैं उनके जीवन का प्रत्येक सूत्र हमें मानवता की सेवा हेतु प्रेरित करता है। आईये आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लें ताकि एक सशक्त राष्ट्र और समुन्नत व सहिष्णु दुनिया का निर्माण सम्भव हो सके।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने मानस कथा के दिव्य मंच से संदेश दिया कि सत्य एक मेग्नेट की तरह है, प्रेम एक मेग्नेट है और भक्ति भी एक मेग्नेट है बस जरूरत है उस मेग्नेट के सम्पर्क में, उस परमात्मा के सम्पर्क में आने की। श्री राम कथा का श्रवण करने से पूरा जीवन ही बदल जाता है, इससे जीवन बड़ा नहीं बल्कि बढ़िया बना जाता है। कथा हमारे जीवन में अध्यात्म रूपी लाटरी खोलने का अवसर प्रदान करती है। कथा हमें सिखाती है कि हम कौन हैं और हमें करना क्या है। कथा हमें यह संदेश देती है कि हम प्रभु से अलग नहीं है इसलिये सेवा ही हमारे जीवन का उद्देश्य है। पूर्णिमा के दिन हमें प्रकाश देने के लिये भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ। आज उस प्रकाश को आत्मसात करने का दिन है। जो भी अपने पास है उसे दूसरों के साथ बांटने का संदेश देता है भगवान बुद्ध का जीवन।