ऋषिकेश। विकास और शान्ति के लिये अन्तर्राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ‘‘मानवता का आरोहण करना है तो खेल भावना को बढ़ाना होगा। खेल, सामूहिक भावना का प्रतीक है, उसी प्रकार बेहतर भविष्य के लिये सामूहिक साधना, सामूहिक कार्य और सामूहिकता आवश्यक है। ‘‘जो जीता हैं वही उसके लिये गीता है’’ भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत उठाते हुये यही संदेश दिया था। सामूहिकता में बहुत बल है, सामूहिक चित्त की शक्ति दुनिया में एक सकारात्मक विष्फोट कर सकती है।
स्वामी जी ने कहा कि समाज में खेल भावना को बढ़ावा देने की जरूरत है। विकास और शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय खेल दिवस हमें शारीरिक गतिविधियों के साथ सकारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने का संदेश भी देता है ताकि वैश्विक स्तर पर शांतिपूर्ण और समावेशी समाज का निर्माण किया जा सके। खेल की शक्ति सार्वभौमिकता का मार्ग प्रशस्त करती है; एकजुटता का संदेश देती है।
स्वामी जी ने कहा कि अगर सामूहिक भावनाएँ किसी भी समाज के केंद्र में हो तो आन्तरिक के साथ आध्यत्मिक और सामाजिक विकास सम्भव है। खेल एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो समाज एवं समूह के भीतर संबंधों को मजबूत करती है। यह लोगों के बीच एकजुटता एवं आपसी सम्मान स्थापित करते हुए सतत् विकास एवं शांति को भी बढ़ावा देता है। खेल, किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक अभिन्न अंग होता है। व्यक्तियों में शक्ति एवं शारीरिक फिटनेस के विकास पर इसके सकारात्मक प्रभावों के अलावा इसे एक ऐसे उपकरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो मानवाधिकारों को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
भारत में खेल हमारे जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है क्योंकि प्राचीन समय से ही खेल हमें अनुशासन सिखाता रहा है और हमारे कार्यों में निरंतरता लाता है तथा खेल हमारी एकाग्रता के स्तर को बढ़ाता है और हमारे मस्तिष्क को सकारात्मकता से युक्त रखता है।
स्वामी जी ने कहा कि खेल हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत ही जरुरी हैं जो व्यक्ति कोई न कोई खेल खेलता है वह स्वस्थ अवश्य रहता है। अब खेल की शक्ति से स्वयं को स्वस्थ रखने के साथ ही अपनी प्रकृति व पर्यावरण को स्वस्थ रखने का समय हैैैै। धरा स्वस्थ तो सब मस्त इसलिये आईये खेल की शक्ति को सार्वभौमिक कल्याण में लगाये और एक सतत, सुरक्षित और बेहतर जीवन की नींव हेतु योगदान प्रदान करें।