ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने नवरात्रि के अवसर पर जीवन की नवीनता को स्वीकार करने का संदेश दिया। जीवन में हर सुबह नूतन होती है, हर दिन नया संदेश लेकर आता है, हर आने वाला मिनट और सेकेंड नया होता है। नवरात्रि, जीवन की नवीनता का संदेश देती है। नवरात्रि, आत्म निरीक्षण का महापर्व है; जीवन में निर्मलता को धारण कर आत्म साधना और आत्मोत्कर्ष की ओर बढ़े और इन नौ दिनों को आत्मावलोकन में लगाये और एक संकल्प के साथ जीवन जिएं। नवरात्रि अर्थात ‘नौ रातें’ जो देवी को समर्पित है।

भारतीय समाज में नारियों को देवी का प्रतिरूप माना गया है परन्तु नवरात्रि के अवसर पर यह देखने की आवश्यकता है कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में कितना बदलाव आया है? आजादी के इन 75 वर्षों में हमारी नारी शक्ति चाँद पर पहुँच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक में पदक जीत रही हैं, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ चला रही हैं या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर संभाल रही हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें तो अभी भी उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत है।

वर्तमान समय में भारत में आज भी बहुत सी बेटियाँ ऐसी हैं, जो शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं। वहीं, पढ़ाई-लिखाई के दौरान बीच में ही स्कूल छोड़ देने वाली बेटियों की संख्या भी बेटों की संख्या से बहुत ज्यादा है क्योंकि बेटियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे घर के कामकाज में मदद करें। वहीं, उच्च शिक्षा की बात करें तो बहुत सी बेटियाँ सिर्फ इसलिए उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती हैं क्योंकि उनके परिवार वाले पढ़ाई के लिये उन्हें घर से दूर नहीं भेजते हैं, जिसके चलते उनका अधिकतर समय घरेलू कामों में ही लगा देती है और महिलाओं व पुरुषों के बीच समानता का अंतराल बढ़ता चला जाता है।

आज भी महिलाओं की अधिकांश समस्याओं का कारण आर्थिक रूप से परनिर्भरता है। यह बेहद चिंताजनक है कि देश की कुल आबादी में 48 फीसदी महिलाएँ हैं जिसमें से मात्र एक तिहाई महिलाएँ रोजगार करती हैं। इसी वजह से भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फीसदी है। आजादी के बाद से अब तक भारत में नारियों ने विभिन्न क्षेत्रों में एक बहुत लंबा रास्ता तय किया है, परंतु अभी भी मंजिल से मीलों दूर हैं। नवरात्रि हमें एक अवसर प्रदान करती है जब हम यह सोचे कि हम अपनी बेटियों को न तो देवी का दर्जा प्रदान करे और न ही दासी का उन्हें केवल बेटी के रूप में स्वीकार करे। आईये संकल्प ले कि हम अपनी बेटियों को सामान नहीं सम्मान प्रदान करे। ’तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’। इसी संकल्प के साथ नवरात्रि का पर्व मनाये।




Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *